Shravan Month 2022: सावन के इस पवित्र मास में हम पढ़ रहे हैं 12 ज्योतिर्लिंगों की महिमा के बारे में। इसी क्रम में हमने अब तक चार ज्योतिर्लिंगों के बारे में पढ़ा, और अब हम पाँचवे ज्योतिर्लिंग, केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में पढ़ेंगे। पुराणों एवं शास्त्रों में बारम्बार वर्णित श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर्वतराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है। पुण्यमती मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित केदारेश्वर महादेव का मंदिर, प्राकृतिक शोभा से सम्पूर्ण है। यह स्थान हमें धर्म और अध्यात्म की ओर बढ़ने का संदेश देता है।
इसी चोटी के पूर्व में अलकनंदा का रमणीय तट है जिसपर बद्रीनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। अलकनंदा और मंदाकिनी- ये दोनों नदियाँ नीचे रुद्रप्रयाग में आकर आपस में मिल जाती हैं। दोनों नदियों की यही संयुक्त धारा नीचे आकर देवप्रयाग में भागीरथी गंगा से मिल जाती है। इस प्रकार गंगा नदी के निर्मल जल में स्नान करने वालों को श्री केदारेश्वर और बद्रीनाथ के चरणों को स्पर्श करके बहने वाले जल को स्पर्श करने का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है।
पुराणों के अनुसार एक महातपस्वी श्रीनर और नारायण हुए, जो अनंत रत्नों के जनक, अतिशय पवित्र, तपस्वियों, ऋषियों, सिद्धों, देवताओं की निवास-भूमि पर्वतराज हिमालय के केदार नामक चोटी पर रहकर कई वर्षों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तप किया।
एक पैर पर खड़े होकर शिव नाम का जप करते हुए वे कई हजार वर्षों तक निराहार ही रहे। उनके इस तपस्या की चर्चा तीनों लोकों में होने लगी। ब्रह्मा जी और विष्णु जी सहित सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि, यक्ष, किन्नर, गन्धर्व आदि उनकी साधना, संयम और भक्ति की प्रशंसा करने लगे। अंततः भगवान शिव भी उनसे प्रसन्न होकर उनके समक्ष प्रत्यक्ष प्रकट होकर दोनों तपस्वियों को दर्शन दिए।
भगवान शिव के अद्भुत दर्शन से नर और नारायण दोनों ही भाव-विह्वल और आनंद-विभोर हो उठे और तरह-तरह से भगवान शंकर की स्तुति गाने लगे। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर दोनों से वर मांगने को कहा। इसपर दोनों ऋषियों ने कहा कि यदि भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रसन्न हैं तो मनुष्यों के कल्याण हेतु वो वहीं सदा के लिए स्थापित हो जाएं। उन्होंने कहा कि भगवान शिव के वहाँ स्थापित होने से वहाँ की भूमि पुण्यमयी हो जाएगी। सभी मनुष्यों का दर्शन करने से निश्चित ही उद्धार होगा।
उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए भगवान शिव ने वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करना स्वीकार कर लिया। चूंकि यह ज्योतिर्लिंग केदार नामक हिमालय श्रृंग पर स्थित है, अतः इसका नाम श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग पड़ा।
कहा जाता है कि यहाँ दर्शन-पूजन तथा स्नान करने से भक्तों को लौकिक फलों की प्राप्ति के साथ-साथ ही अचल शिवभक्ति तथा मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।