भारत में मंदिरों को हमेशा आस्था और परंपरा का प्रतीक माना गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसे भी कई मंदिर हैं जहाँ भगवान के दर्शन करने का अधिकार सिर्फ महिलाओं को है और पुरुषों का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित (Temples Where Entry of men is Strictly Prohibited) है? यह सुनकर चौंकना स्वाभाविक है, क्योंकि आमतौर पर धार्मिक स्थलों (Religious Places) पर सभी भक्तों का स्वागत होता है। लेकिन इन मंदिरों की मान्यताएँ और परंपराएँ सदियों पुरानी हैं, जिनके पीछे दिलचस्प कारण छिपे हुए हैं। कहीं देवी शक्ति की विशेष आराधना होती है, तो कहीं समाज की अनोखी मान्यताओं के चलते पुरुषों को दूर रखा जाता है (Temples Where Entry of men is Strictly Prohibited)। यही नहीं, इन मंदिरों में से कुछ में प्रवेश करने वाले पुरुषों पर कभी जुर्माना लगाया जाता था तो कहीं इसे अपशकुन माना जाता है। आस्था और परंपरा का यह अनोखा संगम भारत की सांस्कृतिक विविधता को और भी रोचक बना देता है। आइए जानते हैं भारत के उन 5 मंदिरों के बारे में जहाँ पुरुषों का प्रवेश निषिद्ध है (5 Temples Where Men Are Prohibited)।
केरल के तिरुवनंतपुरम (Thiruvananthapuram, Kerala) में स्थित अट्टुकल भगवती मंदिर (Attukal Bhagavathy Temple) को दक्षिण भारत का “स्त्रियों का सबरीमाला” ("Women's Sabarimala") भी कहा जाता है। यह मंदिर देवी भगवती को समर्पित है और यहाँ हर साल होने वाला अट्टुकल पोंगाला महोत्सव (Attukal Pongala Festival) अपनी अनोखी परंपरा के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस उत्सव के दौरान लाखों महिलाएँ मंदिर प्रांगण और आसपास की सड़कों पर इकट्ठा होकर मिट्टी के बर्तनों में प्रसाद पकाती हैं। यह आयोजन इतना भव्य होता है कि इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (Guinness Book of World Records) में दर्ज किया गया है, क्योंकि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में एक ही जगह पर इतनी बड़ी संख्या में महिलाएँ एकत्रित नहीं हुई थीं।
इस मंदिर की मान्यता है कि यहाँ देवी कन्नाकी (Kannagi), जो शक्ति और साहस की प्रतीक मानी जाती हैं, महिलाओं को विशेष आशीर्वाद देती हैं। इसी कारण यहाँ महिलाओं की प्रधानता है और मंदिर के कई अनुष्ठानों में पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। विशेषकर पोंगाला महोत्सव के दौरान केवल महिलाएँ ही पूजा-पाठ और प्रसाद चढ़ाने का अधिकार रखती हैं। कहा जाता है कि इस समय देवी सिर्फ महिलाओं की पुकार सुनती हैं और उन्हें संतान सुख, परिवार की खुशहाली और शक्ति का आशीर्वाद देती हैं। इस परंपरा ने अट्टुकल भगवती मंदिर को न सिर्फ धार्मिक, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अनोखा और खास बना दिया है।
तमिलनाडु के दक्षिणी छोर पर स्थित देवी कन्याकुमारी मंदिर (Goddess Kanyakumari Temple) भारत के प्राचीन और शक्तिशाली शक्ति पीठों में से एक है। यहाँ की presiding deity देवी भगवती (Devi Bhagwati) हैं, जिन्हें कुमारी स्वरूपा माना जाता है। मान्यता है कि सती के शरीर का दाहिना कंधा और रीढ़ का हिस्सा इसी स्थान पर गिरा था, इसलिए यह स्थल शक्ति पीठ के रूप में पूजित है।
इस मंदिर की सबसे खास परंपरा यह है कि यहाँ विवाहित पुरुषों का प्रवेश पूर्णतः वर्जित है। केवल संन्यासी या ब्रह्मचारी पुरुष ही मंदिर के द्वार तक आ सकते हैं (Only Sanyasis or celibate men can enter the temple gate), लेकिन गर्भगृह में प्रवेश का अधिकार उन्हें भी नहीं होता। इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी है। कहा जाता है कि देवी पार्वती और भगवान शिव का विवाह इसी स्थल पर होना था, लेकिन भगवान शिव ने देवी के साथ अनुचित व्यवहार किया और उनका अपमान कर दिया। इससे क्रोधित होकर देवी ने प्रण लिया कि वे सदैव कुमारी स्वरूप में ही रहेंगी और इस मंदिर में पुरुषों का प्रवेश निषिद्ध रहेगा। आज भी यह परंपरा सख्ती से निभाई जाती है। मान्यता है कि यदि कोई विवाहित पुरुष इस मंदिर में प्रवेश करता है तो उसके दांपत्य जीवन में बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं। यही कारण है कि यह मंदिर स्त्री-शक्ति, पवित्रता और कुमारीत्व का प्रतीक माना जाता है और यहाँ केवल महिलाओं को पूजा का विशेष अधिकार प्राप्त है।
राजस्थान के पुष्कर में स्थित ब्रह्मा मंदिर (Rajasthan's Brahma Temple) दुनिया के उन गिने-चुने मंदिरों में से है जहाँ भगवान ब्रह्मा की पूजा होती है। हिंदू धर्म में ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता माना गया है, लेकिन उनके मंदिर बहुत कम मिलते हैं। यह मंदिर न सिर्फ अपनी पौराणिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि एक अनोखी परंपरा के लिए भी जाना जाता है। यहाँ विवाहित पुरुषों को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं (Married men are not allowed to the Temple) है। कहानी के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा को यज्ञ करना था और इसके लिए उनकी पत्नी देवी सरस्वती को उनके साथ होना जरूरी था। लेकिन जब देवी सरस्वती समय पर नहीं पहुँचीं, तो ब्रह्मा ने यज्ञ की पूर्ति के लिए देवी गायत्री से विवाह कर लिया और अनुष्ठान पूरा कर लिया।
इस घटना से देवी सरस्वती (Devi Saraswati) अत्यंत क्रोधित हो गईं और उन्होंने श्राप दिया कि अब से कोई भी विवाहित पुरुष ब्रह्मा के गर्भगृह में प्रवेश नहीं कर पाएगा। ऐसा करने पर उसके दांपत्य जीवन में अशांति और कलह आ जाएगी। यही कारण है कि आज भी इस मंदिर में केवल अविवाहित पुरुष और महिलाएँ ही गर्भगृह में प्रवेश कर सकते हैं। विवाहित पुरुष केवल बाहर से ही भगवान ब्रह्मा के दर्शन करते हैं। यह परंपरा इस मंदिर को अद्वितीय और रहस्यमयी बनाती है।
उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर (Muzaffarnagar) में स्थित माता मंदिर (Mata Mandir In Muzaffarnagar) एक शक्तिपीठ जैसा महत्व रखता है और यहाँ की परंपराएँ इसे बेहद खास बनाती हैं। यह मंदिर असम के प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर की तरह ही देवी की ऋतु अवधि (menstruation period) से जुड़ी आस्था के कारण प्रसिद्ध है। मान्यता है कि इस समय माँ शक्ति स्वयं सृजन और प्रकृति की शक्ति का प्रतीक बन जाती हैं। इसी वजह से जब देवी “मासिक धर्म” में होती हैं, तब मंदिर का वातावरण पवित्र स्त्री-ऊर्जा से भर जाता है।इस दौरान मंदिर में पुरुषों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित रहता है। न सिर्फ आम पुरुष भक्त, बल्कि यहाँ तक कि मंदिर के पुजारी तक को भी गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं होती।
केवल महिलाएँ ही इस समय मंदिर परिसर में जाकर देवी की पूजा कर सकती हैं। यह मान्यता है कि इस अवधि में देवी अपनी शक्ति का संचार केवल स्त्रियों को ही देती हैं और उनके जीवन में उर्वरता, शक्ति और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। मंदिर की यह अनूठी परंपरा समाज को यह संदेश भी देती है कि मासिक धर्म कोई अशुद्धि नहीं, बल्कि शक्ति और सृजन का प्रतीक है। यही कारण है कि माता मंदिर आज भी स्त्री-शक्ति की पूजा और सम्मान का एक अद्वितीय उदाहरण माना जाता है।
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असम के गुवाहाटी शहर के नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) भारत के सबसे प्रसिद्ध शक्ति पीठों में से एक है। यह मंदिर देवी शक्ति को समर्पित है और यहाँ देवी के योनि रूप की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनके शरीर को खंड-खंड कर दिया। कहा जाता है कि सती का जननांग (योनि) इसी स्थान पर गिरा था, इसलिए यह स्थल शक्ति पीठ बना।
कामाख्या मंदिर की विशेषता यह है कि साल में एक बार यहाँ अंबुबाची मेला आयोजित होता है। यह पर्व जून महीने में मनाया जाता है और इस दौरान मंदिर के गर्भगृह के द्वार चार दिनों तक बंद रहते हैं। मान्यता है कि इन दिनों देवी कामाख्या का मासिक धर्म होता है। इसी वजह से पुरुष भक्तों और पुजारियों का प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित रहता है। इस दौरान केवल महिलाएँ और महिला संन्यासी ही मंदिर की सेवा और पूजा कर सकती हैं। चार दिन बाद मंदिर के द्वार फिर से खोले जाते हैं और इसे एक नए जीवन और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि कामाख्या मंदिर को न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि स्त्री शक्ति और सृजन शक्ति के प्रतीक के रूप में भी विशेष महत्व दिया जाता है। [Rh/SP]