जहां भगवान शिव ने माता पार्वती के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा IANS
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वह स्थान जहां भगवान शिव ने माता पार्वती के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा: अर्धनारीश्वर

पौराणिक कथा अनुसार, कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों में युद्ध हुआ तो वहां पर पांडवों ने कई व्यक्तियों और अपने भाइयों का भी वध कर दिया था।

न्यूज़ग्राम डेस्क

उत्तराखंड (Uttarakhand) के जिला रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) के शहर गुप्तकाशी (Guptakashi) में एक मंदिर विख्यात है, जिसका नाम है 'विश्वनाथ मंदिर (Viswanath Temple)'। यह मंदिर समुद्र तट से 1319 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह शहर उत्तराखंड का पवित्र शहर है, यह मंदाकिनी नदी (Mandakini River) के पास स्थित है। यहां कई प्राचीन मंदिर है, जिनके दर्शन करने के लिए हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु एवं पर्यटक आते हैं। इस शहर के प्राचीन मंदिरों का संबंध महाभारत (Mahabharat) काल से है। यह शहर बर्फीली पहाड़ियों, हरियाली, सांस्कृतिक विरासत और चौखंबा पहाड़ियों के सुहावने मौसम से घिरा हुआ है। पर्यटकों के लिए यह शहर एक 'परफेक्ट हॉलीडे डेस्टिनेशन' है।

गुप्तकाशी में स्थित विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा :

पौराणिक कथा अनुसार, कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों में युद्ध हुआ तो वहां पर पांडवों ने कई व्यक्तियों और अपने भाइयों का भी वध कर दिया था। उसी वध के कारण उन्हें बहुत सारे दोष लग गए थे। पांडवों को उन्हीं दोषों के निवारण करने के लिए भगवान शिव से माफी मांगनी थी और उनका आशीर्वाद लेना था, लेकिन भगवान शिव पांडवों से रुष्ट हो गए थे, क्योंकि उस युद्ध के दौरान पांडवों ने उनके भी भक्तों का वध कर दिया था। उन्हीं दोषों से मुक्ति पाने के लिए पांडवों ने पूजा अर्चना की और भगवान शंकर के दर्शन करने के लिए निकल पड़े।

भगवान शिव हिमालय के इसी स्थान पर ध्यान मग्न थे और जब भगवान को पता चला कि पांडव इसी स्थान पर आ रहे हैं तो वह यहीं बैल नंदी का रूप धारण कर अंतर्ध्यान हो गए या यूं कहें कि गुप्त हो गए, इसलिए इस जगह का नाम गुप्तकाशी पड़ा। यह मंदिर उन्हीं का प्रतीक है।

इसके बाद भगवान शिव विलुप्त हो करके पंचकेदार यानी मदमहेश्वर, रुद्रनाथ, तुंगनाथ, कल्पेश्वर और केदारनाथ में अनेकों भागों में प्रकट हुए। इसलिए इन मंदिरों की भी उतनी ही मान्यता है जितनी कि पंचकेदार की। यहां एक अन्य मंदिर स्थित है 'अर्धनारीश्वर' यानी आधा पुरुष, आधी नारी। यह भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। माना जाता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती के समक्ष विवाह का प्रस्ताव यहीं रखा था और उसके बाद विवाह त्रियुगीनारायण (Triyuginarayan) में सम्पन्न हुआ।

इस मंदिर की स्थापत्य शैली उत्तराखंड में अन्य मंदिरों के समान है और केदारनाथ मंदिर जैसा ही यह मंदिर बना हुआ है। मंदिर के प्रवेशद्वार पर दोनों ओर दो द्वारपाल हैं और बाहरी मुखौटा कमल के साथ चित्रित किया गया है। प्रवेशद्वार के सर्वोच्च पर भैरव की एक छवि है, जो कि भगवान शिव का एक रूप है। मंदिर परिसर में एक कुंड है, जिसे 'मणिकर्णिका कुंड' कहा जाता है। जो कि एक पवित्र कुंड है। यहां दो जल धाराएं सदैव बहती रहती हैं।

अर्धनारीश्वर मंदिर

'मणिकर्णिका कुंड' का जल गंगा और यमुना नदी का प्रतिनिधित्व करता है। यमुना नदी का पानी गोमुख से उत्पन्न होता है और भागीरथी नदी का पानी रणलिंग से हाथी के सूंड़ से बहता है। भगवान विश्वनाथ जी का यह मंदिर बहुत ही सुंदर है, साथ में अर्धनारीश्वर मंदिर है और बाहर विराजमान हैं नंदिदेव।

आईएएनएस/PT

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