पाकिस्तान क्रिकेट टीम (Pakistan Cricket Team) को दुनिया की सबसे प्रतिभाशाली टीमों में गिना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यहां सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि हिंदू और पारसी जैसे अल्पसंख्यक (Minorities like Hindus and Parsis) समुदायों के खिलाड़ी भी टीम का हिस्सा रहे हैं? भले ही इनकी संख्या गिनी-चुनी रही हो, मगर इनके नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हैं। अनिल दलपत (Anil Dalpat) से लेकर दानिश कनेरिया (Danish Kaneria) तक, इन खिलाड़ियों ने न सिर्फ पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व किया बल्कि अपने प्रदर्शन से सबका दिल जीत लिया। किसी ने विकेटकीपिंग से इतिहास रचा, किसी ने स्पिन गेंदबाजी में रिकॉर्ड बनाए, तो किसी ने बल्लेबाजी से चमक बिखेरी। वहीं, रुस्सी दिनशॉ जैसे पारसी क्रिकेटर भी पाकिस्तान की शुरुआती टीम में शामिल होकर खास पहचान छोड़ गए। इन खिलाड़ियों की खासियत यह है कि इन्होंने अपनी मेहनत और संघर्ष के दम पर यह साबित किया कि टैलेंट का कोई धर्म नहीं होता। आइए जानते हैं उन अल्पसंख्यक खिलाड़ियों की कहानी जिन्होंने पाकिस्तान क्रिकेट (Hindu Players in Pakistan Cricket Team) को एक अलग रंग दिया।
अनिल दलपत सोनावारिया (Anil Dalpat Sonawariya) का जन्म 20 सितंबर 1963 को कराची, पाकिस्तान में हुआ था। वह पाकिस्तान के पहले हिंदू क्रिकेटर (Pakistan's first Hindu cricketer) हैं जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट में भाग लिया। उनका परिवार राजस्थान के जोधपुर से ताल्लुक रखता है, और वह पाक हिंदू क्लब के प्रमुख दलपत सोनावारिया के पोते हैं। अनिल दलपत (Anil Dalpat) ने 1983-84 में इंग्लैंड के खिलाफ कराची टेस्ट मैच (Karachi Test Match) से पाकिस्तान के लिए टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया। उन्होंने 9 टेस्ट मैचों में 25 विकेटकीपिंग (कैच और स्टंपिंग) की और 52 रन की सर्वोच्च पारी खेली। उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 1984-85 में न्यूजीलैंड के खिलाफ कराची में था।
हालांकि उनका अंतरराष्ट्रीय करियर छोटा था, लेकिन उन्होंने पाकिस्तान क्रिकेट में महत्वपूर्ण योगदान दिया। रिटायरमेंट के बाद, अनिल दलपत कनाडा चले गए, जहां उन्होंने व्यवसाय शुरू किया। वर्तमान में वह कराची में रहते हैं और अपने परिवार के साथ समय बिता रहे हैं।
दानिश कनेरिया (Danish Kaneria) का जन्म 16 दिसंबर 1980 को कराची, पाकिस्तान में हुआ था। वह पाकिस्तान के दूसरे हिंदू क्रिकेटर (Pakistan's second Hindu cricketer) हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भाग लिया। उनका परिवार भी राजस्थान से संबंधित है, और वह अनिल दलपत के भतीजे हैं। दानिश कनेरिया ने 2000 से 2010 तक पाकिस्तान के लिए 61 टेस्ट मैचों में 261 विकेट लिए, जिससे वह पाकिस्तान के सबसे सफल स्पिन गेंदबाज बने। उन्होंने 18 वनडे मैचों में भी 15 विकेट लिए। उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2002 में बांगलादेश के खिलाफ था, जहां उन्होंने एक पारी में 7 विकेट लिए।
हालांकि उनका करियर विवादों से घिरा रहा (Career surrounded by controversies), विशेषकर 2009 में स्पॉट फिक्सिंग मामले (Spot fixing cases) में शामिल होने के कारण, जिसके कारण उन्हें आजीवन प्रतिबंध का सामना करना पड़ा। रिटायरमेंट के बाद, दानिश कनेरिया ने अमेरिका में बसने का निर्णय लिया और वहां अपने जीवन को पुनर्निर्मित किया। वर्तमान में वह अपने परिवार के साथ अमेरिका में रहते हैं।
मोहम्मद यूसुफ (Mohammad Yusuf) पाकिस्तान क्रिकेट के इतिहास के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज़ों में गिने जाते हैं। उनका जन्म 1974 में लाहौर, पाकिस्तान में यूसुफ याहिया के नाम से हुआ था और वे एक ईसाई परिवार से ताल्लुक रखते थे। बाद में उन्होंने इस्लाम धर्म (Islam) अपना लिया और अपना नाम मोहम्मद यूसुफ (Mohammad Yusuf) रख लिया। उनकी यह धार्मिक यात्रा भी उन्हें अक्सर सुर्खियों में बनाए रखती रही। यूसुफ ने 1996 से 2010 तक पाकिस्तान की ओर से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट (International Cricket) खेला और इस दौरान उन्होंने अपनी शानदार बल्लेबाजी से टीम को कई अहम मौकों पर जीत दिलाई। उन्होंने 90 टेस्ट मैचों में 7,530 रन बनाए, जिसमें कई शतक और डबल शतक शामिल हैं। वहीं, 288 वनडे मुकाबलों में उन्होंने 9,550 रन बनाए और पाकिस्तान के सबसे भरोसेमंद मध्यक्रम बल्लेबाज साबित हुए।
उनकी तकनीक, क्रीज पर धैर्य और बड़े स्कोर बनाने की क्षमता उन्हें विश्वस्तरीय बल्लेबाजों की श्रेणी में ले आई। यूसुफ का सबसे शानदार साल 2006 रहा, जब उन्होंने एक ही कैलेंडर वर्ष में 1,788 रन बनाकर सर डॉन ब्रैडमैन का रिकॉर्ड तोड़ा। यह उपलब्धि उन्हें क्रिकेट इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज करती है। रिटायरमेंट के बाद मोहम्मद यूसुफ ने क्रिकेट कोचिंग और कमेंट्री से जुड़कर खेल से अपना रिश्ता बनाए रखा। हाल के वर्षों में वे पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (Pakistan Cricket Board) की नीतियों पर अपने बेबाक बयानों की वजह से भी चर्चा में रहते हैं।
रुस्सी दिनशॉ (Russi Dinshaw) पाकिस्तान क्रिकेट के इतिहास में एक अनोखा नाम हैं, क्योंकि वे देश के पहले और अब तक के एकमात्र पारसी क्रिकेटर (The Only Parsi Cricketer) रहे हैं जिन्होंने टेस्ट क्रिकेट खेला। उनका जन्म 7 फरवरी 1928 को कराची में हुआ था। बचपन से ही उन्हें क्रिकेट का शौक था और अपने हुनर के बल पर उन्होंने घरेलू क्रिकेट में अच्छा नाम कमाया। उनकी मेहनत का नतीजा यह रहा कि उन्हें पाकिस्तान की ओर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिला। 1952 में भारत के खिलाफ पाकिस्तान के ऐतिहासिक पहले टेस्ट सीरीज़ में रुस्सी दिनशॉ (Russi Dinshaw) को टीम में शामिल किया गया। उन्होंने उस मैच में बल्लेबाज के रूप में अपनी भूमिका निभाई।
हालांकि उनका अंतरराष्ट्रीय करियर सिर्फ इसी एक टेस्ट तक सीमित रह गया, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने पाकिस्तान क्रिकेट के शुरुआती दौर में एक अहम छाप छोड़ी।रुस्सी दिनशॉ (Russi Dinshaw) का करियर भले ही छोटा रहा हो, लेकिन उनकी पहचान हमेशा एक ऐसे खिलाड़ी के रूप में रहेगी, जिसने पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व कर इतिहास रचा। क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद वे पाकिस्तान में ही बस गए और खेल से जुड़े रहे। 24 मार्च 2014 को कराची में उनका निधन हुआ। उनकी याद आज भी इसलिए ताज़ा है क्योंकि वे पाकिस्तान क्रिकेट के उस दौर का हिस्सा थे जब यह टीम अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुद को स्थापित कर रही थी।
सोहैल फजल (Sohail Fazal) पाकिस्तान क्रिकेट के इतिहास में उन कुछ गिने-चुने खिलाड़ियों में शामिल हैं, जिन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय से आने के बावजूद राष्ट्रीय टीम में जगह बनाई। उनका जन्म 11 नवंबर 1967 को लाहौर में हुआ था। सोहैल फजल हिंदू धर्म से ताल्लुक रखते हैं (Sohail Fazal belongs to the Hindu religion) और 1989 में उन्हें पाकिस्तान क्रिकेट टीम (Pakistan Cricket Team) में खेलने का मौका मिला। उन्होंने उसी साल दो वनडे अंतरराष्ट्रीय मैच खेले। भले ही उनका करियर बहुत छोटा रहा और उन्हें ज्यादा अवसर नहीं मिल पाए, लेकिन पाकिस्तान क्रिकेट इतिहास में उनका नाम इसलिए दर्ज है क्योंकि वे पाकिस्तान के पहले हिंदू खिलाड़ी थे जिन्होंने वनडे प्रारूप में देश का प्रतिनिधित्व किया। उनका डेब्यू पाकिस्तान क्रिकेट के लिए उस दौर में हुआ जब टीम में कई बड़े सितारे मौजूद थे और जगह बनाना बेहद मुश्किल था। इसके बावजूद उनका चयन इस बात का सबूत है कि उनके पास प्रतिभा और कड़ी मेहनत का बल था।
हालांकि, आगे चलकर उन्हें टीम में स्थायी जगह नहीं मिल सकी और उनका अंतरराष्ट्रीय सफर जल्दी ही समाप्त हो गया। क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद सोहैल फजल पाकिस्तान में ही रहे और खेल से जुड़े रहे। वे स्थानीय स्तर पर क्रिकेट गतिविधियों और आयोजनों में सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं। उनका नाम हमेशा इस रूप में याद किया जाएगा कि उन्होंने पाकिस्तान के लिए हिंदू समुदाय से वनडे क्रिकेट में कदम रखने वाले पहले खिलाड़ी होने का गौरव हासिल किया। [Rh/SP]