झारा पहलवान पहलवानी के एक ऐसे परिवार से थे जिसकी जड़ें गहराई तक दबी हुई थीं। (AI)
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झारा पहलवान : 19 की उम्र में इनोकी को पछाड़ने वाला पाकिस्तानी हीरो, जो नशे का शिकार बन गया

लाहौर (Lahore) के झारा पहलवान (Jhara Pehelwan) ने महज 19 साल की उम्र में जापान के इनोकी को रिंग से बाहर फेंककर इतिहास रच दिया। गामा पहलवान (Gama Pehelwan) के परिवार से ताल्लुक रखने वाले झारा कभी हारे नहीं, लेकिन नशे की लत ने उनकी चमकती ज़िंदगी को अधूरा कर दिया।

न्यूज़ग्राम डेस्क

लाहौर (Lahore) का भाटी चौक और उसके आसपास का इलाका पाकिस्तान की पहलवानी परंपरा का गढ़ माना जाता है। यही वह जगह है जहाँ गामा पहलवान जैसे दिग्गजों की विरासत जीवित रही और यहीं उनके वंशजों ने अपने अखाड़े (Arena) जमाए। इन्हीं में से एक नाम है मोहम्मद ज़ुबैर उर्फ़ झारा पहलवान (Jhara Pehelwan), जिनकी कब्र आज भी लाहौर के पीर मक्की इलाके में ऊँचे चबूतरे पर बनी हुई है। यह वही झारा हैं जिन्होंने महज 19 साल की उम्र में जापान के मशहूर पहलवान एंटोनियो इनोकी को रिंग से बाहर फेंककर दुनिया को चौंका दिया था।

झारा पहलवान पहलवानी के एक ऐसे परिवार से थे जिसकी जड़ें गहराई तक दबी हुई थीं। वह रुस्तम-ए-ज़मान गामा पहलवान (Gama Pehelwan) के भाई इमाम बख्श के पोते और गामा किला वाले पहलवान के पड़पोते थे। उनके चाचा मंजूर हुसैन भोलो, अकरम, आज़म, हस्सो और गोगा पहलवान उस दौर के बड़े नाम थे। यानी झारा का खून ही पहलवानी का था।

कहा जाता है कि जब झारा अपनी पढाई के शुरुआती समय से ही क्लास में फेल हो गए थे, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि वो फेल होने कि वजह से मायूस होने के बजाय खुश हुए। उन्हें पता था कि अब पढ़ाई छोड़कर पूरी तरह अखाड़े (Arena) में उतरने का मौका मिल जाएगा। इसके बाद भोलो पहलवान ने उन्हें अपने अखाड़े में सख्त अनुशासन और कठिन प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया ।

झारा (Jhara Pehelwan) का पहला दंगल मुल्तान के जावर पहलवान से हुआ। इस मुकाबले में उन्होंने मात्र एक ही मिनट में अपने प्रतिद्वंद्वी को हरा दिया। इसके बाद 1978 में गद्दाफी स्टेडियम में उन्होंने गोगा पहलवान को भी हराया। इन दोनों जीतों ने उन्हें पाकिस्तान की जनता के बीच नया सितारा बना दिया।

झारा का पहला दंगल मुल्तान के जावर पहलवान से हुआ।

झारा का असली परीक्षा तब आया जब उन्हें जापान के दिग्गज पहलवान एंटोनियो इनोकी से भिड़ना था। आपको बता दें इनोकी वही थे जिन्होंने 1976 में झारा के चाचा अकरम को हराया था। इसलिए यह मुकाबला सिर्फ खेल नहीं बल्कि बदले की लड़ाई भी माना जाता है।

झारा की तैयारी किसी योद्धा से कम नहीं थी। उन्हें रोज़ रावी नदी तैरकर पार करनी पड़ती थी, और तीन हज़ार उठक-बैठक करनी होती थी, इसके बाद दौड़ लगाना डंबल और पीटी यह सब उनका रोज़ के काम का हिस्सा था। उनका खाना भी किसी शेर जैसा था, जैसे की दो किलो मांस, तीन किलो स्टू, दो किलो दूध और फलों का रस। उनका लम्बाई छह फुट दो इंच था, और उनका शरीर इस रोज रोज के अभ्यास से और भी फौलादी बन गया था।

लाहौर (Lahore) में मुकाबले का ऐलान होते ही पूरे शहर में जश्न का माहौल था। गद्दाफी स्टेडियम के बाहर टिकट लेने के लिए लंबी कतारें लगी थी। कई लोग जब टिकट से वंचित रह गए तो उन्होंने हंगामा भी किया और इसकी वजह से पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ा। यह दर्शाता है कि झारा और इनोकी की लड़ाई को देखने के लिए जनता कितनी बेचैन थी।

मुकाबले के दिन झारा लाल गाउन और बड़ी पगड़ी पहनकर रिंग में उतरे, जिस पर पाकिस्तान लिखा था। इनोकी भी लाल कमीज़ में उतरे। उसके बाद ढोल के साथ झारा का पारंपरिक नृत्य पूरे माहौल को और रोमांचक बना दिया।

मुकाबले के दिन झारा लाल गाउन और बड़ी पगड़ी पहनकर रिंग में उतरे, जिस पर पाकिस्तान लिखा था।

पहले राउंड से ही झारा आक्रामक मूड में थे। उन्होंने इनोकी को बार-बार धक्का दिया और टैकल किया। दूसरे राउंड में उन्होंने इनोकी को जमीन पर गिराकर उनकी बांह मरोड़ने की कोशिश की। फिर ऐसा भी क्षण आया जब झारा ने इनोकी को उठाकर रिंग से बाहर फेंक दिया। उस समय इतना उत्साह वाला था की दर्शकों का उत्साह उस समय चरम पर था।

तीसरे और चौथे राउंड में इनोकी थोड़ा थक गए जबकि झारा ताज़गी के साथ लड़ते रहे। पाँचवें राउंड में भी झारा ने उन्हें दबा दिया, लेकिन तभी घंटी बज गई और मुकाबला अनिश्चित घोषित हुआ। हालाँकि, नतीजे से पहले खुद इनोकी ने झारा का हाथ उठाकर स्वीकार किया कि पाकिस्तानी पहलवान ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। यह दृश्य पूरे पाकिस्तान के लिए गर्व का पल था।

मुकाबले के बाद लाहौर (Lahore) में यह अफवाहें फैलने लगी कि इनोकी ने पैसे लेकर हार मान ली। भोलो परिवार ने इन आरोपों को सख्ती से खारिज कर दिया। असलियत यह थी कि झारा ने इनोकी को जोरदार चुनौती दी थी। दिलचस्प बात यह रही कि इस मुकाबले ने इनोकी को पाकिस्तानियों के दिलों में जगह दिलाई और बाद में उन्होंने इस्लाम अपनाकर अपना नाम मोहम्मद हुसैन रख लिया।

खुद इनोकी ने झारा का हाथ उठाकर स्वीकार किया कि पाकिस्तानी पहलवान ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। यह दृश्य पूरे पाकिस्तान के लिए गर्व का पल था।

दूसरी जीत और बिखरती जिंदगी

झारा (Jhara Pehelwan) ने 1981 में फिर से गोगा पहलवान को हराया। लेकिन इसके बाद उनकी जिंदगी में अंधेरा छाने लगा, क्योकि धीरे-धीरे वो ड्रग्स की लत में फँसते चले गए। कहा जाता है कि एक बार नशे में उन्होंने कबाब की दुकान पर सारा खाना खा लिया और वहीं उनकी तबीयत बिगड़ गई। उसके बाद डॉक्टरों ने बताया कि वह हेरोइन के आदी हो चुके हैं।

परिवार ने उन्हें संभालने के लिए उनकी शादी भी कराई ताकि वो सुधर जाएँ लेकिन इसके बाद भी झारा नशे से बाहर नहीं निकल पाए। इसके बावजूद उन्होंने कई मुकाबले लड़े और यहाँ तक कि नशे की हालत में भी जीत हासिल की। 1984 में उनकी आखिरी कुश्ती रही। इसके बाद उन्होंने अखाड़े से दूरी बना ली।

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10 सितंबर 1991 को सिर्फ 31साल की उम्र में उनको दिल का दौरा पड़ा, जिसकी वजह से झारा का निधन हो गया। उनकी कब्र आज भी लाहौर में भोलो परिवार के अन्य पहलवानों के पास बनी हुई है। झारा अपनी जिंदगी में कभी भी किसी मुकाबले में नहीं हारे। लेकिन नशीले पदार्थों की लत ने उनकी जिंदगी को अधूरा कर दिया। अगर वह इस आदत से बच पाते तो शायद दुनिया उन्हें गामा पहलवान (Gama Pehelwan) की तरह सदियों तक याद रखती।

10 सितंबर 1991 को सिर्फ 31साल की उम्र में उनको दिल का दौरा पड़ा, जिसकी वजह से झारा का निधन हो गया।

निष्कर्ष

झारा पहलवान (Jhara Pehelwan) की कहानी ताक़त, मेहनत और जुनून के साथ-साथ लापरवाही और बुरी आदतों की भी कहानी है। उन्होंने 19 साल की उम्र में जापान के महान पहलवान एंटोनियो इनोकी को रिंग से बाहर फेंककर इतिहास रच दिया, लेकिन नशे ने उनकी चमकती हुई जिंदगी को बहुत जल्दी बुझा दिया।

झारा आज भी पाकिस्तान की पहलवानी परंपरा में एक चमकते सितारे की तरह याद किए जाते हैं, जिनकी रोशनी भले ही जल्दी बुझ गई हो, लेकिन जिसने दुनिया को यह दिखा दिया कि पाकिस्तान की धरती से पैदा हुआ नौजवान भी दिग्गजों को टक्कर दे सकता है। [Rh/PS]

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