Junagadh : बहुत कम लोगों को यह बात पता है कि पिछले 77 सालों से पाकिस्तान केवल कश्मीर और लद्दाख के लिए ही नहीं बल्कि गुजरात के दो इलाकों को भी अपने आधिकारिक नक्शे में दिखाता रहा है। वो अभी भी इन इलाकों पर अपना दावा जताता है। हालांकि इस मामले पर वो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई बार बुरी तरह हारा है। पाकिस्तान अपना जो भी राजनीतिक नक्शा प्रकाशित करता है, उसमें पाकिस्तान के सर्वे विभाग के अलावा पाकिस्तान सरकार की भी सीधी भागीदारी होती है। इसके बाद भी बंटवारे के बाद से वो लगातार ये हरकत कर रहा है।
पाकिस्तान गुजरात के दो इलाके जूनागढ़ और माणावदर के भारत में हुए विलय को स्वीकार नहीं किया। जबकि वो जनता है कि ये इलाके भारत के अविभाज्य अंग हैं। सत्य ये है कि उसकी लाख कोशिशों के बाद भी जूनागढ़ ऐसी रियासत थी, जहां पाकिस्तान को ऐसी हार मिली कि उसका दर्द आज ही वैसा का वैसा ही है। पाकिस्तान जूनागढ़ को लेकर और भी हरकतें करता है। वो साल में कुछ वाहनों के लाइसेंस भी जूनागढ़ की प्लेट के नाम पर जारी करता है। पाकिस्तान इसी इलाके से सटे दमन और दीव को भी भारत का अंग नहीं मानता, अपने आधिकारिक नक्शे में वो इन्हें पुर्तगाल का हिस्सा मानता है। जबकि ये इलाका 1961 में भारत ने पुर्तगाल से ले लिया था।
आज भी पाकिस्तान उस चोट को भुला नहीं पाता। उसकी कहानी भी बहुत दिलचस्प है बल्कि ये ऐसी चोट है, जिससे ये खुन्नस में पड़ोसी मुल्क को परेशान तो कर सकता है, लेकिन अब इन इलाकों को पा नहीं सकता। पैट्रिक फ्रैंच की किताब ‘लिबर्टी एंड डेथ’ कहती है कि पाकिस्तान को भी मालूम है कि जूनागढ़ भारत का अविभाज्य हिस्सा है लेकिन इसके बाद भी वो इसे अपने नक्शे में शामिल करता रहा है।
वीपी मेनन की पुस्तक “इंटीग्रेशन आफ इंडिया इनस्टेड” के अनुसार, जब जूनागढ़ के हालात और दबाव के आगे दीवान भुट्टो टूट चुके थे। इन्हीं हालात के बीच 09 नवंबर को भारतीय फौजें जूनागढ़ में प्रवेश कर गईं। नेहरू ने औपचारिक तौर पर इसकी सूचना पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को दी। फिर 20 फरवरी 1948 को जूनागढ़ में भारत सरकार ने जनमत संग्रह कराया। कुल 2,01, 457 वोटरों में 1,90,870 ने अपने वोट डाले जिसमें से पाकिस्तान के पक्ष में केवल 91 वोट पड़े। इस प्रकार जूनागढ़ भारत का अंग बना।