कोल्हापुर (Kolhapur) की सड़कों पर 40 हजार से ज्यादा लोग उतर आए, लेकिन न किसी राजनीतिक मुद्दे पर, न किसी चुनावी रैली में, बल्कि एक हथिनी ‘महादेवी’ (Mahadevi elephant) के लिए। यह कोई आम हथिनी नहीं थी, बल्कि कोल्हापुर के नांदणी गांव की ‘गौरव’ मानी जाने वाली हथिनी थी, जो पिछले 32 साल से एक जैन मठ में रह रही थी। अब जब उसे "बचाने" के नाम पर वंतारा भेजा गया, तो पूरा जिला सुलग उठा।
महादेवी की कहानी: एक धार्मिक परंपरा से गहराई से जुड़ी हथिनी
1992 में महादेवी नाम की एक हथिनी को 4 साल की उम्र में कोल्हापुर के नांदणी गांव के जैन मठ में लाया गया। यहां यह हथिनी न केवल एक धार्मिक प्रतीक बन गई, बल्कि ग्रामीणों के जीवन का हिस्सा भी। राजू शेट्टी (Raju Shetty), जो कि एक किसान नेता और पूर्व सांसद हैं, बताते हैं कि जैन मठ में 700 वर्षों से हाथी पालने की परंपरा रही है। महादेवी इसी परंपरा की कड़ी थी। गांव के लोग बताते हैं कि महादेवी गांव में रोज़ फेरा लगाती थी, बच्चों से खेलती थी और लोगों की आस्था का केंद्र बन चुकी थी। उसे ‘कोल्हापुर (Kolhapur) की माधुरी’ भी कहा जाने लगा था।
PETA (People for the Ethical Treatment of Animals) ने इस हथिनी की हालत को लेकर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि महादेवी को न सिर्फ कैद में रखा गया था, बल्कि लोहे के अंकुश से उसे नियंत्रित किया जाता था। उससे जबरन काम करवाया जाता था, जैसे धार्मिक जुलूसों में चलवाना और उससे भीख मंगवाना। PETA के अनुसार, 2017 में महादेवी ने मानसिक तनाव में आकर जैन मठ के पुजारी पर हमला किया था, जिससे उनकी मौत हो गई थी। यह घटना इस बात का संकेत मानी गई कि हथिनी गहरे मानसिक तनाव और शोषण का शिकार थी।
PETA और अन्य रिपोर्टों के आधार पर 2020 में महाराष्ट्र वन विभाग ने महादेवी को अपने कब्जे में ले लिया। जांच में सामने आया कि हथिनी को गैरकानूनी रूप से 13 बार राज्य से बाहर ले जाया गया और शोभायात्राओं में शामिल किया गया। खास तौर पर 2022 में उसे मुहर्रम की शोभायात्रा के लिए तेलंगाना ले जाया गया, जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की हाई पावर्ड कमेटी ने उसे गुजरात के जामनगर स्थित राधे कृष्ण टेंपल एलिफेंट वेलफेयर ट्रस्ट, यानी वंतारा में भेजने का आदेश दे दिया। वंतारा मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी की पहल है, जो हाथियों के लिए एक विशेष देखभाल केंद्र है।
यह फैसला आते ही कोल्हापुर (Kolhapur) में विरोध भड़क उठा। राजू शेट्टी ने आरोप लगाया कि PETA ने सुप्रीम कोर्ट को गलत जानकारी दी और अंबानी की ‘गुलामी’ करते हुए हथिनी को वंतारा भिजवा दिया। उन्होंने यह भी दावा किया कि वंतारा कोई अधिकृत चिड़ियाघर नहीं है, और RTI के तहत सेंट्रल जू अथॉरिटी ने भी कहा कि वंतारा देश में पंजीकृत चिड़ियाघरों की सूची में नहीं है। शेट्टी (Raju Shetty) का कहना है, “35 सालों से गांव वालों ने इस हथिनी को अपने परिवार का हिस्सा माना है। आज जब वह 40 साल की हो गई है, तो पैसे और ताकत के दम पर उसे छीन लिया गया।”
जनता का उबाल : मौन पदयात्रा और ‘जियो’ का बहिष्कार
5 अगस्त को कोल्हापुर, (Kolhapur) सांगली और सतारा के 30,000 से ज्यादा लोग एक 45 किमी लंबी मौन पदयात्रा में शामिल हुए। लोगों ने PETA और वंतारा के खिलाफ नारे लगाए और जियो के बहिष्कार का ऐलान किया। राजू शेट्टी ने कहा कि डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों ने अपना जियो नंबर पोर्ट करा लिया। इस पदयात्रा में महादेवी के साथ खेलने वाला एक कुत्ता भी शामिल हुआ। यह भावनात्मक दृश्य लोगों की उस गहरी संवेदना को दर्शाता है, जो वो इस हथिनी से महसूस करते हैं। उसके बाद महादेवी (Mahadevi elephant) को रात 12 बजे नांदणी मठ से एक एंबुलेंस में शिफ्ट किया गया। शेट्टी और अन्य लोगों ने इस पर आपत्ति जताई। उनका कहना है कि पशु ट्रांसपोर्ट के नियमों के अनुसार दिन में ऐसा किया जाना चाहिए था। यदि हाथी को 48 घंटे के सफर में कोई नुकसान हुआ तो जिम्मेदार कौन होगा ?
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3 अगस्त को वंतारा की ओर से बयान आया कि हथिनी के शोषण से जुड़े पर्याप्त सबूत और तस्वीरें उपलब्ध हैं। उनका कहना है कि वंतारा का इस मामले में सीधा हस्तक्षेप नहीं था, लेकिन यह ट्रस्ट हाथियों के पुनर्वास में अनुभवी है, इसलिए सरकार ने यहां शिफ्ट करने का निर्णय लिया। वंतारा ने यह भी स्पष्ट किया कि वहां पहले से 200 से ज्यादा हाथियों की देखभाल की जाती है और वहां का माहौल उनके लिए पूरी तरह अनुकूल है।
धर्म, परंपरा और अधिकारों की जंग
इस मामले ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया, क्या धार्मिक परंपरा के नाम पर जानवरों को इंसानी भावनाओं से बांधकर रखना उचित है? कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि "महादेवी का गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने का अधिकार, धार्मिक उपयोग से अधिक महत्वपूर्ण है।" यह फैसला जहां एक ओर पशु अधिकारों के लिए एक मिसाल बन सकता है, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वासों को भी झकझोरता है।
निष्कर्ष
महादेवी (Mahadevi elephant) अब जामनगर पहुंच चुकी है। लेकिन उसकी कहानी एक बड़ा सामाजिक विमर्श बन गई है, जहां पशु कल्याण बनाम धार्मिक परंपरा, और आम जनता बनाम कॉरपोरेट ताकत के बीच संघर्ष साफ नजर आता है। क्या महादेवी अब सुरक्षित और स्वस्थ जीवन जी पाएगी ? या फिर यह संघर्ष, एक हथिनी के बहाने, एक गहरे सामाजिक असंतुलन की ओर इशारा है ? यह कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि जानवरों से हमारा रिश्ता क्या सिर्फ भावनाओं और आस्था पर टिका होना चाहिए, या उन्हें भी स्वतंत्रता और गरिमा से जीने का हक है? [Rh/PS]