"राजा पर्व" ("Raja Parva") [Sora Ai]
ओडिशा

ओडिशा की एक ऐसी परंपरा जहां पीरियड्स को किया जाता है सेलिब्रेट!

राजा पर्व ओडिशा का एक ऐसा संवेदनशील और सांस्कृतिक त्योहार है जो स्त्री की प्राकृतिक प्रक्रिया मासिक धर्म (Menstruation) को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। यहां इसे शर्म की नहीं, बल्कि जीवन की उत्पत्ति और सृजन की शक्ति के रूप में देखा जाता है।

Sarita Prasad

जब आसमान में काले बादल उमड़ने लगते हैं, धरती से सोंधी महक उठती है, और हरियाली धीरे-धीरे आँखों को छूने लगती है तब ओडिशा की गलियों में एक अलग ही रौनक दिखाई देती है। यह समय होता है "राजा पर्व" ("Raja Parva") का, एक ऐसा त्योहार, जो नारीत्व, प्रकृति और वर्षा ऋतु तीनों को एक साथ मनाता है। राजा पर्व ओडिशा का एक ऐसा संवेदनशील और सांस्कृतिक त्योहार है जो स्त्री की प्राकृतिक प्रक्रिया मासिक धर्म (Menstruation) को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। यहां इसे शर्म की नहीं, बल्कि जीवन की उत्पत्ति और सृजन की शक्ति के रूप में देखा जाता है।

जब धरती होती है रजस्वला

ओडिशा की संस्कृति में धरती को सिर्फ मिट्टी नहीं, बल्कि ‘भूदेवी’ यानी धरती माता के रूप में पूजा जाता है। यहाँ यह मान्यता है कि जैसे स्त्रियाँ हर माह मासिक धर्म से गुजरती हैं, वैसे ही बरसात के आगमन के साथ धरती भी रजस्वला होती है।

Bathing Of The Earth

इसी आस्था से जुड़ा है ओडिशा का प्रसिद्ध त्योहार ‘राजा पर्व’। इस दौरान लोग मानते हैं कि धरती माँ को विश्राम की आवश्यकता है, इसलिए खेती-किसानी और उससे जुड़े सभी काम रोक दिए जाते हैं। हल चलाना, पेड़ काटना या बीज बोना वर्जित माना जाता है। इसे प्रकृति का प्राकृतिक विराम (Natural Pause) समझा जाता है, जिसमें धरती खुद को पुनः उपजाऊ और ऊर्जा से भरने के लिए तैयार करती है। यह पर्व न सिर्फ धार्मिक आस्था बल्कि प्रकृति और स्त्री के चक्र को सम्मान देने की अनोखी परंपरा भी है।

क्या है इस पर्व का इतिहास?

ओडिशा का प्रसिद्ध राजा पर्व नाम से भले ही किसी राजा-महाराजा से जुड़ा हुआ लगे, लेकिन इसका असली अर्थ बिल्कुल अलग है। दरअसल, ‘राजा’ शब्द ‘रजस्वला’ से आया है, जिसका मतलब होता है जो मासिक धर्म की अवस्था में हो।

मासिक धर्म की अवस्था

समय के साथ ‘Rajaswala’ छोटा होकर ‘राजा’ बन गया और यही इस पर्व का नाम पड़ा। इस त्योहार की जड़ें ओडिशा की उस प्राचीन परंपरा में मिलती हैं, जहाँ धरती को ‘भूदेवी’ (धरती माता) माना जाता है। यह विश्वास है कि जैसे स्त्रियाँ मासिक धर्म से गुजरती हैं, वैसे ही बरसात के आगमन के साथ धरती भी रजस्वला होती है और उसे विश्राम की ज़रूरत होती है। इसीलिए इन तीन दिनों तक हल चलाना, पेड़ काटना या बीज बोना वर्जित माना जाता है। इतिहास में यह पर्व नारीत्व के सम्मान और प्रकृति के पुनरुत्थान का प्रतीक रहा है। जहाँ समाज में अक्सर मासिक धर्म को लेकर संकोच और चुप्पी होती है, वहीं ओडिशा में इसे खुले दिल से स्वीकारते हुए खुशियों, खेलों और पारंपरिक गीतों के साथ मनाया जाता है। इस तरह राजा पर्व सिर्फ प्रकृति का उत्सव नहीं, बल्कि स्त्री शक्ति और जीवन चक्र का उत्सव भी है।

चार दिन का त्योहार, चार रंग

हालाँकि आमतौर पर इसे तीन दिनों का त्योहार कहा जाता है, लेकिन राजा पर्व दरअसल चार दिन चलता है और हर दिन की अपनी अलग पहचान है।

पहली राजा (Pahili Raja)

यह त्योहार की शुरुआत होती है। लड़कियाँ नहाती हैं, सुंदर कपड़े पहनती हैं, पान चबाती हैं और झूले पर झूलती हैं। घरों में साफ-सफाई होती है और पकवान बनने शुरू हो जाते हैं।

राजा संक्रांति (Raja Sankranti)

यह मुख्य दिन होता है। सूर्य जब मिथुन राशि में प्रवेश करता है, तभी यह दिन आता है। इसे गंभीरता और पवित्रता से मनाया जाता है। इस दिन कोई भी भूमि से जुड़ा कार्य नहीं किया जाता।

Raja Purva

बासी राजा (Basi Raja)

अब त्योहार थोड़ा शांत होता है। लोग घर में रहते हैं, अच्छे खाने का आनंद लेते हैं। सखियों के साथ गपशप, गीत और नृत्य होते हैं।

वासुमती स्नान (Vasumati Snana)

अंतिम दिन, धरती माता का प्रतीक बनाकर एक सिलबट्टे (Sil batta) को स्नान कराया जाता है। उस पर हल्दी, चंदन, फूल और सिंदूर चढ़ाया जाता है। यह एक संवेदनशील श्रद्धा का प्रतीक है, जहाँ हम धरती को एक जीवित देवी की तरह मानते हैं।

स्त्रीत्व का उत्सव

राजा पर्व असल मायने में लड़कियों और महिलाओं का त्यौहार है इन दोनों महिलाओं को किसी भी तरह के घर के काम करने नहीं दिए जाते हैं वह घर के कामों से पूरी तरह से मुक्त होती है एवं तरह-तरह की गतिविधियां करती है जैसे वह पूरे दिन झूलों पर झूलती है , गीत गाती है। इस त्यौहार के दौरान नए कपड़ों एवं आभूषण की अलग ही तरह की झलक दिखाई देती है महिलाएं पूरी तरह से नए कपड़े एवं आभूषणों से अपने आप को सजाती एवं संवारती है। ये तीन-चार दिन उनके लिए आज़ादी और आनंद का समय होते हैं।

राजा पर्व असल मायने में लड़कियों और महिलाओं का त्यौहार है इन दोनों महिलाओं को किसी भी तरह के घर के काम करने नहीं दिए जाते हैं

कटुवा पान और मछली झोल है खास पकवान

जिस प्रकार से भारत में मनाए जाने वाले हर त्यौहार एक अनोखे प्रकार के व्यंजन के साथ मनाई जाती है उसी प्रकार राजा पर्व में भी कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं इन पकवानों के बिना ऐसा कहा जाता है कि राजा पर्व का उत्साह काम हो जाता है। इस दौरान बनाए जाने वाले विभिन्न तरह के पकवान जैसे पोडा पिठा (Poda Pitha): चावल, नारियल और गुड़ से बना एक मीठा व्यंजन जो कोयले पर धीमी आंच में पकाया जाता है , साग, मांछा झोल (मछली की करी), कटुआ पान ये सभी राजा पर्व की पहचान हैं|

कटुवा पान और मछली झोल है खास पकवान

राजा पर्व केवल एक परंपरा नहीं है बल्कि एक ऐसी सोच की अभिव्यक्ति है जो हमें यह बताती है कि Periods कोई शर्म की बात नहीं है यह प्रकृति की तरफ से नारियों को दिया गया एक अद्भुत तोहफा है जिसके बिना हम इस पूरे मानव समाज की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। जहां एक और लोग मासिक धर्म पर बात करने से हिचकते हैं , तरह-तरह के दोषों से जोड़कर महिलाओं को अनेक तरह की गतिविधियों से दूर रखते हैं एवं उन्हें अपवित्र मानते हैं वहीं दूसरी और राजा पर्व हमें यह बताता है कि यह शर्म करने का नहीं बल्कि स्त्रित्व को स्वीकार करने का त्यौहार है यह पर्व नारी के शरीर को पवित्र मानने की परंपरा को आगे बढ़ाता है।

Also Read: गणपति 2025: विचार, देशभक्ति और सोशल मीडिया

आज भी ओडिशा के शहरों और गांवों में राजा पर्व उतनी ही श्रद्धा और उमंग से मनाया जाता है। स्कूलों में छुट्टियाँ होती हैं, लड़कियाँ ग्रुप बना कर झूला लगाती हैं, प्रतियोगिताएँ होती हैं, और सोशल मीडिया पर राजा गीतों की रील्स वायरल होती हैं। यह पर्व आज की पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ता है, और बताता है कि संवेदनशीलता ही असली संस्कृति है। [Rh/SP]

बिहार में स्कूल जा रही शिक्षिका की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या

हर फोन में अब अनिवार्य होगा 'संचार साथी': चोरी, फ्रॉड और फर्जी IMEI पर सरकार का बड़ा प्रहार

रानी रामपाल जन्मदिवस विशेष: भारतीय महिला हॉकी को सुनहरा दौर दिखाने वाली खिलाड़ी

अभिनेता कुणाल खेमू की वेब सीरीज 'सिंगल पापा' का ट्रेलर रिलीज

पश्चिम बंगाल : सौ रुपए के लिए युवक की हत्या मामले में दंपत्ति को आजीवन कारावास