भूत-प्रेत से रक्षा करने वाले देवता को क्यों चढ़ाया जाता है शराब का भोग?

उज्जैन और वाराणसी जैसे कई प्रसिद्ध मंदिरों में आज भी भक्त बोतल में शराब लेकर बाबा को अर्पित करते हैं और मानते हैं कि यह भोग काल भैरव को प्रसन्न करता है।कहा जाता है कि काल भैरव अत्यंत सीधे और दयालु हैं, लेकिन जो लोग बुरे कर्म करते हैं या तंत्र-मंत्र के जरिए दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं, उनके लिए वे बेहद कठोर हो जाते हैं।
इन्हें भगवान शिव का सबसे रौद्र और शक्तिशाली रूप माना जाता है। [Sora Ai]
इन्हें भगवान शिव का सबसे रौद्र और शक्तिशाली रूप माना जाता है। [Sora Ai]
Published on
6 min read

भारतीय आस्था और परंपरा में अनेक देवी-देवताओं की पूजा अलग-अलग तरीकों से की जाती है। लेकिन इनमें सबसे रहस्यमयी और आकर्षक नाम है काल भैरव (Kaal Bhairav) का। इन्हें भगवान शिव (Lord Shiva) का सबसे रौद्र और शक्तिशाली रूप माना जाता है। मान्यता है कि काल भैरव (Kaal Bhairav) सिर्फ भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी ही नहीं करते, बल्कि उन्हें भूत-प्रेत, नकारात्मक शक्तियों (Negative Energy) और काल यानी मृत्यु के भय से भी मुक्ति दिलाते हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि जहाँ अन्य देवी-देवताओं को मिठाई, फल, फूल या पंचामृत का भोग लगाया जाता है, वहीं काल भैरव को शराब का भोग चढ़ाया जाता है।

उज्जैन और वाराणसी (Ujjain and Varanasi) जैसे कई प्रसिद्ध मंदिरों में आज भी भक्त बोतल में शराब लेकर बाबा को अर्पित करते हैं और मानते हैं कि यह भोग काल भैरव (Kaal Bhairav) को प्रसन्न करता है।कहा जाता है कि काल भैरव अत्यंत सीधे और दयालु हैं, लेकिन जो लोग बुरे कर्म करते हैं या तंत्र-मंत्र के जरिए दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं, उनके लिए वे बेहद कठोर हो जाते हैं। इसीलिए उन्हें न्याय के देवता और काली शक्तियों से रक्षक भी कहा जाता है।

महाकाल को लगता है मदिरा का भोग

भारत के हर काल भैरव (Kaal Bhairav) मंदिर में एक अनोखी परंपरा देखने को मिलती है, यहाँ भक्त बाबा को मदिरा (शराब) का भोग चढ़ाते हैं। माना जाता है कि जहाँ दूसरे देवी-देवताओं को मिठाई, फल या दूध अर्पित किया जाता है, वहीं काल भैरव बाबा को प्रसन्न करने के लिए मदिरा ही एकमात्र उपाय है। उज्जैन, वाराणसी, ओंकारेश्वर और काशी के भैरव मंदिरों में रोज़ाना हज़ारों भक्त बोतलों में शराब लेकर आते हैं और उसे बाबा को समर्पित करते हैं। सबसे रहस्यमयी बात यह है कि भक्तों द्वारा अर्पित की गई शराब बाबा स्वयं स्वीकार करते हैं।

बाबा को मदिरा (शराब) का भोग चढ़ाते हैं। [X]
बाबा को मदिरा (शराब) का भोग चढ़ाते हैं। [X]

मंदिरों में स्थापित मूर्ति या पात्र में जब मदिरा चढ़ाई जाती है तो वह धीरे-धीरे अदृश्य रूप से कम होती जाती है, मानो बाबा ने उसे पी लिया हो। इस दृश्य को देख भक्तों की आस्था और गहरी हो जाती है।काल भैरव को मदिरा चढ़ाने की परंपरा के पीछे यह मान्यता है कि वे सीधे और सहज देवता हैं। उन्हें वह प्रसन्न करता है जो आम आदमी की पहुँच में है। मदिरा उनके रौद्र रूप का प्रतीक मानी जाती है और इसे चढ़ाने से वे अपने भक्तों को भूत-प्रेत, तांत्रिक बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करते हैं।

महाकाल से जुड़ी मान्यताएँ और कथा

महाकाल, जिन्हें काल भैरव (Kaal Bhairav) भी कहा जाता है, भगवान शिव का वह रूप हैं जो समय और मृत्यु के स्वामी माने जाते हैं। उनसे जुड़ी कई मान्यताएँ और कथाएँ लोक-जीवन में प्रचलित हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा ब्रह्मा जी के पंचम सिर से जुड़ी है। कहा जाता है कि एक समय ब्रह्मा जी ने अहंकारवश स्वयं को सर्वोच्च बताना शुरू किया। यह सुनकर भगवान शिव का क्रोध भड़क उठा और उन्होंने भैरव रूप धारण कर लिया। इस रूप में उन्होंने ब्रह्मा जी का पंचम सिर काट दिया।

 भगवान शिव का वह रूप हैं जो समय और मृत्यु के स्वामी माने जाते हैं।[X]
भगवान शिव का वह रूप हैं जो समय और मृत्यु के स्वामी माने जाते हैं।[X]

किंतु सिर उनके हाथ से अलग नहीं हुआ और भैरव उसे लेकर पूरे ब्रह्मांड में भटकते रहे। जब तक उन्होंने वाराणसी (काशी) में प्रवेश नहीं किया, तब तक वह सिर उनके हाथ से नहीं छूटा। तभी से काशी में काल भैरव को कोतवाल कहा जाने लगा और माना गया कि वहां बिना भैरव बाबा की अनुमति के कोई प्रवेश नहीं कर सकता। मान्यता यह भी है कि भैरव बाबा अपने भक्तों को भूत-प्रेत, तांत्रिक प्रभाव और नकारात्मक शक्तियों से बचाते हैं। यही कारण है कि उन्हें शराब, मांस, दही और तिल जैसे भोग अर्पित किए जाते हैं। आज भी वाराणसी, उज्जैन और भारत के अनेक मंदिरों में काल भैरव की पूजा विशेष श्रद्धा से की जाती है। भक्त मानते हैं कि उनकी कृपा से जीवन में भय और बाधाएँ दूर होती हैं और व्यक्ति सुरक्षित रहता है।

काशी के कोतवाल काल भैरव

वाराणसी का नाम लेते ही भगवान शिव का स्मरण होता है, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इस नगरी के वास्तविक कोतवाल काल भैरव माने जाते हैं। परंपरा है कि कोई भी व्यक्ति चाहे देवता हो, मानव हो या आत्मा काशी में प्रवेश करने से पहले काल भैरव की अनुमति प्राप्त करता है। यहां तक कि मृत्यु के बाद आत्मा भी बिना भैरव बाबा की आज्ञा के काशी से बाहर नहीं जा सकती।

वाराणसी का नाम लेते ही भगवान शिव का स्मरण होता है[Sora Ai]
वाराणसी का नाम लेते ही भगवान शिव का स्मरण होता है[Sora Ai]

दिलचस्प मान्यता यह है कि काशी में कोई अपराध हो या गलत कार्य, अंतिम न्याय भैरव बाबा ही करते हैं। कहा जाता है कि उनकी अनुमति के बिना काशी के न्यायिक और आध्यात्मिक नियम पूरे नहीं हो पाते। यही कारण है कि वाराणसी आने वाले भक्त पहले भैरव बाबा के दर्शन करते हैं और फिर काशी विश्वनाथ के दर्शन का पुण्य प्राप्त करते हैं। भक्त मानते हैं कि काल भैरव ही काशी की सुरक्षा और धार्मिक अनुशासन के रक्षक हैं।

क्या आप जानतें है भैरव बाबा की सवारी कौन है?


क्या आप जानते हैं कि काल भैरव की सवारी कौन है? बहुत से लोग इस रहस्य से अनजान हैं। दरअसल, कुत्ता ही भैरव बाबा की सवारी माना जाता है। हिंदू शास्त्रों में कुत्ते को वफादारी, साहस और निडरता का प्रतीक बताया गया है। इसी कारण भैरव बाबा के साथ कुत्ते का विशेष संबंध जुड़ा है। वाराणसी और अन्य भैरव मंदिरों में आज भी एक खास परंपरा देखने को मिलती है, भैरव बाबा के कुत्ते को भोजन कराना।

 भैरव बाबा के साथ कुत्ते का विशेष संबंध जुड़ा है। [Wikimedia Commons]
भैरव बाबा के साथ कुत्ते का विशेष संबंध जुड़ा है। [Wikimedia Commons]

भक्त मानते हैं कि जब कोई व्यक्ति कुत्तों को रोटी, दूध या मांस खिलाता है, तो वह सीधे भैरव बाबा को भोग अर्पित करने के समान होता है। ऐसा करने से न केवल भक्त की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, बल्कि घर-परिवार पर भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों का असर भी समाप्त हो जाता है। यही वजह है कि भैरव पूजा में कुत्तों को भोजन कराना शुभ और अनिवार्य माना जाता है।

तंत्र साधना के देवता के है कई रूप

काल भैरव को तंत्र साधना का अधिष्ठाता माना गया है। तांत्रिक और साधक विश्वास करते हैं कि उनकी साधना से असाधारण शक्तियाँ और अद्भुत सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। भैरव साधना से भक्तों को न केवल आत्मबल मिलता है, बल्कि वह भय, भूत-प्रेत और नकारात्मक ऊर्जाओं पर भी विजय प्राप्त करता है। यही कारण है कि तंत्र साधना में भैरव बाबा की उपासना सर्वोच्च मानी जाती है। बहुत कम लोग जानते हैं कि भैरव केवल एक रूप तक सीमित नहीं हैं। उन्हें अष्ट भैरव कहा जाता है। असितांग भैरव, रुरु भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, कपाल भैरव, भैषण भैरव, संहार भैरव और भीषण भैरव। इन आठों रूपों का अपना विशेष महत्व है। कोई रक्षा का प्रतीक है, कोई विनाशकारी शक्तियों का, तो कोई साधना और ज्ञान का दाता है। अष्ट भैरव मिलकर साधक को जीवन के हर संकट से उबारते हैं और उसे अद्वितीय आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करते हैं।

Also Read: संथारा और विवाद: आस्था के नाम पर जीवन का त्याग सही या गलत?

काल भैरव केवल एक देवता नहीं, बल्कि आस्था, रहस्य और शक्ति का ऐसा स्वरूप हैं जो भक्तों को हर संकट से उबारते हैं। उनकी पूजा में शराब का भोग, कुत्तों को भोजन कराना और अष्ट भैरव की साधना इन परंपराओं में गहरे आध्यात्मिक अर्थ छिपे हैं। वाराणसी के कोतवाल के रूप में वे न्याय और अनुशासन के रक्षक हैं, वहीं तंत्र साधना में वे अद्वितीय सिद्धियों के दाता माने जाते हैं। जो भी उनके शरण में आता है, उसे भय, भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। इसलिए काल भैरव की भक्ति केवल पूजा नहीं, बल्कि सुरक्षा और आत्मबल का अनुभव है। [Rh/SP]

इन्हें भगवान शिव का सबसे रौद्र और शक्तिशाली रूप माना जाता है। [Sora Ai]
जब देवी भी होती हैं रजस्वला! जानिए कामाख्या मंदिर का चौंकाने वाला रहस्य

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com