कहानी है ओडिशा के अंडा जिला के खुर्दा गांव में रहने वाले शंकर साहू की। [Sora Ai] 
ओडिशा

दिहाड़ी से किताबों तक, कैसे बदली एक साधारण मज़दूर की ज़िंदगी!

शाहरुख खान की फिल्म का एक प्रसिद्ध डायलॉग है : “किसी चीज को अगर शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है”। ये सिर्फ़ डायलॉग नहीं है बल्कि किसी किसी के लिए एक मोटिवेशन भी है। आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी बताएंगे जिन्होंने शाहरुख खान के इस डायलॉग को सच कर दिखाया।

न्यूज़ग्राम डेस्क

शाहरुख खान की फिल्म का एक प्रसिद्ध डायलॉग है : “किसी चीज को अगर शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है”। ये सिर्फ़ डायलॉग नहीं है बल्कि किसी किसी के लिए एक मोटिवेशन भी है। आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी बताएंगे जिन्होंने शाहरुख खान के इस डायलॉग को सच कर दिखाया। ओडिशा (Odisha) के इस शख्स ने न सिर्फ़ अपने सपनों को पूरा किया बल्कि कई ऐसे लोगों के लिए रास्ते खोल दिए जो मजबूरी या फिर कम पढ़ें लिखें होने की वजह से खुद को कमज़ोर समझते हैं। तो आइए एक राजमिस्त्री की कहानी समझते जिन्हेंने एक राजमिस्त्री से एक लेखक (A writer from the Masons) तक का सफ़र तय कर दुनिया के सामने एक मिसाल खड़ा कर दिया।

कहानी शंकर साहू की

कहानी है ओडिशा (Odisha) के अंडा जिला के खुर्दा गांव में रहने वाले शंकर साहू (Shankar Sahu) की। शंकर साहू एक दिहाड़ी मजदूर थे और राजमिस्त्री का काम किया करते थें, कुछ साल पहले तक शंकर साहू (Shankar Sahu) मजदूरी करते और शराब के नशे में धुत रहते थे। शंकर साहू ने काफी कम उम्र से ही मजदूरी करना शुरू कर दिया था क्योंकि उनके घर में पैसे की कमी हुआ करती थी तो वह पढ़ाई के साथ-साथ मजदूरी कर पैसा भी कमाया करते थे और एक समय के बाद मजदूरी ही उनके जीवन का हिस्सा बन गई।

वह पढ़ाई के साथ-साथ मजदूरी कर पैसा भी कमाया करते थे [Sora Ai]

शंकर साहू (Shankar Sahu) कर भाई हैं और अपनी पढ़ाई अपने खर्च उठाने के लिए काम करते थे क्योंकि उनके पिता के पास इतना पर्याप्त पैसा नहीं हुआ करता था कि वह चारों भाई का खर्चा उठा सके। शंकर साहू के जीवन में एक ऐसा समय आया जब वह पढ़ाई और काम दोनों एक साथ नहीं कर पा रहे थे तब उन्होंने घर की स्थिति को देखते हुए अपनी पढ़ाई को छोड़ दिया और पैसे कमाने शुरू किए।

बचपन से जवानी तक, मजदूरी ही रही साथी

शंकर साहू (Shankar Sahu) का जीवन बचपन से लेकर जवानी तक केवल मजदूरी में ही कटने लगा। उनका परिवार इतना गरीब था कि दो वक्त की रोटी जुटा पाना भी मुश्किल हो जाता था, और इसलिए पढ़ाई छोड़कर उन्होंने घर के खर्च चलाने का निर्णय लिया लेकिन पढ़ाई में शंकर साहू की दिलचस्पी इतनी अधिक थी कि वह उनका पीछा नहीं छोड़ पाए।

शंकर साहू जी का स्कूल तो बचपन में छूट गया लेकिन उनका इतिहास प्रेम यानी इतिहास के प्रति उनकी रुचि कभी खत्म नहीं हुई। [X]

शंकर साहू (Shankar Sahu) जी का स्कूल तो बचपन में छूट गया लेकिन उनका इतिहास प्रेम यानी इतिहास के प्रति उनकी रुचि कभी खत्म नहीं हुई। उन्हें जब भी समय मिलता वह इतिहास पढ़ने बैठ जाया करते थे और उनकी इसी रुचि ने उन्हें आज एक ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है जिसकी कल्पना कर पाना एक साधारण से मनुष्य के लिए थोड़ा मुश्किल है।

एक बुक फेयर से बदली जिंदगी

शंकर साहू (Shankar Sahu) जी अपने साक्षात्कार में बताते हैं कि एक दिन उनकी साइकिल खराब हो गई और वह जहां साइकिल बनवाने गए उसके पास ही एक बुक फेयर लगा था उन्होंने बिना सोचे समझे जितने पैसे थे उतने पैसों की किताबें खरीद ली। उन्हें बुक फेयर में एक किताब मिली जिसका नाम था ‘भांजा गढ़ इतिहास’, जिसे डॉ. प्रदीप कुमार पटनायक ने लिखा था। उसी किताब में लेखक का नंबर भी था।

एक दिन उनकी साइकिल खराब हो गई और वह जहां साइकिल बनवाने गए उसके पास ही एक बुक फेयर लगा था [Sora Ai]

शंकर साहू ने डॉ प्रदीप कुमार को कॉल किया और उनसे किताब के बारे में जानकारी लेनी शुरू कर दी। उनका एक सवाल, आखिर एक लेखक एक किताब को लिखने के लिए कितनी किताबें पढ़ना होगा? ने प्रदीप कुमार को खुश कर दिया और फिर उन्होंने शंकर साहू के जीवन में एक बदलाव लाने में एक अहम भूमिका निभाई।

शराब की लत से किताब की लत का सफ़र

शंकर साहू बताते हैं कि एक समय था जब उन्हें शराब की बहुत बुरी लत लगी थी वह शराब में डूबे रहते थे लेकिन जब उन्हें प्रदीप कुमार का मार्गदर्शन मिला और उनकी मदद से जब उन्होंने पहले किताब लिखनी शुरू की तब वह शराब की लत से किताब की लत में डूब चुके थे। शंकर साहू के पास जितनी भी किताबें मौजूद थी उन सभी को पढ़कर यहां तक की लाइब्रेरी से भी किताबें पढ़ पढ़ कर उन्होंने अपने जीवन की पहली किताब लिखी, जिसका नाम था ‘ओडिशा रा प्राचीन राज्य ओ राज्यवंशाबली’। इस किताब को पूरा करने में शंकर साहू को लगभग 5 वर्ष का समय लग गया।

उन्होंने अपने जीवन की पहली किताब लिखी, जिसका नाम था ‘ओडिशा रा प्राचीन राज्य ओ राज्यवंशाबली’। [Sora Ai]

शंकर साहू बताते हैं कि जब उन्होंने किताब लिखनी शुरू की तब उनके पास घर बनाने तक के पैसे नहीं थे और आज वह एक झोपड़ी में रहते ज़रूर हैं, लेकिन किताबों के लिए एक अलग कमरा है जिसमें हजार से भी अधिक किताबें मौजूद हैं।

पीएचडी स्टूडेंट्स को मिलती है मदद

शंकर साहू अब तक 11 किताबें लिख चुके हैं और 12वीं किताब खत्म करने के कगार पर है। उनकी 12वीं किताब पाइका विद्रोह पर है। कई प्रोफेसरों को उन्होंने गलत साबित किया कि पाइका विद्रोह 1700 में नहीं, बल्कि 1800 में ओडिशा में शुरू हुआ था। आपको बता दें कि शंकर साहू की किताब में इतनी अधिक जानकारी होती है कि एचडी के छात्र-छात्राएं अपनी रिसर्च पेपर के लिए उनकी किताबों को फॉलो करते हैं। उन्होंने अपनी पहली किताब के बारे में बताते हुए कहा कि जब पहली किताब छापने के लिए पब्लिशर ढूंढे जा रहे थे तो लगभग सभी ने उनकी किताब को छापने से मना कर दिया लेकिन फिर चंडी पब्लिशर ने उनकी किताब छपी जिसके आज 2000 से भी अधिक कॉपीज बिक चुकी हैं। शंकर साहू का सपना है कि वह अपने जीवन में 100 से अधिक किताबें लिखें।

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हम अक्सर सोचते हैं कि सफलता सिर्फ अमीरों, पढ़े-लिखों या खास लोगों के लिए होती है। लेकिन इस कहानी ने बता दिया कि सपना देखने का अधिकार सबको है, और उन्हें पूरा करने का साहस भी सबके भीतर होता है, बस जरूरत होती है उसे पहचानने की। तो अगली बार जब ज़िंदगी से हार मानने का मन हो, तो इस शख्स को याद करिए, जिसने शराब छोड़ दी, शब्द पकड़ लिए और अब ओडिशा में खूब नाम कमा रहें हैं । [Rh/SP]

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