तेलंगाना (Telangana) के संगारेड्डी ज़िले का नल्लाकुंटा झील (Nallakunta Lake) विवाद इन दिनों सुर्खियों में है। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो ने लोगों का ध्यान खींचा है। इस वीडियो में स्थानीय किसान यह आरोप लगाते नज़र आ रहे हैं कि झील का पानी इतना प्रदूषित हो गया है कि खेती पूरी तरह से बर्बाद हो रही है। इस झील के चारों तरफ से दम घोंटने वाली बदबू आ रही थी। स्थिति यह थी कि बिना नाक पर रुमाल बांधे वहां रुकना संभव ही नहीं था। 22 एकड़ में फैली यह झील का पानी पूरा लाल रंग (Red Water) का हो चुका था। झील के चारों ओर का दृश्य देखकर किसानों की पीड़ा साफ झलक रही थी, क्योंकि किसानों की खेती पर इसका असर पड़ रहा था।
इस पर स्थानीय किसान स्वेच्छा रेड्डी ने कहा, कि "हवा और पानी दोनों की हालत बिगड़ चुकी है। यहां हम सांस भी दूषित ले रहें हैं। यह तो पर्यावरण के साथ खिलवाड़ है।" गांव के कई किसानों का आरोप है कि पास की हेटेरो ड्रग्स फैक्ट्री का गंदा पानी झील में मिल रहा है। उसके बाद किसान बताते हैं कि फैक्ट्री से निकलने वाला प्रदूषित पानी एयरफोर्स अकादमी के रास्ते झील तक पहुंचता है। पांच एकड़ में धान की खेती करने वाले स्वेच्छा रेड्डी ने कहा, कि "यह पानी खेतों में जाता है और इससे फसल खराब हो रही है। इसकी वज़ह से हमारी लागत तक निकलना नहीं निकल पाता है।"
हालांकि, हेटेरो कंपनी ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है। कंपनी के इंजीनियर नागराजू का कहना है कि उनकी यूनिट से बाहर कोई गंदा पानी नहीं जाता है। कंपनी का कहना है कि "हमारे पास ज़ीरो लिक्विड डिस्चार्ज सिस्टम है। पानी को साफ करके फैक्ट्री के अंदर ही इस्तेमाल किया जाता है।" लेकिन सवाल यह है कि अगर फैक्ट्री से पानी नहीं आ रहा है, तो अचानक झील का रंग इतना कैसे बदल गया ? आपको बता दें नल्लाकुंटा झील का गंदा पानी आगे राजनाला झील तक पहुंच जाता है। इन दोनों झीलों के बीच लगभग 300 एकड़ ज़मीन है, जहां धान और सब्ज़ियों की खेती होती है। लेकिन इस ज़मीन पर भी संकट मंडरा रहा है।
किसान मंगैया बताते हैं, कि "पहले झील बिल्कुल साफ रहती थी, और पहले झील में पानी जंगल से आता था। लेकिन कंपनी आने के बाद से ही प्रदूषण की समस्या शुरू हुई।" स्वेच्छा रेड्डी ने कहा कि इस समस्या से धान की फसल में दाना ही नहीं बन रहा है, केवल पत्ते ही निकल रहे हैं। उन्होंने दुख जताते हुए कहा कि "खेती बर्बाद हो गई है, खेती में जो लागत लगता है, वह भी नहीं निकल रहा है।"
यह सिर्फ पहली बार ऐसा नहीं हुआ है जब नल्लाकुंटा झील (Nallakunta Lake) प्रदूषण के कारण चर्चा में आई हो। किसानों ने बताया कि 2012 में भी झील का पानी दूषित हो गया था। तब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जांच की और 2013 में कंपनी को नोटिस भेजा। इसके बाद सरकार के आदेश पर टैंकर से झील का गंदा पानी निकलवाया गया।
गांव के किसान कृष्णा रेड्डी बताते हैं, "उस वक्त हमने आंदोलन किया था। सरकार ने कंपनी को आदेश दिया कि झील को साफ करें, उसके बाद कंपनी को झील करनी पड़ी।" लेकिन किसान जयपाल रेड्डी कहते हैं कि "समस्या हर साल दोहराई जाती है। इस बार तो हालात और भी ज्यादा खराब है। झील पूरी तरह से लाल हो चुकी है।"
हेटेरो कंपनी का कहना है कि झील का लाल रंग (Red Water) सिर्फ प्रदूषण से नहीं है। आपको बता दें नागराजू के मुताबिक, "इसका कारण बैक्टीरिया, शैवाल और फंगस भी हो सकते हैं। उनका मानना है कि इस झील (Nallakunta Lake) का रंग बस ऊपर सतह पर ही दिखाई देता है।" जब उनसे बदबू और झाग के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि यह घरों का गंदा पानी हो सकता है। उन्होंने दोहराया कि फैक्ट्री से कोई रासायनिक गंदगी नहीं जाती है।
इस पूरे मामले में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी सक्रिय हुआ है। संगारेड्डी ज़िले के इंजीनियर कुमार पाठक ने कहा, कि "इस झील को लेकर पहले भी शिकायतें आई थी। इस झील का टास्क फोर्स ने जांच कर दी है। लेकिन अब भी रिपोर्ट का इंतज़ार है।
किसानों का कहना है कि अगर इसका जल्द से जल्द समाधान नहीं निकाला गया, तो यहां खेती करना नामुमकिन हो जाएगा। यह सिर्फ एक गांव की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे इलाके की कृषि पर असर डाल रही है। किसान बार-बार सरकार और प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं। उनका कहना है कि अगर प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो आने वाले सालों में खेती छोड़कर पलायन करना ही एकमात्र विकल्प रह जाएगा।
निष्कर्ष
तेलंगाना (Telangana) की यह घटना सिर्फ एक झील तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सवाल खड़ा करती है कि विकास और उद्योगों की कीमत आखिर कौन चुका रहा है? किसान कहते हैं कि फैक्ट्री ने उनकी ज़मीन और फसल छीन ली है, जबकि कंपनी अपनी सफाई दे रही है। सच चाहे जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि झील का लाल पानी (Red Water) और बदबू भरा माहौल सिर्फ किसानों की नहीं, बल्कि पूरे समाज की चिंता का विषय बन गया है। जब तक निष्पक्ष जांच नहीं होगी और जिम्मेदार पक्ष पर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक किसान और उनकी फसलें दोनों खतरे में रहेंगे।
यह खबर अब सिर्फ संगारेड्डी या तेलंगाना तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए चेतावनी है कि अगर प्रदूषण पर समय रहते काबू नहीं पाया गया, तो नतीजे बेहद खतरनाक हो सकते हैं। [Rh/PS]