OBC Certificate : हाई कोर्ट ने पाया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य सरकार ने आरक्षण देने के लिए केवल धर्म को एकमात्र आधार बनाया, जो संविधान और अदालत के आदेशों के खिलाफ है। (Wikimedia Commons) 
पश्चिम बंगाल

कलकत्ता हाईकोर्ट ने रद्द किए लाखों ओबीसी सर्टिफिकेट

न्यूज़ग्राम डेस्क

OBC Certificate: कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा मार्च 2010 से मई 2012 के बीच मुस्लिम रिजर्वेशन के लिए पारित सभी आदेश रद्द कर दिये। सरकार इन आदेशों के द्वारा मुस्लिम समुदाय की 75 जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत आरक्षण दिया था। हाई कोर्ट में जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और राजशेखर मंथा की डिवीजन बेंच ने पाया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य सरकार ने आरक्षण देने के लिए केवल धर्म को एकमात्र आधार बनाया, जो संविधान और अदालत के आदेशों के खिलाफ है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपना ये फैसला ऐसे वक्त में दिया है, जब लोकसभा चुनाव में मुस्लिम आरक्षण एक बड़ा मुद्दा है।

कब और कैसे मिला आरक्षण?

साल 2010 में ममता बनर्जी से पहले लेफ्ट की सरकार ने ओबीसी कोटा में रिजर्वेशन के लिए 42 जातियों को चिन्हित किया था, जिसमें कुल 41 मुस्लिम वर्ग से आने वाली जातियां थीं। इसके अलावा जब साल 2011 में ममता बनर्जी की अगुवाई में तृणमूल कांग्रेस की सरकार आई तो 2012 में 35 और जातियों को ओबीसी कोटे में रिजर्वेशन दिया, जिसमें 34 मुस्लिम वर्ग से आने वाली जातियां थीं।

साल 2011 में तृणमूल कांग्रेस की सरकार आई तो 2012 में 35 और जातियों को ओबीसी कोटे में रिजर्वेशन दिया, जिसमें 34 मुस्लिम वर्ग से आने वाली जातियां थीं। (Wikimedia Commons)

ओबीसी को बांट दिया गया दो कैटेगरी में

साल 2010 में 5 मार्च से लेकर 24 सितंबर के बीच, पश्चिम बंगाल सरकार ने एक ही तरह के कई नोटिफिकेशन जारी किये। नोटिफिकेशन में 42 जातियों को, जिनमें से 41 मुस्लिम समुदाय से थे, को ओबीसी कैटेगरी में शामिल किया गया। ऐसा करने पर उन्हें संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत सरकारी नौकरियों में आरक्षण और प्रतिनिधित्व का अधिकार मिला। इसके बाद 24 सितंबर 2010 को ही राज्य सरकार ने एक और आदेश जारी किया, जिसके जरिये ओबीसी की 108 जातियों (66 पहले वाले और 42 नए) को ए और बी कैटेगरी में बांटा। 56 को ओबीसी-ए (अति पिछड़ा) और 52 को ओबीसी-बी (पिछड़ा) कैटेगरी में रखा गया।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

साल 2011 में यह मामला पहली बार कोर्ट गया। याचिका में कहा गया कि ’42 नई जातियों को ओबीसी में शामिल करने का फैसला पूरी तरह से धर्म आधारित है। हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई में ‘इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार’ केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाया। इस केस में 9 जजों की पीठ ने 1992 में माना था कि ओबीसी की पहचान केवल धर्म के आधार पर नहीं की जा सकती और उन्हें आरक्षण नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि सभी राज्यों को ओबीसी सूची में किसी जाति को शामिल करने और उनकी पहचान के लिए एक पिछड़ा वर्ग आयोग स्थापित करना चाहिए।

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