आम आदमी पार्टी के स्थापना दिवस के अवसर पर पार्टी के पूर्व एन.आर.आई सहसंयोजक डॉ मुनीश रायज़ादा ने इस दिन को " काला दिवस " कह कर वर्णित किया है ।
साल 2012 में 26 नवंबर को, अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में, देश की राजनीतिक संस्कृति को नई शक्ल देने की मंशा से पार्टी का गठन हुआ था। और नतीजतन 2013 में आम आदमी पार्टी, राजधानी दिल्ली की कुर्सी पर विराजमान हो गई।
'आप' ने मूलतः तीन सिद्धांतों को पार्टी का आधार बताया था। पहला – चंदा की पारदर्शिता, दूसरा – आंतरिक स्वराज, और तीसरा – आंतरिक अंकुश। इन सिद्धांतों के माध्यम से पार्टी ने सियासत और समाज के बीच की खाई को कम करने, और पार्टी के भीतर लोकतंत्र का आवाहन कर, सम्पूर्ण पारदर्शिता के साथ, परिवर्तन की बुनियाद रखने की अपनी प्रबल इच्छा को स्पष्ट किया था।
इस ओर डॉ मुनीश रायज़ादा का कहना है कि बीते सात सालों में, पार्टी ने पैसे से सत्ता और सत्ते से पैसा कमाने की दौड़ में पारदर्शिता को धूमिल कर निराशावाद सियासत का उदाहरण पेश किया है।
यह भी पढ़ें – 'ट्रांसपेरेंसी: पारदर्शिता' देखने के बाद !
डॉ रायज़ादा ने अपनी असंतुष्टता को डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ 'ट्रांसपेरेंसी:पारदर्शिता' से और व्यापक कर दिया है। डॉक्यूमेंट्री के निर्माता – निर्देशक वह स्वयं है ।
काले धन की राजनीति और चंदा चोरी की ओर इशारा करती हुई इस डॉक्यूमेंट्री ने कई फैसलों पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जैसे कि इलेक्टोरल बॉण्ड ।
देश में अव्यवस्थित पारदर्शिता को 'ट्रांसपेरेंसी:पारदर्शिता' डॉक्यूमेंट्री के गीत भी प्रत्यक्ष रूप से सामने लाते हैं। उदित नारायण की आवाज़ में 'कितना चंदा जेब में आया' गीत की एक पंक्ति में अन्नू रिज़वी ने लिखा है, "पारदर्शिता पानी जैसी, ये ना हो तो ऐसी तैसी।"