हाल ही में दूध एवं गाय को लेकर PETA (पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स) द्वारा नए प्रोपेगैंडा को जन्म दिया गया है, इसके उपरांत PETA पर आलोचनाओं की बौछार होना स्वाभाविक है। PETA ने देश में दूध उत्पादन में मुख्य भूमिका निभा रही कंपनी अमूल को एक खत लिखा था, जिस पत्र में उसने लिखा कि गाय से निकाले गए दूध, पशु पर प्रताड़ना के समान है। जिस वजह से उसने AMUL को गाय का दूध छोड़कर पौधे आधारित दूध का उत्पादन करने का सुझाव दिया है।
PETA India के अनुसार डेयरी उत्पादों की वजह से ही गायों के वध में वृद्धि होती है। किन्तु इस तर्क का ना तो सर है और न ही पांव, लेकिन एक प्रोपेगैंडा के तहत देश में इस पत्र के माध्यम से नए विवाद को जन्म देना ही एक मात्र मंशा दिखाई दे रही है। पेटा का यह मानना है कि डेयरी उद्योग के कारण ही गौमांस उद्योग चल रहा है क्योंकि दूध न देने वाली गायें और गैर जरूरी बछड़े कसाइयों को बेच दिए जाते हैं। किन्तु यह तर्क उस समय कहाँ गायब हो जाता है जब PETA से यह सवाल पूछा जाता है कि यदी इन उद्योगों को रोक दिया गया तो इन गायों का क्या होगा?
PETA India के इस पत्र का उत्तर AMUL ने तर्कपूर्ण तरीके से दिया है। अमूल के प्रबंध-निदेशक आर.एस सोढी ने ट्वीट कर कहा है कि "पेटा इंडिया चाहता है कि हम दस करोड़ गरीब किसानों की आजीविका छीन लें। और वह 75 साल में किसानों के साथ मिलकर बनाए अपने सभी संसाधनों को किसी बड़ी एमएनसी कम्पनियों द्वारा जेनेटिकली मॉडिफाई किये गए सोया उत्पादों के लिए छोड़ दें, वह भी उन महंगी कीमतों पर, जिन्हें औसत निम्न एवं मध्यवर्गीय व्यक्ति खरीद नहीं सकता है।"
आर एस सोढी ने यह भी पूछा कि "क्या वे 10 करोड़ डेयरी किसानों (70% भूमिहीन) को आजीविका देंगे, उनके बच्चों की स्कूल फीस का भुगतान करेंगे?"
PETA India के इसी पत्र का जवाब देते हुए स्वदेशी जागरण मंच राष्ट्रीय सह संयोजक अश्विनी महाजन ने ट्वीट कर लिखा कि "क्या आप नहीं जानते कि डेयरी उत्पादन करने वाले किसान ज्यादातर भूमिहीन हैं? आपके सुझाव उनकी आजीविका के एकमात्र स्रोत को खत्म कर सकते हैं। ध्यान रहे दूध हमारी आस्था, हमारी परंपराओं, हमारे स्वाद, हमारी खान-पान की आदतों में पोषण का एक आसान और हमेशा उपलब्ध स्रोत है।"
आपको बता दें की PETA India जिस 'वेगन मिल्क' की बात कर रहा है उसके पोषक तत्व दूध की तुलना में बहुत कम है। साथ ही वह वेगन दूध आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की पहुँच से बाहर है। भारतीय संस्कृति और खासकर हिन्दू धर्म में गाय के दूध को पौष्टिक के साथ-साथ पवित्र भी माना गया है, और इसलिए गाय के प्रति आस्था और अधिक अटूट हो जाती है। PETA India को इस खत की वजह से ही आलोचनाओं का सामना करना पड़ा और इस समय भी वह यही कर रहा है।
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अमूल के उपाध्यक्ष (वीसी) वलमजी हुंबल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एनजीओ PETA (पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स) पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है, जिसमें ऐसे अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों द्वारा 10 करोड़ दूध उत्पादकों की आजीविका को बर्बाद करने और देश के दूध उद्योग की छवि खराब करने की षड्यंत्र रचने का संदर्भ दिया है।
PETA एक विदेशी गैर सरकारी संगठन है जो भारत को छोड़कर विश्व के अन्य देशों में हो रहे जानवरों की क्रूरता पर आवाज उठाता है। लेकिन भारत में कदम रखते ही इसके तेवर और मंशा दोनों में बदलाव दिखाई देते हैं। हाल ही डेयरी उद्योग पर दिए सुझाव, इस बात का सटीक उदाहरण है। वह इसलिए क्योंकि इसने दूध उद्योग पर सुझाव दिया मगर बूचड़खानों को बंद या खत्म करवाने के समय मौन एवं अप्रत्यक्ष हो गया। रक्षाबंधन पर इसके द्वारा चमड़े के इस्तेमाल को रोकने के लिए तो पोस्टर जारी किया गया, किन्तु जिन अभिनेत्रियों के साथ यह 'वेगन' या शाकाहारी होने का अपना भी विज्ञापन गढ़ रहा होता है, उन्हीं अभिनेत्रियों द्वारा लाखों रुपयों के चमड़े से बना कपड़ा पहना जाता है और इस पर PETA मूक-दर्शक बना इधर-उधर देखता रहता है। यह दोहरा मापदंड ही जो लम्बे समय से भारत में PETA की बदनामी का कारण बना हुआ है।