महामारी के दौर में जब हर तरफ कोरोना से बचने की और उससे जुड़े सवालों पर मीडिया दिन-रात नई बहस कर रहा होता है तब उसी बीच नए संस्करण या वेरिएंट को भी याद किया जाता है। किन्तु, कमाल की बात यह है कि इस महामारी का वैज्ञानिक नाम न लेते हुए इसे देश से जोड़ दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर भारत में कोरोना के नए संस्करण का नाम है B.1.617 है, किन्तु विश्वभर की मीडिया में इसे Indian Variant के नाम से लिखा और पढ़ा जाता है।
यह वही मीडिया है जिन्हें इस बात पर आपत्ति थी कि किसी वायरस को चीनी वायरस या Chinese Virus कैसे बुला सकते हैं? लेकिन अब यही मीडिया यूके वेरिएंट, इंडियन वेरिएंट का राग अलाप रहा है। जिस वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इस पर सफाई देते हुए कहा कि " डब्ल्यूएचओ उन देशों के नामों के साथ वायरस या वेरिएंट की पहचान नहीं करता है, जिनमें वे पहले रिपोर्ट किए गए हैं। हम उन्हें उनके वैज्ञानिक नामों से संदर्भित करते हैं और निरंतरता के लिए सभी से ऐसा ही करने का अनुरोध करते हैं,"
बड़े मीडिया वेबसाइट जैसे BBC, The Guardian, The New York Times ने अपने लेखों में सीधा-सीधा यह हैडलाइन लिखा है कि "WHO ने चेतावनी दी है कि भारत का घरेलू वायरस संस्करण अत्यधिक संक्रामक हो सकता है", किन्तु गौर करने वाली बात यह है कि स्वयं WHO ने यह स्पष्टीकरण दिया है कि किसी देश के नाम का इस्तेमाल वायरस के संस्करण से नहीं किया जाता है। तो क्या यह एक प्रोपगैंडा का हिस्सा है? या कोविड के नाम पर चीन को बचाने की कोशिश?
चीन का नाम आ ही गया है तो यह सोचना अति-आवश्यक हो गया है कि जब कोरोना का केंद्र चीन था तब उसने इस महामारी को फैलने के लिए पूरा समय दिया और अब डब्ल्यू.एच.ओ के जाँच समूह द्वारा वुहान में किए जाँच के बाद दिए नतीजे से सभी देश संतुष्ट नहीं हैं। साथ ही गौर करने वाली यह बात भी है कि जाँच टीम में चीन के जांचकर्ता विदेशियों से ज्यादा थे। जिससे जाँच पर प्रभाव पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। एक और बात की जांचकर्ताओं के जवाब में मतभेद भी दिख रहा है।
(Pixabay)
टीम में एक डच वायरोलॉजिस्ट मैरियन कोपमैन ने कहा था कि "हुआनान सीफूड मार्केट(वुहान) के कुछ जानवर खरगोश और बांस के चूहों सहित वायरस के लिए अति-संवेदनशील थे और कुछ का पता उन क्षेत्रों के खेतों या व्यापारियों से लगाया जा सकता है जो चमगादड़ों के घर हैं, इन्हे कोविड -19 का कारण मान सकते हैं।" वहीं चीनी टीम के शीर्ष लिआंग वानियन का मानना है कि यह वायरस किसी और शहर में जन्मा हो इसकी संभावना भी है। साथ ही यह भी कहा कि "टीम को इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि दिसंबर 2019 की दूसरी छमाही में शुरुआती प्रकोप से पहले यह बीमारी व्यापक रूप से फैल रही थी।"
अब सोशल मीडिया पर इंडियन वेरिएंट का साजिशन नाम लेकर भारत को कोसा जा रहा है। एक पत्रकार ने ट्वीटर पर लिखा कि "तो संक्षेप में भारतीय संस्करण का अर्थ यह हो सकता है कि हम अधिक समय तक सामान्य स्थिति में नहीं लौटेंगे और भारतीय संस्करण यहां ब्रेक्सिट और बोरिस जॉनसन के भारत के साथ एक आकर्षक व्यापार सौदा करने के दृढ़ संकल्प के कारण है। सबने बहुत अच्छा किया। अच्छा काम।"
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बहरहाल, अब इन सभी का केंद्र भारत है, ऐसा मीडिया रिपोर्ट और अंतराष्ट्रीय चैनलों पर दिखाया जा रहा है। इससे पहले मरिया वर्थ जो ऐसे ही मामलों पर बहुधा अपने ब्लॉग के द्वारा सवाल उठाती रहती हैं, उन्होंने भी अंतराष्ट्रीय मीडिया पर महामारी के दौरान कई भ्रामक खबरें फैलाने का आरोप लगाया है।
इस महामारी से लड़ाई पूरा विश्व लड़ रहा है, कोई जीत के करीब है तो कोई सामान्य स्थिति बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। भारत भी उन्ही देशों में से एक है, जहाँ कोरोना वारियर्स और प्रशासन यह पूरी कोशिश कर रहा है कि स्थिति को वापस स्थिर बना दिया जाए और उनकी यह कोशिश रंग लाती भी दिख रही है। किन्तु इस बीच कोरोना वायरस के नए रूप को भारतीय संस्करण या Indian Variant बताने से कहीं न कहीं भारत को नीचा दिखाने की पहल की जा रही है और यह सिर्फ भारत के साथ ही नहीं UK, अफ्रीका जैसे देशों के नाम के साथ वेरिएंट शब्द जोड़कर भी ऐसी ही खबरें फैलाई जा रही हैं।