भारत एक खूबसूरत देश है जो अपनी अलग संस्कृति, परंपरा, भाषा, रंग, वेशभूषा, धर्म और खानपान के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। भारत का संविधान भारत के सभी लोगों को एक समान देखता है। भारत का कानून सभी धर्म, जात आदि के लिए एक समान है, परंतु जब बात आती है, भारत के संविधान को जमीनी हकीकत पर लागू करने की तो भारत में सरकारें ऐसा करने में चूक जाती है, क्योंकिऐसा प्रतीत होता है कि कुछ सरकारों का झुकाव एक धर्म विशेष की ओर ज्यादा होता है ताकि वह अपनी वोट बैंक वाली राजनीति को बेरोकटोक चला सके।
उदाहरण के तौर पर : पश्चिम बंगाल की सरकार ने घोषणा की है कि पिछले साल की तरह इस साल भी लोगों को पांडाल में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, लेकिन हम आपको बता दें यह वही राज्य है जहां महामारी के दूसरी चरण पर सभी राजनेताओं ने विधानसभा चुनाव के लिए रैलियां निकाली थी, जिसमें प्रचार के दौरान भारी मात्रा में भीड़ जमा हुई थी। उसके लिए कोई कोविड -19 प्रतिबंध नहीं देखा गया था। लेकिन दुर्गा पूजा के दौरान, राज्य को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। इतना पक्षपात क्यों, यह विचार करने वाला विषय है।
राजस्थान ने भी 1 अक्टूबर से 31 जनवरी 2022 तक पटाखों की बिक्री और फोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है। परंतु वही जब लोग नए साल पर पटाखे फोड़ते हैं तो उस पर कोई प्रतिबंध नहीं लगता। हमारी बात खीर की तरह मीठी नहीं है, लेकिन नीम की कड़वी है लेकिन सत्य है। बात अगर प्रदूषण की करें तो दिवाली पर पटाखे फोड़ने और नए साल, दोनों पर पटाखे फोड़ने पर भी प्रदूषण होता है लेकिन पटाखे की बिक्री और उसे फोड़ने पर प्रतिबंध सिर्फ दिवाली पर ही क्यों? क्या कोविड-19 सिर्फ हिंदु त्योहारों के लिए?
कोविड-19 को नियंत्रित करने का प्रयास। (Pixabay)
कई राज्यों ने इस तरह के उपदेश जारी किया था और अधिकारियों ने घोषणा की थी कि त्योहारों पर सभाओं ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। लेकिन इस तरह की चेतावनियों के बावजूद, त्योहारी सीजन के दौरान कोविड -19 मामलों में गिरावट देखी गई और केवल 2021 में, अप्रैल और मई में, महामारी की दूसरी लहर अपने चरम पर पहुंच गई।
इस बीच, दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर छठ पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, दिल्ली सरकार ने दशहरे के दौरान पुतला जलाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है, भाजपा शासित राज्य हरियाणा ने राज्य के 14 जिलों में पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया है। जबकि प्रतिबंध एक बहाने के रूप में कोविड -19 का हवाला देते हुए लगाए गए हैं, परंतु किसी भी राज्य ने 'किसान विरोध' के कारण भीड़ को नियंत्रित करने या प्रतिबंधित करने के लिए कोई उपाय नहीं किया है।
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स्पष्ट रूप से, प्रतिबंध कोविड -19 के बारे में नहीं हैं। यदि राजनीतिक दलों ने वास्तव में महामारी पर अंकुश लगाने की परवाह की होती, तो वे पहले 'किसान विरोध' को समाप्त कर देते। यह भारत के धर्मनिरपेक्ष राज्य की अत्याचारी प्रकृति के बारे में है जो एक ऐसे समुदाय को गुलाम बनाना चाहता है जिसे वह नम्र मानता है।