मंगल ग्रह पर घर बनाने का सपना हकीकत में बदल सकता हैं। वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष यात्रियों के खून, पसीने और आँसुओ की मदद से कंक्रीट जैसी सामग्री बनाई है, जिसकी वजह से यह संभव हो सकता है। मंगल ग्रह पर छोटी सी निर्माण सामग्री लेकर जाना भी काफी महंगा साबित हो सकता है। इसलिए उन संसाधनों का उपयोग करना होगा जो कि साइट पर प्राप्त कर सकते हैं।
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के अध्ययन में यह पता लगा है कि मानव रक्त से एक प्रोटीन, मूत्र, पसीने या आँसू से एक यौगिक के साथ संयुक्त, नकली चंद्रमा या मंगल की मिट्टी को एक साथ चिपका सकता है ताकि साधारण कंक्रीट की तुलना में मजबूत सामग्री का उत्पादन किया जा सके, जो अतिरिक्त-स्थलीय वातावरण में निर्माण कार्य के लिए पूरी तरह से अनुकूल हो।
मंगल ग्रह (Pixabay)
मैटेरियल्स टुडे बायो पत्रिका में एक लेख प्रकाशित हुआ उसके अनुसार परिणामी उपन्यास सामग्री में कंप्रेसिव स्ट्रेंथ 25 एमपीए जितनी अधिक थी, जो सामान्य कंक्रीट में देखी गई 20-32 एमपीए के समान थी। वैज्ञानिकों ने गौर किया की यूरिया को शामिल करने से संपीड़ित ताकत को 300% से अधिक बढ़ाया जा सकता हैं। जिसमें सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली सामग्री लगभग 40 एमपीए की संपीड़ित शक्ति होती है। यूरिया एक जैविक अपशिष्ट उत्पाद है जिसे शरीर मूत्र के माध्यम से पैदा करता है। वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि वह ऐसी तकनीक विकसित करे जिससे मंगल ग्रह पर कंक्रीट जैसी सामग्री बना सके।
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मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के डॉ एलेड रॉबर्ट्स के मुताबिक, चंद्रमा और मंगल ग्रह पर कई अन्य प्रस्तावित निर्माण तकनीकों पर नई तकनीक के महत्वपूर्ण फायदे हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि छह अंतरिक्ष यात्रियों के दल द्वारा मंगल की सतह पर दो साल के मिशन के दौरान 500 किलोग्राम से अधिक उच्च शक्ति वाले एस्ट्रोक्रीट (परिणामी उपन्यास सामग्री) का उत्पादन किया जा सकता है। यदि सैंडबैग या हीट-फ्यूज्ड रेजोलिथ ईंटों के लिए मोर्टार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, तो प्रत्येक चालक दल के सदस्य अतिरिक्त क्रू सदस्य का समर्थन करने के लिए आवास का विस्तार करने के लिए पर्याप्त एस्ट्रोक्रीट का उत्पादन कर सकते हैं।(IANS: TS)