धर्म एवं विद्या पिता की देन है, उसका सदुपयोग हमारे कर्मों में!

(NewsGram Hindi)
(NewsGram Hindi)

आज 19 जून को पूरा विश्व पितृ दिवस यानि फादर्स डे के अवसर पर किसी न किसी रूप से सोशल मीडिया पर अपने पिता के साथ तस्वीर साझा कर उन्हें बधाई देता है। किन्तु क्या यह एक दिन का काम है? या केवल सोशल मीडिया पर पोस्ट भर डालने से इस दिवस को मनाया जाता है? यह सवाल इस लिए क्योंकि आज के आधुनिक युवाओं को देखकर यही बोध होता है। आज यह खबर सुनाई देती हैं कि बेटे ने अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया, कारण यह बताया जाता है कि बेटा अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर सकता है। एक दैनिक अखबार के शोध में यह पाया गया था कि अधिकांश भारतीय अपने माता-पिता की देखभाल करने में खुश नहीं है। इस शोध पर बहस की जा सकती है, किन्तु सच तो यही है।

हमारे जीवन में पिता एक स्तम्भ के समान हमारे साथ खड़े रहते हैं, यदि बालक को किसी तरह की परेशानी आती है तो वह उसे सुधारने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं। किन्तु इन सब परिश्रम और तप के बाद भी यदि उन्हें वृद्धाश्रम में रहना पड़े, इस बड़े दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है। भारत के प्राचीनतम एवं देव-भाषा कही जाने वाली संस्कृत भाषा में पिता को बड़े सुंदर तरीके से वर्णित किया गया है:

पिता स्वर्गः पिता धर्मः पिता परमकं तपः ।
पितरि प्रीतिमापन्ने सर्वाः प्रीयन्ति देवताः ॥

अर्थात- मेरे पिता मेरे स्वर्ग हैं, मेरे पिता मेरे धर्म हैं, वे मेरे जीवन की परम तपस्या हैं। जब वे खुश होते हैं, तब सभी देवता खुश होते हैं!

धर्म का पहला ज्ञान हमें हमारे पिता से प्राप्त होता है और यही कारण है कि 'पश्चिमी संस्कृति को अपने ऊपर हावी होने न दें' यह बात समय-समय बताई जाती है। वह इसलिए क्योंकि समय अपना पैर आगे बढ़ाता रहेगा, और एक समय आएगा जब आप भी जीवन के रंगमंच पर माता-पिता की भूमिका निभाएंगे। तब जो संस्कार आपको अपने पिता से मिले थे उन्हें आप भी अपने बच्चों को सौंपने का पूरा प्रयास करेंगे। किन्तु अगर यह पश्चिमी संस्कृति की छाप उनमें आती है तो वृद्धाश्रम में शायद आप भी होंगे। मेरा उद्देश्य भय या आपके द्वारा अभ्यास की जाने वाली संस्कृति पर ऊँगली उठाना नहीं है, बल्कि यह बताना है कि आधुनिकीकरण से यदि कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो नकारात्मकता का भी ध्यान रखाना होगा।

पिता हमे उस ज्ञान से परिचित कराते हैं जिसे शायद ही कोई आधुनिक शिक्षक करा सके, और वह विषय है 'जीवन'। पिता हमें समय-समय पर जीवन के उन कठिनाइयों के विषय में सचेत करते हैं जिनसे कभी उनका सामना हुआ था, साथ ही वह उन कठिनाइयों से उभरने का रास्ता भी बड़ी सरलता से बता देते हैं। आज पितृ दिवस के अवसर पर हमें यह ध्यान रखना होगा कि किसी भी पिता को वृद्धाश्रम की चौखट न लांघनी पड़े और उनके संस्कार सदा हमारे साथ बनी रहे।

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com