By: काईद नजमी
मध्य रेलवे के प्वाइंट्मैन मयूर शेलके ने हाल ही में अपनी सूझबूझ और साहस से ठाणे जिले में वांगनी स्टेशन पर अपनी जान को खतरे में डालकर एक 6 साल के बच्चे की जान बचाई, जिसकी वीडियो काफी वायरल हुई शेलके को राष्ट्रीय पहचान मिली।
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने शेलके को 50,000 रुपये का पुरस्कार दिया है, जबकि उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने भी उनकी प्रशंसा की। इसके अलावा जावा मोटरसाइकिल के निदेशक अनुपम थरेजा ने उन्हें लगभग 1.65 लाख रुपये की जावा 42 नेबुला ब्लू बाइक भेंट की है।
दरअसल गत 17 अप्रैल की शाम मयूर शेलके ने मध्य रेलवे में मुंबई मंडल के अंतर्गत आने वाले वांगनी स्टेशन पर अपनी ड्यूटी के दौरान एक बच्चे साहिल को ट्रैक पर गिरा हुआ देखा। मयूर बच्चे से मुश्किल से 25 मीटर की दूरी पर थे। उन्होंने देखा कि बच्चा प्लेटफार्म पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था। बच्चा इतना छोटा था कि वह प्लेटफॉर्म पर चढ़ने में असमर्थ था। उसी समय ट्रैक पर उद्यान एक्सप्रेस तेजी से आ रही थी।
मयूर शेलके तुरंत हरकत में आए और ट्रैक पर कूद गए और तेजी से बच्चे की ओर दौड़े। उन्होंने बच्चे को उठाकर प्लेटफॉर्म पर धकेला और फिर वह खुद प्लेटफॉर्म पर करीब एक के समय में चढ़ गए। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना उस बच्चे की जान बचाई। उनकी समय पर सूझबूझ व साहस से बच्चे के जिंदगी बच पाई।
यह बच्चा अपनी मां के साथ प्लेटफॉर्म पर चलते समय ट्रैक पर गिर गया था। उसकी मां नेत्रहीन है और वह अपने बच्चे को बचाने में असमर्थ थी।
यह पूरा जीवन-रक्षक घटनाक्रम एक सीआर सीसीटीवी में कैद हो गया और इसके बाद यह वीडियो तेजी से वायरल हुई। इस छोटी सी फुटेज ने शेलके को एक नए इंडियन सुपरमैन के तौर पर पहचान दिलाई।
ठाणे की नेत्रहीन माँ संगीता केआंख वापस लाने के लिए सामने आए समाजसेवी। (आईएएनएस)
सुर्खियों से दूर 32 साल की साहिल की मां दृष्टिहीन संगीता शिरसाट ने नम आंखों के साथ मयूर को धन्यवाद दिया। उन्होंने मयूर की ओर से अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए उनके बेटे को एक नया जीवन देने के लिए मयूर को कोटि-कोटि धन्यवाद देने के अलावा जीवन में आगे बढ़ने को लेकर आशीर्वाद भी दिया।
देखने में अक्षम नांदेड़ की रहने वाली संगीता की दुर्दशा मुंबई के एक समाजसेवी धर्मेश झावेरी से नहीं देखी गई और उन्होंने संगीता की मदद के लिए कुछ करने का निश्चय किया है। वह उन्हें उनका बेहतर तरीके से इलाज कराना चाहते हैं, ताकि वह आंखों से देख सकें।
संगीता ने आईएएनएस को बताया कि वह नेत्रहीन पैदा नहीं हुई थी। जब वह दो साल की थी, तब किसी नेत्र रोग के कारण, उसने अपनी दृष्टि हमेशा के लिए खो दी थी। उनके पिता ने उन्हें नांदेड़ के एक नेत्र रोग विशेषज्ञ को दिखाया था, लेकिन डॉक्टर ने कहा कि कुछ भी नहीं किया जा सकता है।
संगीता की परेशानी उस समय से और अधिक बढ़ गई, जब उसके अंधे पति अकोला निवासी अर्जुन ने उसे पांच साल पहले छोड़ दिया था। संगीता नांदेड़ और नासिक में अंधे लोगों के लिए एचएससी पास हैं। वह शहर में और वंगानी स्टेशन पर रुकने वाली ट्रेनों में छोटे-मोटे सामान बेचकर अपना और अपने बेटे का पेट पाल रही हैं।
संगीता ने बताया कि वह जैसे-तैसे करके प्रति माह लगभग 10,000 रुपये तक कमा लेती हैं, लेकिन लॉकडाउन के दौरान, अधिकांश दिनों में उन्हें भोजन जुटाना मुश्किल हो गया। उनका एकमात्र भाई नांदेड़ में एक किसान है और वह अपनी वृद्ध मां से मदद की उम्मीद नहीं कर सकती हैं। उनके पिता का तीन साल पहले देहांत हो चुका है।
वह अपनी कमाई से अपने छोटे से कमरे का प्रति माह 3,000 रुपये किराया भरती हैं। उन्होंने साहिल को बदलापुर के बाल विकास मंदिर स्कूल में भर्ती करा रखा है, जो एक सेमी-प्राइवेट स्कूल है, जहां पर फीस कम नहीं है। इसलिए उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा बच्चे की फीस और उसकी परवरिश में ही खर्च हो जाता है।
संगीता ने बताया कि उसका बच्चा काफी तेज है और वह सीनियर केजी कक्षा में है, लेकिन लॉकडाउन के बाद उसकी शिक्षा बाधित हो गई है। उन्होंने अपने बच्चे को अपना संरक्षक भी बताया, क्योंकि वह देख नहीं सकती हैं।
अपनी मां की विशेष जरूरतों को समझते हुए, साहिल उन्हें स्नान या शौचालय के लिए मार्गदर्शन करता है और रसोई के कई कामों में उनकी मदद करता है। वह रेलवे स्टेशन और ट्रेन के समय के लिए भी अपनी मां का मार्गदर्शन करता है। वह अपनी मां को स्टेशनों पर चढ़ने या उतरने में मदद करता है। कहीं कुछ खाना या पानी होता है तो वह अपनी मां की उंगली पकड़कर उसे सही स्थान तक पहुंचाता है और खाने के पैसे देता है और बाद में उसे सुरक्षित रूप से घर वापस पहुंचने में मदद करता है।
धर्मेश झावेरी ने आईएएनएस को बताया कि संगीता को एक अच्छे इलाज की जरूरत है और मुंबई में एक शीर्ष नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. हेमेंद्र शाह जल्द ही उनकी जांच करेंगे। झावेरी ने बताया कि भिवंडी स्थित समस्थ जैन महासंघ के संयोजक अशोक जैन ने संगीता के लिए सर्वोत्तम संभव इलाज के लिए प्रयास करने का वादा किया है।
संगीता का मानना है कि उसकी जिंदगी तो जैसे-तैसे निकल ही जाएगी, मगर उसे फिलहाल अपने बेटे के सुरक्षित भविष्य की चिंता है।
संगीता ने बताया कि साहिल की शिक्षा के लिए मयूर शेलके साहब ने उन्हें अपनी आधी इनामी राशि (25 हजार रुपये) दिए हैं। उन्हें मयूर को बहुत दयालु और अच्छा इंसान बताया और कहा कि उनसे मिले 25 हजार रुपयों को उन्होंने अपने बदलापुर शाखा के एसबीआई खाते में जमा करा दिया है। संगीता को कुछ पत्रकारों ने भी 4 हजार रुपये और जरूरत के कुछ कपड़े दिए हैं।
संगीता को यह उम्मीद भी है कि उन्हें नेत्रहीन लोगों के लिए एचएससी स्तर की शिक्षा ग्रहण की हुई है, इसलिए उसे किसी विशेष कैटेगरी में भारतीय रेलवे या फिर किसी निजी कंपनी में ही नौकरी मिल जाए तो उसका और उसके बच्चे का वर्तमान सुधर सकता है और भविष्य सुरक्षित हो सकता। इसके अलावा वह गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की ओर से उन्हें सिर छिपाने के लिए एक स्थायी छत पाने की उम्मीद भी है।
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से शेलके साहब ने उनके बेटे साहिल की जिंदगी बचाकर उन पर एक बड़ा अहसान किया है, ऐसे ही कोई भला व्यक्ति उन्हें कोई नौकरी या रहने के लिए घर का इंतजाम करके उनकी मदद कर सकता है। उन्होंने कहा कि उनके और उनके बेटे के लिए मदद का हाथ तब तक भी मिल जाए, जब तक कि उनका बेटा अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता, तो यह उनके लिए एक बहुत बड़ा सहारा होगा।
झावेरी ने इस दिशा में संगीता की मदद करने का आश्वासन दिया है कि उनका समूह यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास करेगा कि उनके लिए क्या कुछ बेहतर किया जा सकता है।(आईएएनएस-SHM)