आजादी के गुमनाम नायक-भाई परमानन्द

आजादी के नायक भाई परमानन्द।(Wikimedia Commons)
आजादी के नायक भाई परमानन्द।(Wikimedia Commons)
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देश कि आजादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देने वाले भाई परमानंद के बारे में आज बहुत कम ही लोग जानते होंगे । और वो इसलिए क्योंकि वे कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण के खिलाफ थे और अपनी लड़ाई धर्म निरपेक्षता से लड़े। भाई परमानंद जन्म 4 नवम्बर 1876 को पंजाब के एक प्रसिद्द परिवार में हुआ। इनके पिता तारा चंद मोहयाल आर्य समाज आंदोलन के कार्यकर्ता और एक सक्रीय धार्मिक मिशनरी थे। अपने पिता से प्रेरित होकर ही इनमे देशभक्ति की भावना जगी।

महर्षि दयानंद के शिष्य और आर्य समाज व वैदिक धर्म को मानने वाले भाई परमानंद एक उच्च कोटि के इतिहासकार , लेखक और देश प्रेमी थे। इन्होंने अंग्रेजों के जमाने में एमए की डिग्री हासिल की थी जो एक अच्छी और ऐश ओ आराम की जिंदगी जीने के लिए पर्याप्त थी पर इन्होंने उस सुख की जिंदगी को त्यागकर एक क्रांतिकारी का जीवन चुना ।

इनके कार्यकलापों से भयभीत अंग्रेज सरकार ने सन 1915 में इन्हे फांसी की सजा तक सुनाई पर कुछ समय बाद उस सजा को बदलकर काले पानी की सजा कर दी गई । काले पानी की सजा यानी अंडमान निकोबार में कठोर कारावास। वर्ष 1920 तक इन्हे अंडमान द्वीप समूह में कैद रखा गया था पर ये तब भी निर्भीक होकर लड़ते रहे ।

इन्होंने देश में क्रांति की भावना को और प्रेरणा देने के लिए अनेक पुस्तकें लिखी जैसे "भारत का इतिहास " , " मेरी आपबीती " , " बंदा बैरागी " जिनपर अंग्रेजी सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया । काले पानी की सजा काटने के बाद इन्होंने लाला लाजपत राय के साथ मिलकर लाहौर में नेशनल कॉलेज की स्थापना की जिसमे नई पीढ़ी को क्रांति की शिक्षा देने लगे । इसी कॉलेज में सरदार भगत सिंह,सुखदेव, राजगुरु जैसे महान क्रांतिकारियों ने भाई परमानंद से आजादी की शिक्षा ली ।

सन् 1928 में कांग्रेस ने जब इनके सामने अपनी पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव रखा तो इन्होंने ऐसा करने से सिरे से इंकार दिया क्योंकि इन्हें अपना ऊंचा नाम नहीं बनाना था बल्कि अंग्रेजो की गुलामी से आजादी चाहिए थी। और पं मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर हिन्दू महासभा के साथ काम करने लगे ।

8 दिसंबर ,1947 को दिल का दौरा पड़ने से भाई परमानन्द का निधन हो गया और देश ने अपना एक सच्चा देशभक्त खो दिया।

उनकी याद में नई दिल्ली में उनके नाम पर एक इंस्टिट्यूट ऑफ़ बिज़नेस स्टडीज का नाम रखा गया। पूर्वी दिल्ली में उनके नाम पर एक पब्लिक स्कूल और दिल्ली में एक अस्पताल भी है। पर क्या सिर्फ उनके नाम पर एक स्कूल और एक हॉस्पिटल खोल देने से उन्हें उनके हक़ का सम्मान मिला ?

सन् 1905 से लेकर सन् 1947 तक लगातार अंग्रेजो के खिलाफ देश कि आजादी के लिए लड़ते रहने वाले इस महान नायक को आज भारतीय इतिहास से जैसे मिटा दिया गया है । ऐसे महान शिक्षक जिन्होंने देश को सरदार भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु जैसे वीर क्रांतिकारी दिए ,उनके नाम तक का कहीं किसी किताब में कोई जिक्र ही नहीं है । ये इनके बलिदान का अपमान नहीं तो और क्या है । जहां हम महात्मा गांधी के जीवन चरित्र के बारे में पढ़ते हैं वहीं इन जैसे अनेक वीरों की जीवनी भी पढ़ाई जानी चाहिए ताकि हम अपनी आजादी की कीमत जान सके । और इन्हे इनके हक का मान सम्मान दे सके ।

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