हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ आखिर कब तक

हिन्दुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ आखिर कब तक
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बांग्लादेश में आए दिन हिंदुओं के ऊपर हो रहे अत्याचार की ख़बरें आती रहती हैं। बांग्लादेश में कुल 1 करोड़ 20 लाख हिन्दू रहते हैं। जब भी कोई हिन्दू त्यौहार आता है , कट्टरपंथी अपना असली चेहरा दिखाना शुरू कर देते हैं। इस बार भी नवरात्रि आते ही हिंदुओं के साथ मार पीट , हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां तोड़ देने जैसी हिंसा शुरू हो गयी। कट्टरपंथी पुलिस तक से नहीं डरते। पुलिस के सामने ही पूजा पंडालों में तोड़ फोड़ की घटनाएं हो रही थी जिसे रोक पाने में पुलिस भी असमर्थ थी। मजबूरन पुलिस को कई जगह फायरिंग करनी पड़ी जिसके बाद उपद्रवियों और पुलिस में झड़प हो गयी। इस झड़प में कई जानें चली गयीं और कई घायल हुए।

दरअसल हिंसा की शुरुआत 12 और 13 अक्टूबर की रात से हुई जब कुमिला के नानुआ दीघी इलाके में एक पंडाल में क़ुरान शरीफ मिली। बताया गया की क़ुरान शरीफ हनुमान जी की मूर्ति की गोद में पायी गयी थी। अगली सुबह जैसे ही लोगों ने क़ुरान शरीफ देखा ,कई तरह की अफवाहें फैलने लगीं। कुछ ही देर में वहां भारी भीड़ इकट्ठी हो गयी जिसे काबू कर पाना पुलिस के भी बस का नहीं रहा। देखते ही देखते भीड़ ने उपद्रव मचाना शुरु कर दिया। दुर्गाष्टमी के दिन मुसलामानों की इस भीड़ ने माँ दुर्गा की मूर्तियां तोड़ी और इतने से मन नहीं भरा तो अष्टमी के दिन ही जबरन माता की मूर्ती को पास के ही तालाब में फेंक दिया। माता दुर्गा के अलावा यहाँ श्री राम ,माता सीता और लक्ष्मण सहित हनुमान जी की भी मूर्तियां रखी गयी थी और उपद्रवियों ने इन मूर्तियों को भी नुक्सान पहुँचाया।

यहाँ से शुरू होते होते इस तोड़ फोड़ का सिलसिला कई और इलाकों में भी फ़ैल गया। कट्टरपंथी मुसलमान चुन चुन कर हिन्दू पंडालों को निशाना बना रहे थे और तोड़ फोड़ कर रहे थे। इस हिंसा के बाद बांग्लादेश की प्रधान मंत्री शेख हसीना ने आश्वासन दिया की दोषियों को बक्शा नहीं जाएगा।

सोशल मीडिया पर हिंसा के पहले और बाद की तस्वीरें फैलने लगी जिससे देश विदेश हर जगह से हिन्दुओं का गुस्सा फूटने लगा।लोग अपने अपने विचार देने लगे।इस बीच रविवार को बांग्लादेश की प्रख्यात लेखिका तसलीमा नसरीन ने ट्वीट करके कहा कि "पैगंबर मोहम्मद ने काबा में पूर्व-इस्लामिक अरब देवताओं की 360 मूर्तियों को नष्ट किया था , उनके अनुयायी भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं।"

इस्लामी इतिहासकार बताते हैं की पैगंबर मोहम्मद को 620 ई. में मक्का से भगा दिया गया था। बताया जाता है की 629/630 ई. में लौटने पर उन्होंने काबा की मूर्तियों को शुद्ध किया। विकी दय्याह वेबसाइट के अनुसार अब्दुल्ला बिन मसूद ने लिखा है , "अल्लाह के प्रेरित ने मक्का में प्रवेश किया (विजय के वर्ष में) और काबा के चारों ओर तीन सौ साठ मूर्तियां थीं। फिर उन्होंने अपने हाथ में लाठी लेकर उन्हें मारना शुरू कर दिया और कहा: 'सच्चाई यानी इस्लाम आ गई और झूठ यानि अंधविस्वास गायब हो गया। सच में झूठ (अविश्वास)का हमेशा के लिए गायब हो जाना तय है।'" [कुरान 17:81 ]

तसलीमा नसरीन ने यह भी कहा की बांग्लादेशी मुसलमान दो तरह के होते हैं, 'जिहादी' और 'प्रो जिहादी'। "मुस्लिम समुदाय में अच्छी समझ और विवेक रखने वाले उदारवादी धर्मनिरपेक्ष लोग असली मुसलमान नहीं हैं। उनकी पहचान अच्छे इंसान या मानवतावादी, सबसे छोटे अल्पसंख्यक के रूप में अधिक है।

तसलीमा ने कहा कि बांग्लादेशी कम्युनिस्टों ने हमेशा जिहादियों का समर्थन किया है और "क्यूमिनिस्ट" बन गए हैं।

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