नागरवाला कांड में क्या सच्चाई को दबा दिया गया?

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से रहस्यमय परिस्थितियों में 60 लाख रुपये निकाल लिए गए।(Wikimedia Commons)
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से रहस्यमय परिस्थितियों में 60 लाख रुपये निकाल लिए गए।(Wikimedia Commons)

नागरवाला मामला या नागरवाला कांड एक भारतीय धोखाधड़ी के मामले को संदर्भित करता है। यह कांड 24 मई 1971 कि सुबह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के संसद मार्च ब्रांच में हुआ था। चीफ कैसियर वेद प्रकाश मल्होत्रा के सामने रखा फोन अचानक बचता है फोन की दूसरी ओर से एक व्यक्ति ने अपना परिचय देते हुए कहा कि वह प्रधानमंत्री के कार्यालय से प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी एन हकसर बोल रहे हैं उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री को बांग्लादेश में गुप्त अभियान के लिए 60 लाख रुपए की जरूरत है, उन्होंने वेद प्रकाश मल्होत्रा को निर्देश दिए कि वह बैंक से 60 लाख रुपए निकाले और बैंक से थोड़ी दूर संसद मार्ग पर ही बाइबल भवन के पास खड़े एक व्यक्ति को पकड़ा दे, और यह सारी रकम ₹100 के नोटों में होनी चाहिए।

आगे प्रधानमंत्री के कार्यालय से प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव हक्सर ने मल्होत्रा से कहा कि "लीजिए प्रधानमंत्री से बात कीजिए" उसके कुछ सेकंड बाद, श्रीमती गांधी लाइन पर आईं और उन्होंने मल्होत्रा से कहा कि आप वह पैसे लेकर खुद बाइबल भवन पर आइए वहां एक शख्स आप से मिलेगा। उन्होंने कहा कि वे उस व्यक्ति को पैसे दें जो उनके पास कोड वर्ड: "बांग्लादेश का बाबू" के साथ संपर्क करेगा। आपको उसके जवाब में "बार-एट-लॉ" कहना होगा, और फिर पूरी राशि आप उस व्यक्ति को दे दें। "जैसा आप चाहते हैं, माताजी," मल्होत्रा ने उत्तर दिया।

चीफ कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा से कहा गया कि वह इस पूरे मामले को गोपनीय रखें। इसके बाद उन्होंने डिप्टी चीफ कैशियर राम प्रकाश बत्रा को 60 लाख रुपये कैश बॉक्स में पैक करने को कहा। बत्रा और उनके एक सहयोगी एच.आर. खन्ना ने आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कीं। उप प्रमुख कैशियर रावल सिंह ने संबंधित रजिस्टर पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि इस उद्देश्य के लिए भुगतान वाउचर बनाया जाए। बत्रा ने कहा कि वाउचर पर मल्होत्रा के हस्ताक्षर होंगे। दो नकद कुलियों ने ट्रंक को बैंक की आधिकारिक कार में लाद दिया जिसे खुद मल्होत्रा द्वारा ले जाया गया।

वेद प्रकाश मल्होत्रा ने ठीक वैसा ही किया जैसा उन्हें निर्देश दिया गया था। मल्होत्रा का कहना है कि उन्होंने बैंक से कुछ दूर कार रोक दी। एक लंबा, दुबले-पतले, गोरे रंग का व्यक्ति उसके पास आया और उसने कोड वर्ड बोला। साथ में वे सरदार पटेल रोड और पंचशील मार्ग के जंक्शन पर एक टैक्सी स्टैंड पर गए। वहां नागरवाला ने कैश बॉक्स उतार दिया और मल्होत्रा को सीधे प्रधानमंत्री के घर जाने और वाउचर लेने के लिए कहा।

इंदिरा गांधी के नाम पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से निकल वाए गए 60 लाख रुपए। (Wikimedia Commons)

मल्होत्रा प्रधानमंत्री के घर गए लेकिन उन्हें पता चला कि वह घर पर नहीं थे, उसके बाद मल्होत्रा संसद भवन पहुंचे वहां भी वह प्रधानमंत्री से संपर्क नहीं कर सके। इसके बाद उन्होंने प्रधान निजी सचिव, पी.एन. हक्सर, से संपर्क किया जिन्होंने कथित तौर पर मल्होत्रा को बताया कि ऐसा कोई आदेश नहीं था और उन्हें मामले की पुलिस को रिपोर्ट करनी चाहिए।

बाद में पता चला उस शख्स का नाम रुस्तम सोहराब नागरवाला है, वह कुछ समय पहले भारतीय सेना में कैप्टन के पद पर काम कर रहा था और उस समय भारतीय खुफिया एजेंसी आर ए डब्लू के लिए काम कर रहा था।

पुलिस ने जांच शुरू की और डी.के. कश्यप, सहायक पुलिस अधीक्षक, निरीक्षक हरि देव और निरीक्षक ए.के. घोष ने नागरवाला को पकड़ने के लिए "ऑपरेशन तूफान" शुरू किया। पुलिस ने नागरवाला को दिल्ली गेट के पास पारसी धर्मशाला से गिरफ्तार कर लिया डिफेंस कॉलोनी में उसकी मित्र के घर से 59 लाख 95 हजार जप्त किए गए।

आधी रात को पुलिस महानिरीक्षक ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और बताया, "मामला सुलझा लिया गया है नागरवाला को गिरफ्तार कर लिया गया है" पुलिस ने अपने बयान मैं कहा की "ड्राइवर ने पुलिस को बताया कि नागरवाला राजिंदर नगर के एक घर में गया था, जहां से उसने एक सूटकेस उधार लिया, वहां से वह पुरानी दिल्ली के निकोलसन रोड गए और फिर टैक्सी ड्राइवर के सामने बॉक्स को ट्रांसफर कर दिया। इस बात को गुप्त रखने के लिए उसने ड्राइवर को ₹500 भी दिए।

27 मई 1971 को नागरवाला ने अदालत में अपना जुर्म कबूल कर लिया। भारत के न्यायिक इतिहास मे पहली बार सबसे तेज मुकदमे में (मात्र तीन दिन के अंदर) नागरवाला को चार साल के कठोर कारावास और 1,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई। कैमरे में रिकॉर्ड किए गए अपने कबूलनामे में, नागरवाला ने कहा कि उन्होंने बांग्लादेश मिशन की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए इस योजना के बारे में सोचा था। 10 मिनट में पूरा ट्रायल खत्म हो गया। उसे केवल उसके स्वीकारोक्ति के आधार पर दोषी ठहराया गया था, बिना किसी पुष्टि या सहायक परिस्थितिजन्य साक्ष्य के।

बाद में नागरवाला ने अपना बयान बदल दिया। उसकी मांग थी कि मामले की सुनवाई फिर हो, लेकिन 28 अक्टूबर 1971 को नगरवाला की यह मांग खारिज कर दी गई। फरवरी 1972 में नागरवाला को तिहाड़ जेल के अस्पताल में भर्ती कराया गया, वहां से उन्हें 21 फरवरी को जी बी पंत अस्पताल में ले जाया गया जहां 2 मार्च को उन्हे दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई।

1977 में जब जनता पार्टी सत्ता में आई, तो उन्होंने नागरवाला की मौत की जांच के आदेश दिए। इसके लिए जगन मोहन रेड्डी आयोग बनाया गया, लेकिन इस जांच में कुछ सामने नहीं आया। बाद में अलग-अलग अखबारों में एक खबर छपी की यह पैसा इंडिया की खुफिया एजेंट रॉ के कहने पर निकलवाया गया था, लेकिन रॉ ने इस बात का जोरदार खंडन किया और कहा कि रॉ का इसके से कोई लेना-देना नहीं।

इंदिरा गांधी की मौत के बाद हिंदुस्तान टाइम्स ने यह भी आरोप लगाया कि नागरवाला रॉ के लिए नहीं सीआईए के लिए काम किया करते था, जिसका कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला और इस केस की सच्चाई हमेशा के लिए अनसुलझी रह गई।

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