कुछ दिनों पहले अयोध्या में हुए भूमि पूजन के बाद से ही लगातार आम आदमी पार्टी के नेता और राज्य सभा सांसद संजय सिंह, इस मुद्दे पर जातीय राजनीति खेलने की कोशिश कर रहे हैं। संजय सिंह का कहना है कि भाजपा ने राष्ट्रपति, राम नाथ कोविन्द व प्रदेश के उपमुख्यमंत्री, केशव प्रसाद मौर्य को भूमि पूजन में ना बुला कर दलितों का अपमान किया है अर्थात भाजपा दलितों से नफरत करती है। आपको बता दें की संजय सिंह के दावे के विपरीत केशव प्रसाद मौर्य आमंत्रित भी किए गए थे व पंडाल में मौजूद भी थे।
संजय सिंह के इस खोखले दावे की किसी ने जब पोल खोल दी तो वह कहने लग गए, "बुलाने से क्या होता है? प्रधानमंत्री ने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को पूजा के दौरान साथ मे क्यूँ नहीं बैठाया।" ये बड़ा ही अनंत विषय है, जिसे जितना खींचना चाहो उतना खींच सकते हो। कैसे? मैं आपको बताता हूँ-
खैर, इस फालतू के विवाद का कोई अंत नहीं है।
संजय सिंह फिलहाल आम आदमी पार्टी के उत्तर प्रदेश प्रभारी हैं। सूत्रों के मुताबिक, जातीय सदभावना बिगाड़ने का काम संजय सिंह, अरविंद केजरीवाल के इशारे पर कर रहे हैं, ताकि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के खिलाफ एक दलित विरोधी माहौल तैयार किया जा सके। इससे पहले भी दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों को भड़काने में संजय सिंह ने अहम किरदार निभाया था। दिल्ली दंगों का मुख्य आरोपी, ताहिर हुसैन भी संजय सिंह का करीबी माना जाता है। अगर आप आम आदमी पार्टी का ट्वीटर हैंडल खोल कर देखेंगे तो आपको समझ आ जाएगा की किस तरह संजय सिंह, सोशल मीडिया के जरिये लगातार दलित विरोधी माहौल बना कर दंगे भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।
आपको बता दें की राम मंदिर का मुद्दा एक आम मुद्दा नहीं बल्कि आरएसएस व भाजपा का दशकों से चला आ रहा सबसे अहम संकल्प रहा है। 2014 के चुनाव से पहले भी नरेंद्र मोदी ने इस बात को दोहराया था कि अगर जनता उन्हे प्रधानमंत्री बनाएगी तो वह अयोध्या जन्मभूमि पर एक भव्य राम मंदिर का निर्माण कराएँगे। देश के लोगों ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री चुना और उनके ही कार्यकाल में अब उस राम मंदिर का निर्माण होने जा रहा है। इसी वजह से भूमि पूजन के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर नरेंद्र मोदी का मौजूद होना स्वाभाविक था।
और वैसे भी, जब प्रधानमंत्री के जाने से ही पूरा विपक्ष एक सुर में बवाल काट रहा है, तो राष्ट्रपति के जाने से इनकी हालत क्या होती, इसकी आप मात्र कल्पना ही कर सकते हैं।
बात करें संजय सिंह कि तो उनके मुताबिक देश में मौजूद हर जात के लोगों को भूमि पूजन में बुलाया जाना चाहिए था, और इसके साथ ही प्रधानमंत्री को उन्हें अपने बगल में बैठा कर भूमि पूजन का कार्यक्रम आरंभ करवाना चाहिए था। अगर छोटे-छोटे सभी जातों को मिला दें तो देश भर में यह आंकड़ा हज़ार से भी ज़्यादा है। मतलब ये हैं की, उन हजारों को बुलाइए, उन्हे प्रधानमंत्री के बगल में बैठाइए, और उनमें से कोई एक 'फलाना' जात भी छूट जाए, तो संजय सिंह छाती पीटते हुए, भाजपा को 'फलाना' विरोधी तो बता ही देंगे। और अगर किस्मत से, सभी जात के लोगों को बुला भी लिया जाता तो एक और समस्या पैदा हो जाती- 'प्रधानमंत्री के दाएँ और बाएँ में पहला व्यक्ति कौन बैठेगा?' अब जात हैं हज़ार और मुख्य स्पॉट है 'दो', तो दलित को बैठाते, तो ब्राहमण विरोधी कहलाते, ब्राहमण को बैठाते तो जाट चिल्लाते, जाट को बैठाते, तो राजपूत नाराज़ हो जाते। सीधे शब्दों में अर्थ ये है की इसका कोई समाधान नहीं है। जो संजय सिंह, आज जिस दलित के नाम पे हँगामा मचा रहे हैं, उनके लिए दलित का सम्मान नहीं बल्कि हँगामा करना ही असली मकसद है। दलित नहीं तो कोई और होता, लेकिन हँगामा ज़रूर होता।
अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री, दिल्ली (Picture Source: Wikimedia Commons)
बात अगर उठी ही है, तो जिस भाजपा को संजय सिंह दलित विरोधी बता रहे हैं, उसी भाजपा ने महामहिम रामनाथ कोविन्द जी को राष्ट्रपति बनाया है। लेकिन संजय सिंह कहते हैं- "भाजपा ने तो राजनीति करने के लिए रामनाथ कोविन्द को राष्ट्रपति बनाया है।"
अरे साहब, कोई पार्टी अगर एक पिछड़े समुदाय के दलित नेता को देश के सर्वोच्च पद पर बैठा देती है, जो पद, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद से भी ज़्यादा बड़ा हो, उससे बेहतर राजनीति और क्या हो सकती है? उल्टा, संजय सिंह व अरविंद केजरीवाल को इससे सीख लेनी चाहिए और ऐसी राजनीति को अपने पार्टी व सरकार में बढ़ावा भी देना चाहिए। लेकिन इसके विपरीत आम आदमी पार्टी व अरविंद केजरीवाल ने अब तक दलितों के लिए किया ही क्या है?