Vidhan Sabha चुनाव 2022 के तारिख घोषित होने से क्या अब चुनावी जमाखोरी बढ़ेगी?

Vidhan Sabha चुनाव 2022 के तारिख घोषित होने से क्या अब चुनावी जमाखोरी बढ़ेगी?
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8 जनवरी को चुनाव आयोग(Election Commission of India) द्वारा जारी के गए 5 राज्यों के विधान सभा चुनावों(Vidhan Sabha Election 2022) के तारिखों के ऐलान से चुनावी गहमा-गहमी चरम पर है। आपको बता दें कि वर्ष 2022 में 5 अहम राज्यों में विधान सभा चुनाव आयोजित होने जा रहे हैं। यह राज्य हैं उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा एवं मणिपुर। साथ ही उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) में होने जा रहे चुनाव को 7 चरणों में बांटा गया है, मणिपुर 2 चरणों में और गोवा, उत्तराखण्ड, पंजाब(Punjab) में चुनाव 1 चरण में आयोजित किया जाएगा। चुनाव तारीखों के घोषित होने बाद सभी राजनीतिक दल एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं और हर वह हथकंडा अपना रहे हैं जिससे मतदाता आकर्षित हों। साथ ही अब यह भी संभावना अधिक है कि इस बीच चुनावी जमाखोरी बढ़ जाएगी।

पिछले चुनाव में पार्टियों ने कितना खर्च किया था?

आपको जानकारी के लिए बता दें कि 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करीब 5,500 करोड़ रूपये बड़ी पार्टियों द्वारा चुनाव अभियान में खर्च किए गए थे। साथ ही एक मीडिया रेपोर्ट के अनुसार 1000 करोड़ से अधिक पैसा मतदाताओं को पैसे से या शराब से लुभाने में खर्च किए गए थे। आपको यह भी बता दें कि 2017 में ही हुए 5 राज्यों में विधान सभा चुनाव में 1.89 अरब रूपये खर्च किए गए थे, जिसमें बाहरी खर्च कितना था इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है।
इसके साथ विधानसभा में चुनाव आयोग ने निर्धारित की खर्च सीमा प्रति उम्मीदवार 30 लाख तय किया है, किन्तु यह सभी जानते हैं कि इसका पालन नहीं होता है। बल्कि बाहरी खर्च और वोट के लिए नोट का इस्तेमाल कर बेहिसाब पैसा बहाया जाता है। सभी पार्टियां, पार्टी चंदे को भी चुनाव में होने वाले खर्च के लिए इस्तेमाल करती हैं। साथ ही टिकट बिक्री को भी चुनावी जमाखोरी में गिना जा सकता है। हालही में आम आदमी पार्टी के खुदके विधायक ने अरविन्द केजरीवाल पर करोड़ों रुपयों के बदले टिकट बेचने का आरोप लगाया है।
जैसा की आपको पता है कि इस साल होने वाले 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव सभी पार्टियों की नाक की बात बन गई है, जिस वजह से हर कोई अपने-अपने तरीके से लोगों को जुटाने में और चीजों को भुनाने में जुटा हुआ है। चाहे वह बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा हो या 'मैं लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ', किन्तु आज भी हम यह कह सकते हैं कि किसी भी प्रदेश ने महिलाओं की सुरक्षा का ठोस आश्वासन नहीं दिया है। इसी तरह भ्रष्टाचार और पैसों की जमाखोरी पर किसी भी सरकार को निर्दोष करार दे देना समझदारी का काम नहीं होगा। आपको बता दें कि एक समय ऐसा भी था जब समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने यह स्वीकारा था कि समाजवादी पार्टी के सरकार में भ्रष्टाचार होता था।

हालही में समाजवादी इत्र निर्माता पुष्पराज जैन के 35 ठिकानों पर हुई आयकर रेड ने यह साफ कर दिया है कि बेहिसाब पैसों के मालिक कई पायदान पर पैर पसारे हुए हैं। इसके साथ कानपूर के ही पियूष जैन के घर हुई ईडी की छापेमारी ने पूरे देश को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या ऐसे भी लोग हो सकते हैं, जो घर पर 170 करोड़ से अधिक की सम्पत्ति छुपा सकते हैं। और अखिलेश यादव चाहे यह साफ कर चुके हों कि पियूष जैन का समाजवादी पार्टी से कोई नाता नहीं है, किन्तु भाजपा और अन्य राजनीतिक दल इसे जरूर जन-सभाओं में भुनाने में जुटेंगे।

अब कौन कितना खर्च करेगा और कितने नोट, वोट के लिए खर्च जाएंगे यह चर्चा का विषय है, किन्तु यह कब थमेगा और इसके लिए निर्वाचन आयोग कब बदलाव लाएगा यह उन सभी के लिए इंतजार का विषय है जो भ्रष्टाचार मुक्त भारत का सपना देख रहे हैं।

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