पराली नहीं अपनी किस्मत खाक कर रहे हैं आप

पराली जलाने से आप दूसरों के साथ-साथ अपना भी क्र रहें हैं नुकसान। (सांकेतिक चित्र, Pixabay)
पराली जलाने से आप दूसरों के साथ-साथ अपना भी क्र रहें हैं नुकसान। (सांकेतिक चित्र, Pixabay)

 धान की कटाई शुरू हो चुकी है। रबी के सीजन में आम तौर पर कंबाइन से धान काटने के बाद प्रमुख फसल गेंहू की समय से बोआई के लिए पराली (डंठल) जलाना आम बात है। चूंकि इस सीजन में हवा में नमी अधिक होती है। लिहाजा पराली से जलने से निकला धुंआ धरती से कुछ ऊंचाई पर जाकर छा जाता है। जिससे वायु प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है। कभी-कभी तो यह दमघोंटू हो जाता है।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल) ने पराली जलाने को दंडनीय अपराध घोषित किया है। किसान ऐसा न करें इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार भी लगातार जागरुकता अभियान चला रही है। ऐसे कृषि यंत्र जिनसे पराली को आसानी से निस्तारित किया जा सकता है, उनपर 50 से 80 फीसद तक अनुदान भी दे रही है।

बावजूद इसके अगर आप धान काटने के बाद पराली जलाने जा रहे हैं तो ऐसा करने से पहले कुछ देर रुकिए और सोचिए। आप पराली के साथ अपनी किस्मत को खाक करने जा रहे हैं। क्योंकि पराली के साथ आप फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (एन.पी.के.) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जलाने जा रहे हैं। यही नहीं भूसे के रूप में बेजुबान पशुओं का हक भी मार रहे हैं।

कृषि विषेषज्ञ गिरीष पांडेय बताते हैं कि शोधों से साबित हुआ है कि बचे डंठलों में एन.पी.के. की मात्रा क्रमश: 0.5, 0.6 और 1.5 फीसद होती है। जलाने की बजाय अगर खेत में ही इनकी कम्पोस्टिंग कर दें तो मिट्टी को कुछ मात्रा में एन.पी.के. की क्रमश: 4, 2 और 10 लाख टन मात्रा मिल जाएगी। भूमि के कार्बनिक तत्वों, बैक्टीरिया, फंफूद का बचना, पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिग में कमी बोनस होगी।

अगली फसल में करीब 25 फीसद उर्वरकों की बचत से खेती की लागत इतनी घटेगी और लाभ इतना बढ़ जाएगा। एक अध्ययन के अनुसार, प्रति एकड़ डंठल जलाने पर पोषक तत्वों के अलावा 400 किग्रा उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद जल जाते हैं। प्रति एकड़ डंठल से करीब 18 क्विंटल भूसा बनता है। सीजन में भूसे का प्रति क्विंटल दाम करीब 400 रुपए मान लें तो डंठल के रूप में 7,200 रुपये का भूसा नष्ट हो जाता है। बाद में यही चारे के संकट की वजह बनता है।

उनहोंने बताया कि फसल अवशेष से ढकी मिट्टी का तापमान सम होने से इसमें सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ जाती है, जो अगली फसल के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व मुहैया कराते हैं। अवशेष से ढकी मिट्टी की नमी संरक्षित रहने से भूमि के जल धारण की क्षमता भी बढ़ती है। इससे सिंचाई में कम पानी लगने से इसकी लागत घटती है। साथ ही दुर्लभ जल भी बचता है।

पांडेय कहते हैं कि डंठल जलाने की बजाय उसे गहरी जुताई कर खेत में पलट कर सिंचाई कर दें। शीघ्र सड़न के लिए सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किग्रा यूरिया का छिड़काव कर सकते हैं। इसके लिए कल्चर भी उपलब्ध हैं। किसान सुपर स्ट्रा, मैनेजमेंट, सिस्टम, हैपी सीडर, सुपर सीडर, जीरो सीड ड्रिल, श्रव मास्टर, श्रेडर, मल्चर, रोटरी स्लेशर, हाइड्रोलिक रिवर्सेविल एमबी प्लाऊ, बेलिंग मशीन, क्रॉप रीपर, रीपर कम बाइंडर आदि कृषि यंत्रों पर पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर 50 से 80 फीसद तक अनुदान भी दे रही है।

उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि राज्य में किसी भी स्थान पर पराली जलाने की घटना ना होने दी जाए। इसके लिए गांवों में पोस्टर, बैनर और लाउडस्पीकर से लोगों को जागरूक करने का काम करें। यदि कहीं पर पराली जलाने की घटना होती है तो संबंधित व्यक्ति के साथ ही ग्राम स्तर पर ग्राम प्रधान की जिम्मेदारी तय कर कार्रवाई की जाए।(आईएएनएस)

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com