
भारतीय सिनेमा का स्वर्णिम युग (Unsplash)
1951-60
न्यूजग्राम हिंदी: 1951-60 का दशक भारतीय सिनेमा (Indian Cinema) में स्वर्णिम युग (Golden Age) के रूप में स्मरण किया जाता है। इस युग में मदर इंडिया, दो बीघा जमीन, प्यासा, कागज के फूल जैसी फिल्में आई थी। दूसरी ओर लता मंगेशकर, रफी, आशा, किशोर जैसे गायकों की आवाज से सिनेमा जगत में अलग ही आनंद था।
हम उसी दौर की बात कर रहे हैं जब अशोक कुमार, शम्मी कपूर और बलराज साहनी की फिल्मों के टिकट के लिए घंटों लाइन लगा करती थी। सत्यजीत रे, गुरुदत्त, महबूब खान, ऋत्विक घटक और के. आसिफ जैसे उम्दा फिल्मकारों द्वारा बनाई गई फिल्मों की वजह से भारतीय सिनेमा को विश्व में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिल गई थी।
दूसरी ओर यश चोपड़ा, विजय आनंद, शक्ति सामंत और ऋषि मुखर्जी जैसे फिल्मकार सिनेमा में कदम ही रख रहे थे। उन दिनों खलनायकों के रूप में प्राण, जीवन, मदन पुरी और कन्हैया लाल जैसे नाम लोगों के रोंगटे खड़े कर दिया करते थे। आईएस जौहर, किशोर कुमार, भगवान दादा, जॉनी वॉकर जैसे कलाकारों ने हास्य की दुनिया में अपना सिक्का जमाया हुआ था।
1951 में देवानंद अभिनीत और गुरुदत्त ने पहली फिल्म निर्देशित की जिसका नाम बाजी था। इस फिल्म के माध्यम से एसडी बर्मन, गीता दत्त, साहिर लुधियानवी जैसे कलाकारों में अपनी पहचान बना ली। इस फिल्म को बलराज साहनी ने लिखा था।
इसी साल बिना रॉय यानी कि अभिनेता प्रेमनाथ की पत्नी ने फिल्म काली घटा से सिनेमा की दुनिया में कदम रखा। इसी साल लता मंगेशकर और आशा ने पहली बार एक साथ ये बुझे बुझे सितारे जैसे युगल गीत गाए।
इसके बाद 1952 में दिलीप कुमार, प्रेम नाथ और नादिरा अभिनीत ने महबूब खान के निर्देशन में आ नाम की पहली फिल्म की। यह फिल्म पूरे विश्व में एक साथ दिखाई गई थी। शिवाजी गणेशन (Shivaji Ganeshan) ने भी इसी वर्ष सिनेमा में कदम रखा था इन्हें बाद में आगे चलकर 1960 में इन्हें फॉरेन फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ एक्टर का अवॉर्ड भी मिला साथ ही उन्हें पद्मश्री, पद्म भूषण और दादा फाल्के अवार्ड से भी नवाजा जा चुका था। इस दशक ने भारतीय सिनेमा को बहुत कुछ दिया इसलिए यह भारतीय सिनेमा का स्वर्णिम युग हैं।
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