'चित्रा' वाले सरकार, जिन्होंने 'न्यू थिएटर' से मजबूत की भारतीय सिनेमा की नींव

मुंबई, जब भारतीय सिनेमा के पितामह की बात होती है तो दादासाहेब फाल्के का नाम सबसे पहले आता है। जिन्हें बी. एन. सरकार के नाम से भी जाना जाता था।
एक व्यक्ति बाहर खड़ा होकर पोज़ देते हुए|
बी. एन. सरकार: चित्रा और न्यू थिएटर से भारतीय सिनेमा की नींव रखने वाले अग्रदूत।IANS
Published on
Updated on
2 min read

साल 1901 में जन्मे दूरदर्शी सरकार ने कोलकाता के टॉलीगंज में 1930 में न्यू थिएटर्स लिमिटेड की स्थापना की। उस दौर में फिल्म बनाना मतलब छोटे-छोटे शेड में कैमरा लगाकर शूटिंग करना था। लेकिन बी. एन. सरकार ने सोचा कुछ बड़ा। उन्होंने कोलकाता में तकनीकी रूप से सबसे उन्नत फिल्म स्टूडियो बनवाया, पूरा साउंडप्रूफ, अपने प्रोसेसिंग लैब, रिकॉर्डिंग थिएटर और एडिटिंग रूम के साथ।

न्यू थिएटर्स (Theater) ने जो फिल्में बनाईं, वो आज भी क्लासिक मानी जाती हैं, इस लिस्ट में ‘देवदास’, ‘चित्रलेखा’, ‘स्ट्रीट सिंगर’, ‘वचन’ और ‘धूप-छांव’ जैसी फिल्में हैं। इन फिल्मों के साथ के. एल. सहगल, पंकज मलिक, प्रमथेश बरुआ जैसे दिग्गज जुड़े थे। इसमें उनकी पहली बोलती फिल्म बांग्ला भाषा की थी, जिसका नाम देने पाओना था।

पहली बार हिंदुस्तानी फिल्मों में संगीत, कहानी और तकनीक का शानदार मेल हुआ। एक इंटरव्यू में बी. एन. सरकार BN Sarkar ने कहा था, “मैं फिल्मों को सिर्फ मनोरंजन नहीं, समाज का दर्पण बनाना चाहता हूं। अगर एक फिल्म देखकर दर्शक अपने भीतर झांक ले, तो मेरा काम पूरा। यही भारतीय सिनेमा का भविष्य है।”

इसी लक्ष्य के साथ सरकार ने न्यू थियेटर्स में ऐसी फिल्मों (Films) को जगह दी, जो साहित्य के साथ जुड़ी रहीं। वो भी मनोरंजन के साथ।

हालांकि, सिनेमा के प्रति उनका प्रेम यूं ही नहीं आया, बल्कि ये बीज अंकुरित हुआ, जब कलकत्ता में खुद के एक सिनेमा हॉल का निर्माण कर उन्होंने नाम दिया 'चित्रा'। सिनेमा हॉल का उद्घाटन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया था। 'चित्रा' में बंगाली फिल्में तो 'न्यू सिनेमा' में हिन्दी की फिल्में दिखाई जाने लगी। उन्होंने हिन्दी और बंगाली के साथ तमिल की 150 से ज्यादा फिल्मों का निर्माण किया, जो सफल रहीं।

बीएन सरकार के संघर्ष की दास्तां भी कम नहीं है। 1940 में उनके साथ एक भयानक हादसा हुआ, जिसमें उनका न्यू थिएटर्स स्टूडियो, रिकॉर्डिंग्स जलकर राख हो गए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और थिएटर को फिर से खड़ा किया। इसके बाद साल 1944 में उन्होंने 'उदयेर पथे' टाइटल की फिल्म बनाई, जो एक नई शुरुआत थी।

सरकार ने 1931 में न्यू थिएटर्स बनाकर भारतीय सिनेमा को पहला आधुनिक स्टूडियो दिया। ‘देवदास’, ‘चित्रलेखा’ जैसी क्लासिक फिल्में दीं और के.एल. सहगल, पंकज मलिक, बिमल रॉय समेत अन्य कलाकारों को संवारा और निखारा।

[AK]

एक व्यक्ति बाहर खड़ा होकर पोज़ देते हुए|
नादिरा बब्बर: जिसने थिएटर को ज़िंदगी बना लिया

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com