

Summary
शारदा सिन्हा बचपन से ही संगीत में रुचि रखती थीं और पिता की प्रेरणा से भारतीय नृत्य कला केंद्र में प्रवेश लिया।
शादी के बाद उनकी सास ने गाने पर पाबंदी लगा दी थी और गाने की जिद करने पर कई दिनों तक खाना नहीं खाया।
सास के विरोध के बावजूद उन्होंने अपनी कला और लोकगीतों के प्रति समर्पण दिखाया। आज उनकी आवाज़ छठ पूजा और लोकसंगीत में हर घर में गूंजती है और उनकी कहानी संघर्ष और सफलता की प्रेरणा देती है।
स्वर कोकिला (Swar Kokila) के नाम से विख्यात शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) की आवाज़ के बिना अधूरी है छठ पूजा की गीत, लेकिन क्या आप जानतें है कि स्वर कोकिला को भी झेलनी पड़ी थी अपनी सास की नाराज़गी। आज ही के दिन यानी 5 नवंबर 2024 को शारदा सिन्हा ने AIIMS में आखिरी सांसे ली। आज भले ही स्वर कोकिला को गए पूरे एक साल हो गए लेकिन उनकी आवाज़ आज भी घर घर गूंजती हैं और आगे भी यूं ही गूंजती रहेगी। कहते हैं कि जब भी कोई व्यक्ति अपने जीवन में सफलता की ऊंचाई पर पहुंचता है तो उस ऊंचाई पर पहुंचने वाले हर एक व्यक्ति की अपनी एक कहानी होती है ठीक ऐसी ही एक कहानी हमारी स्वर कोकिला यानी शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) की भी थी जब उनकी खुद की ही सास उनके गाने बजाने पर नाराज हो गई थी और खाना तक छोड़ दिया था। तो चलिए जानते हैं कि क्या था वह दिलचस्प किस्सा और आखिर स्वर कोकिला ने कैसे मनाया अपनी सास को?
शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) को बचपन से ही संगीत में काफी रुचि थी। संगीत के लिए उनकी लगन देखकर पिता ने भारतीय नृत्य कला केंद्र में प्रवेश दिला दिया था। हिंदी, मैथिली, भोजपुरी भाषाओं में कई गीत गाने वाली इस लोक गायिका को भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया, लेकिन उनके लिए गाना आसान नहीं रहा। जब उनकी शादी हुई तो उनकी सास ने गाने पर पाबंदी लगा दी थी। गाना गाने की जिद करने पर सास ने कई दिनों तक खाना नहीं खाया था, लेकिन पति बृजकिशोर सिन्हा और ससुर ने उस समय उनका साथ दिया था।
शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वह शादी कर अपने ससुराल गई तो उनकी सास ने पहले ही कह दिया था की भजन कीर्तन ठीक है लेकिन यह गाना बजाना बाहर नहीं चलेगा। शारदा सिन्हा बताती हैं की गांव के मुखिया ने जब शारदा सिन्हा के गाने को सुना तो उन्होंने उनके ससुर के पास जाकर ठाकुरबाड़ी में गाने के लिए निमंत्रण दिया था। शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) को गाना इतना पसंद था कि उन्हें किसी बात का फर्क ही नहीं पड़ता था और ससुर के कहने पर पर ठाकुरबड़ी में गाना गाना भी शुरू कर दिया। उनकी आवाज और उनके जज्बे को देखकर बड़े बुजुर्गों ने उन्हें खूब आशीर्वाद भी दिया लेकिन उनकी सास ने सिर्फ इसी बात से मुंह फुला कर दो दिन तक खाना नहीं खाया था।
शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) को पति बृजकिशोर सिन्हा का हमेशा से सपोर्ट मिलता रहा। पति ने शुरू से ही उनका साथ दिया। इस वजह से उनका गाना गाने का सफर हमेशा जारी रहा। उन्होंने पूर्वोत्तर के सबसे बड़े महापर्व छठ के गीतों से सबसे अधिक लोकप्रियता हासिल की। उन्होंने मैथिली और भोजपुरी भाषाओं में गीत गाए। शारदा सिन्हा गायन के अलावा नृत्य में भी पारंगत थी। उन्होंने मणिपुरी नृत्य की शिक्षा ली थी। [Rh/SP]