
मुकेश भट्ट, (Mukesh Bhatt) एक ऐसा नाम जो ‘Rocket Singh: Salesman of the Year’ के बाद हर दर्शक के दिल में बस गया। उन्होंने फिल्म में अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों और फिल्म समीक्षकों को प्रभावित किया। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस फिल्म की सफलता के बाद मुकेश की ज़िंदगी ने एक नया ऐसा मोड़ लिया, जिसे जानकर हर कोई सोच में पड़ जाएगा।
रॉकेट सिंह के बाद आत्मविश्वास और ओवर कॉन्फिडेंस
फिल्म ‘रॉकेट सिंह’ ( Rocket Singh ) में अपनी शानदार भूमिका के बाद मुकेश भट्ट (Mukesh Bhatt) को लगा कि अब वह एक ऐसे अभिनेता बन चुके हैं जिसकी ज़रूरत हर निर्देशक को है। उनका कहना था, "मुझे लगा अब कोई भी रोल हो, कैसा भी किरदार हो, मुकेश तो सबको चाहिए ही।" यही आत्मविश्वास धीरे-धीरे ओवर कॉन्फिडेंस (overconfidence) में बदल गया, जिसका उन्हें अंदाज़ा तक नहीं हुआ। फिल्म की सफलता के बाद उनके काम की खूब तारीफ हुई। इंडस्ट्री में उनकी पहचान बनने लगी। इसी दौरान उन्होंने सोचा कि अब उन्हें एक कार ले लेनी चाहिए, ताकि लोगों को लगे कि वह अब एक सफल अभिनेता हैं। उन्होंने लोन लेकर कार खरीद ली। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था।
कार तो आ गई, लेकिन काम नहीं आया। मुकेश को लग रहा था कि अब अच्छे-अच्छे रोल्स आएंगे, बस थोड़ा इंतजार करना होगा। एक महीना बीता, फिर दो, और देखते ही देखते आठ महीने बीत गए। लेकिन उनके पास न कोई काम था और न ही लोन चुकाने के पैसे। हालात इतने खराब हो गए कि उन्हें अपने सोसायटी के दोस्तों से कहना पड़ा – "अगर कोई शिरडी या धुर्मकेश्वर जा रहा हो, तो मुझे बता देना, मैं वहां जाकर कुछ पैसे कमा लूंगा, शायद कुछ काम मिल जाए।"
इसी संघर्ष के बीच गणेश चतुर्थी आ गई। मुकेश कहते हैं कि जब से वे मुंबई आए, हर साल गणपति बाप्पा की पूजा करते हैं। लेकिन उस साल हालात इतने खराब थे कि पूजा कर पाना भी मुश्किल था। जब पंडित जी पूजा के लिए आए, तो मुकेश ने कहा, "इस बार रहने दीजिए, शायद बाप्पा की इच्छा नहीं है।" पंडित जी ने पूछा, "क्यों?" तो उन्होंने कहा, "सच कहूं तो मेरे पास पैसे नहीं हैं।" पंडित जी ने कहा, "एक सुपारी से भी बाप्पा की पूजा हो सकती है, मन से कीजिए।" और वहीं से उनकी ज़िंदगी में फिर से रौशनी आने लगी।
एक कॉल ने बदली दिशा
जिस दिन गणपति विसर्जन था, उसी दिन मुकेश को एक कॉल आया। कॉल एक कास्टिंग डायरेक्टर का था, जो उन्हें एक सीरियल में डाकू का छोटा सा रोल देने की बात कर रहा था। मुकेश ने तुरंत पूछा, "कितने दिन का काम है?" जवाब मिला, "चार से पांच दिन का काम है और 5000 रुपये मिलेंगे।" मुकेश को उस सीरियल के प्रोड्यूसर पहले से जानते थे। उन्होंने उन्हें कॉल किया और कहा, "भाई, मुझे तुम्हारे सीरियल में काम करने का मौका मिला है।" प्रोड्यूसर ने चौंकते हुए कहा, "तू ये काम करेगा?" मुकेश ने जवाब दिया, "हाँ करूंगा, और मुझे तुमसे कुछ और भी कहना है।" उन्होंने उनसे 20-25 हजार रुपये उधार मांगे क्योंकि हालत बहुत खराब थी। प्रोड्यूसर ने कहा, "पहले तु काम शुरू कर, फिर बात करेंगे।"
मुकेश काम पर पहुंचे, लेकिन वहाँ देखा कि चार डाकू के किरदारों में एक डाकू का रोल डायरेक्टर ने अपने दोस्त को दे दिया था, और सारे डायलॉग भी उसी को दे दिए। मुकेश को सिर्फ एक छोटा सा रोल मिला, वो भी बिना संवाद के। लेकिन उन्हें अपनी जरूरत थी, उन्होंने काम किया। चार दिन पुरे होने के बाद जब प्रोड्यूसर आया फिर उन्होंने उन्हें 20-25 हजार रुपये दिए, तो पैसे लेकर बाहर निकलते समय उन्हें डर लग रहा था कि कहीं कोई इन पैसों को छीन न ले! इतनी कठिनाई के दौर से गुजर रहे मुकेश को तब समझ आया कि ओवर कॉन्फिडेंस का नतीजा क्या होता है।
मुकेश भट्ट (Mukesh Bhatt) मूल रूप से एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। उनके पिताजी बैंक में काम करते थे। जब वह दिल्ली से मुंबई एक्टर बनने आए, तो उनके पास न पैसे थे न सुविधाएं। उनकी मां उनके लिए घर एक प्रेशर कुकर दिया था, और घर से आटा, चावल और घी हमेशा भेजा करती थीं जिससे कि उनका गुजारा चलता था । उनकी मां ने उन्हें खिचड़ी जैसी कोई चीज बनानी सिखाई थी, वही खाकर मुकेश ने सालों गुज़ारे। लेकिन आज वो कहते हैं "अब मैं बहुत अच्छा खाना बना लेता हूँ।"
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मुकेश भट्ट (Mukesh Bhatt) की यह कहानी सिर्फ एक संघर्षरत अभिनेता की नहीं, बल्कि उन लाखों युवाओं की है जो अपने सपनों की तलाश में अपने घरों से निकलते हैं। यह कहानी बताती है कि आत्मविश्वास ज़रूरी है, लेकिन ओवर कॉन्फिडेंस (overconfidence) आपके पैरों के नीचे की ज़मीन खींच सकता है। मुकेश कहते हैं, "जो भी हो, पेसेंस रखो, मेहनत करते रहो, सही वक्त आएगा। सब मिलेगा, थोड़ा देर से ही सही।"
उनकी कहानी आज भी हजारों युवाओं को यह सिखा रही है कि संघर्ष कभी भी व्यर्थ नहीं जाता, बस दिल और नीयत सच्ची होनी चाहिए। [RH/PS]