बोल्ड गानों की रानी: जब आशा भोंसले ने समाज की सोच को चुनौती दी

आशा भोंसले के चर्चित गीत ‘पिया तू अब तो आजा’ की रिकॉर्डिंग के दौरान गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी इतने असहज हो गए कि स्टूडियो से चले गए। इस लेख में जानिए कैसे आशा ने समाज की सोच और सीमाओं को पीछे छोड़कर इतिहास रच दिया।
आशा भोंसले (Asha Bhosle) के गायकी का करियर केवल एक संगीत यात्रा नहीं है, बल्कि यह भारत की बदलती सोच, महिला सशक्तिकरण और कला की आज़ादी का प्रतिक भी है।
आशा भोंसले (Asha Bhosle) के गायकी का करियर केवल एक संगीत यात्रा नहीं है, बल्कि यह भारत की बदलती सोच, महिला सशक्तिकरण और कला की आज़ादी का प्रतिक भी है। AI Generated
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हिंदी संगीत जगत में आशा भोंसले का नाम बहुगुणी गायकी की बेहतरीन मिसाल है, शास्त्रीय, पॉप, क़व्वाली, भजन, लोक, फिल्मी रौनक... उन्होंने लगभग हर शैली में अपनी आवाज़ से जान फूंकी। लेकिन कुछ गाने ऐसे भी थे, जिन्होंने समाज की परम्पराओ को चुनौती दी और आशा उस चुनौती को खुशी-खुशी स्वीकार कर इतिहास रच गईं।

सबसे चर्चित उदाहरण है “पिया तू अब तो आजा” (Piya Ab Tu Aaja) 1971, फिल्म “कारवां” और “दम मारो दम” (Dam Maro Dam) 1971, फिल्म “हरे रामा हरे कृष्णा”, जो न केवल बहस का विषय बने, बल्कि रेडियो पर प्रतिबंधित भी कर दिए गए। ये गाने उस समय के लिए बेहद बोल्ड माने गए थे, जब भारतीय समाज में महिला स्वर और कामुकता को लेकर काफी संकोच और सीमाएं थीं। इन गीतों को लेकर न सिर्फ़ आम जनता में बात हुई, बल्कि खुद संगीतकार और गीतकारो में भी चर्चा शुरू हो गए। 

आशा भोंसले (Asha Bhosle) ने हाल ही एक इंटरव्यू में बताया कि “पिया तू अब तो आजा” की रिकॉर्डिंग के दौरान एक बेहद दिलचस्प घटना घटी। इस गाने के गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी (Majrooh Sultanpuri) रिकॉर्डिंग के दौरान स्टूडियो से उठकर चले गए और कहा: “बेटी, मैंने गंदा गाना लिखा है। मेरी बेटियां बड़े होकर यह गाना सुनेंगी।”

हिंदी संगीत जगत में आशा भोंसले का नाम बहुगुणी गायकी की बेहतरीन मिसाल है।  (Sora AI)
हिंदी संगीत जगत में आशा भोंसले का नाम बहुगुणी गायकी की बेहतरीन मिसाल है। (Sora AI)

यह वाक्य अपने आप में उस समय के सामाजिक मूल्य और एक भावुक कलाकार के आत्ममंथन को दर्शाती है। मजरूह (Majrooh) साहब को इस बात की चिंता थी कि कहीं उनके शब्द समाज को गलत संदेश न दे दें। पर वहीं आशा भोंसले (Asha Bhosle) ने इस गीत को पूरे आत्मविश्वास से गाया और नतीजा यह हुआ कि यह गीत आज भारतीय फिल्म संगीत का एक आइकॉनिक नंबर बन गया।

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इस घटना ने उस युग की सामाजिक सीमाओं और कलाकारों द्वारा की गई हिम्मत को उजागर किया। आशा ने इंटरव्यू में यह भी ज़िक्र किया कि उन्होंने एक बार आर. डी. बर्मन (R.D.Burman) से पूछा था— “क्यों मुझे ही ये बोल्ड गाने मिलते हैं, जबकि दीदी (लता मंगेशकर) को कोमल गीत दिए जाते है? ”इस पर बर्मन ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “क्योंकि तुम्हारी आवाज़ में वो आज़ादी है जो ज़माने को झकझोर सकती है।”

आशा भोंसले (Asha Bhosle) के गायकी का करियर केवल एक संगीत यात्रा नहीं है, बल्कि यह भारत की बदलती सोच, महिला सशक्तिकरण और कला की आज़ादी का प्रतिक भी है। जहां एक ओर लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) को ‘माँ सरस्वती’ जैसा दर्जा मिला, वहीं आशा को ‘आवाज़ की विद्रोही आत्मा’ कहा गया, जिन्होंने अपनी गायकी से हर उस सीमा को तोड़ा, जिसे ‘सभ्यता’ के नाम पर थोप दिया गया था।

आशा भोंसले (Asha Bhosle) ने इस गीत को पूरे आत्मविश्वास से गाया और नतीजा यह हुआ कि यह गीत आज भारतीय फिल्म संगीत का एक आइकॉनिक नंबर बन गया।  (Sora AI)
आशा भोंसले (Asha Bhosle) ने इस गीत को पूरे आत्मविश्वास से गाया और नतीजा यह हुआ कि यह गीत आज भारतीय फिल्म संगीत का एक आइकॉनिक नंबर बन गया। (Sora AI)

निष्कर्ष

आज के युग में, जब डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म जैसे Spotify, YouTube, Gaana पर आशा भोंसले के लाखों चाहने वाले हैं, तब यह समझना ज़रूरी है कि यह मुकाम सिर्फ़ मधुर आवाज़ से नहीं, बल्कि बोल्ड फैसलों और कलात्मक साहस से हासिल होता है। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने उन्हें द मोस्ट रिकार्डेड आर्टिस्ट के रूप में मान्यता दी है, जो खुद इस बात का सबूत है कि वे हर दौर की आवाज़ बन चुकी हैं।

इस लेख का केंद्र बिंदु वही रहा, कैसे एक गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान गीतकार खुद डर कर स्टूडियो छोड़ दें, और फिर वही गाना समय की कसौटी पर एक लेजेंड बन जाए। आशा के उस साहस और मजरूहजी के संकोच, दोनों ने मिलकर उस गीत को अमर बना दिया। (Rh/BA)

आशा भोंसले (Asha Bhosle) के गायकी का करियर केवल एक संगीत यात्रा नहीं है, बल्कि यह भारत की बदलती सोच, महिला सशक्तिकरण और कला की आज़ादी का प्रतिक भी है।
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