‘बाई’ शब्द का क्या अर्थ होता है ? जानिए इसके पीछे की वजह

‘बाई’ शब्द का उपयोग पश्चिमी भारत के कई हिस्सों में खासकर महाराष्ट्र (Maharashtra) और मध्य भारत (Middle India) में महिलाओं के नाम के अंत में एक सम्मानित उपसर्ग के रूप में लगता रहा है।
इस तस्वीर में हिस्टोरिकल महिला है जो कुर्सी पर बैठी दिख रही है और साथ ही उन्होंने सोने का जेवर भी पहना है
हमारे भारतीय भाषाओं में संबोधन केवल नाम नहीं होता वो सम्मान, पद और सामाजिक पहचान भी बताते हैं।Ai
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Summary
  • हमारे भारतीय भाषाओं में संबोधन केवल नाम नहीं होता वो सम्मान, पद और सामाजिक पहचान भी बताते हैं।

  • महारानी अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) , जिनकी नीतियाँ, धर्म-स्थापना और शासन-कुशलता आज भी याद की जाती है।

  • ‘बाई’ शब्द का प्रयोग मुख्यत मराठी-भाषी इलाकों में हुआ करता है, साथ ही यह पश्चिम और मध्य भारत के सामाजिक संदर्भों में भी अधिक देखने को मिलता था।

हमारे भारतीय भाषाओं में संबोधन केवल नाम नहीं होता वो सम्मान, पद और सामाजिक पहचान भी बताते हैं। इनमें से ही एक प्राचीन और दिलचस्प शब्द है ‘बाई’, हमने ये शब्द तो कई बार सुना होगा, वो चाहे हिस्ट्री हो या फिर हमारा नॉर्मल बात करना। पिछले काल में यह शब्द विशेषकर महिलाओं के नाम के साथ जुड़कर उनके सम्मान, दर्जा और उनकी क्या भूमिका है, इसका संकेत देता था। आज हम इसी शब्द के बारे में विस्तार से जानेंगे और इसके साथ ही इसी प्रकार के अन्य शब्दों के बारे में भी जानेंगे।

‘बाई’ शब्द का क्या मतलब होता है ?

‘बाई’ शब्द का उपयोग पश्चिमी भारत के कई हिस्सों में खासकर महाराष्ट्र और मध्य भारत में महिलाओं के नाम के अंत में एक सम्मानित उपसर्ग के रूप में लगता रहा है। इसका भावनात्मक अर्थ होता है “सम्मानित महिला” या “श्रीमती” और इसे औपचारिक सम्मान देने के लिए जोड़ा जाता था। यहाँ तक कि इसका ऐतिहासिक शिलालेखों और भाषाई संकेतों में भी ‘बाई’ या उसके समान रूपों का जिक्र मिलता है।

‘बाई’ शब्द का इतिहास क्या है ?

इतिहास में कई प्रमुख महिला शासकों और समाजसेविकाओं के नाम के साथ ‘बाई’ शब्द जुड़ा रहा है। उदाहरण के लिए महारानी अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) , जिनकी नीतियाँ, धर्म-स्थापना और शासन-कुशलता आज भी याद की जाती है। इनके नाम में यह उपसर्ग स्पष्ट रूप से देखा जाता है। उनका जीवन और शासन दोनों ही ऐतिहासिक ग्रंथों और विश्वकोश में आज भी दर्ज हैं।

कुछ मामलों में ‘बाई’ सिर्फ सम्मान का ही नहीं, बल्कि रानी/राजघराने की महिला का संकेत भी मना गया है। इतिहासकारों ने देखा है कि राजपरिवारों, कुलीन और उच्च सामाजिक पदों वाली महिलाओं के लिए यह संबोधन अधिक प्रयोग होता था।

इस तस्वीर में हिस्टोरिकल महिला है जो कुर्सी पर बैठी दिख रही है और साथ ही उन्होंने सोने का जेवर भी पहना है। और इनके हाथो में एक डंडा है और इन्होंने सफ़ेद रंग का वस्त्र धारण किया है
कुछ मामलों में ‘बाई’ सिर्फ सम्मान का ही नहीं, बल्कि रानी/राजघराने की महिला का संकेत भी मना गया है। Ai

किन जगहों पर ‘बाई’ शब्द का उपयोग होता है।

‘बाई’ शब्द का प्रयोग मुख्यत मराठी-भाषी इलाकों में हुआ करता है, साथ ही यह पश्चिम और मध्य भारत के सामाजिक संदर्भों में भी अधिक देखने को मिलता था। इसका कारण सरल है, समाज में नाम के साथ एक आदरपूर्ण उपसर्ग जोड़ कर उस महिला की प्रतिष्ठा या पारिवारिक स्थिति दर्शाना था। इसी तरह, मुगल कालीन और राजपूत संदर्भों में भी स्त्रियों के नामों पर विशेष उपाधियाँ और उपसर्ग लगते रहे है, जिनका उद्देश्य उनकी पहचान तथा निजी-गौरव बनाए रखना था।

इस तस्वीर में एक सुंदर लड़की दिख रही है जिन्होंने रंगबिरंगे रंग का लेहंगा पहना है और हाथों में कंगन
‘बाई’ शब्द का प्रयोग मुख्यत मराठी-भाषी इलाकों में हुआ करता है, साथ ही यह पश्चिम और मध्य भारत के सामाजिक संदर्भों में भी अधिक देखने को मिलता था।Wikimedia Commons

इतना ही नहीं भारत की विविध भाषाओं में समान भावना वाले कई संबोधन शब्द मिलते हैं। जैसे बंगाल में “दीदी”, दक्षिण में “अम्मा”, उत्तर में “माई” या पंजाब में “बीबी”कहा जाता है। ये सभी शब्द समाज में सम्मान, स्नेह या संबंध-स्थिति बताने के लिए प्रयोग होते हैं। कुछ शब्द विशेष क्षेत्रों या समुदायों में वैवाहिक स्थिति, उम्र या सामाजिक दर्जे का भी संकेत देते हैं।

हमारे भारत में बहुत सारे ऐसे शब्द है। जिसे हम हर बार सुनते तो है, लेकिन उसका अर्थ जानते नहीं है या हमे ये नहीं मालूम होता कि यह आया कहा से है। लेकिन इन सभी शब्दों का कुछ न कुछ अर्थ जरूर होता है।

‘बाई’ शब्द केवल एक उपसर्ग नहीं है, बल्कि यह भाषा (Language) के माध्यम से समाज की परंपरागत सोच, सम्मान देने की रीति और महिला-भूमिका की ऐतिहासिक छवि का संकेत देती है। आज कई जगहों पर यह प्रयोग कम हुआ है या बदलकर आम बोलचाल में समा गया है, पर इसके ऐतिहासिक प्रमाण और सामाजिक महत्व हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा बने हुए हैं। ऐतिहासिक नाम-उपाधियों का अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि किस तरह भाषा ने समाज में सम्मान और पहचान व्यक्त करने का काम किया है।

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