
भारत को हमेशा से दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहा जाता है। यहाँ करोड़ों लोग हर पाँच साल में मतदान करके अपनी सरकार चुनते हैं। यह व्यवस्था भारत की सबसे बड़ी ताक़त मानी जाती है। लेकिन हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट ने चिंता जताई है कि भारत में लोकतंत्र धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ रहा है। यह रिपोर्ट स्वीडन में स्थित संस्था वी-डेम इंस्टीट्यूट ने जारी की है, जो दुनिया भर के देशों में लोकतंत्र की स्थिति पर नज़र रखती है।
लोकतंत्र पर अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट (Global Democracy Report)
2020 में जारी की गई इस रिपोर्ट (Global Democracy Report) में कहा गया कि भारत का लोकतंत्र (Democracy) पहले जितना मज़बूत था, उतना अब नहीं रह गया है। संस्था ने एक 'उदार लोकतंत्र सूची में तैयार किया और उसमें भारत को 179 देशों में 90वाँ स्थान दिया गया है। इसमें डेनमार्क पहले स्थान पर रहा है, जबकि श्रीलंका 70वें और नेपाल 72वें स्थान पर अब तक पहुँचे हैं। भारत अपने पड़ोसियों से पीछे रहा है, जबकि पाकिस्तान 126वाँ स्थान पर और बांग्लादेश 154वाँ स्थान पर हमेशा से भारत से नीचे रहा है। आपको बता दें रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मीडिया, नागरिक समाज और विपक्ष की भूमिका धीरे-धीरे सिमटती जा रही है, और यही लोकतंत्र की सेहत के लिए ख़तरे की घंटी है।
लोकतंत्र की असली परिभाषा
इस रिपोर्ट (Global Democracy Report) की चर्चा करने से पहले यह समझना बहुत ज़रूरी है कि लोकतंत्र होता क्या है। लोकतंत्र (Democracy) एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें सत्ता का असली मालिक जनता होती है। इसमें लोग मतदान करके अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं और वही प्रतिनिधि सरकार चलाते हैं। लोकतंत्र की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें सबको बराबरी का अधिकार, और अपनी बात कहने की स्वतंत्रता और सरकार बदलने का हक़ मिलता है। कानून की नज़र में हर नागरिक समान होता है और कोई भी व्यक्ति या नेता कानून से ऊपर नहीं होता है। अगर कम शब्दों कहें तो लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा चलाया जाने वाला शासन है। जिसमें - अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म और राज्य का अलगाव, कानून के सामने सब बराबर, व्यक्तिगत आज़ादी (Freedom) और अधिकार, जनता द्वारा सरकार बदलने का अधिकार है। भारत का संविधान इन सभी बातों को सुरक्षित रखता है। यही कारण है कि हमें हमेशा गर्व रहा है कि भारत न सिर्फ़ सबसे बड़ा बल्कि सबसे विविध लोकतंत्र है।
रिपोर्ट पर उठते सवाल
सूर्य प्रकाश का मानना है कि भारत पर लगाए गए आरोप पूरी तरह सही नहीं हैं। वो कहते हैं कि अगर भारत में लोकतंत्र कमज़ोर हो रहा होता, तो क्या यहाँ 28 राज्यों में अलग-अलग 42 राजनीतिक पार्टियाँ सत्ता में होतीं ? क्या टीवी चैनलों पर हर शाम घंटों तक बहसें हो पातीं ? क्या सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री की आलोचना करने वाले हैशटैग ट्रेंड कर पाते ? उनका यह भी तर्क है कि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है, जबकि डेनमार्क जैसा देश जिसे लोकतंत्र का सबसे ऊँचा स्थान दिया गया है उसके संविधान में एक खास चर्च को सरकारी समर्थन प्राप्त है। ऐसे में तुलना का आधार ही सवालों के घेरे में है।
हालाँकि हर कोई इस रिपोर्ट को नज़रअंदाज़ नहीं कर रहा है। लोकतंत्र (Democracy) विशेषज्ञ निरंजन साहू कहते हैं कि रिपोर्ट के निष्कर्ष पूरी तरह ग़लत नहीं हैं। उनके अनुसार, हाल के वर्षों में बोलने की आज़ादी (Freedom) और मीडिया की स्वतंत्रता पर अंकुश बढ़ा है। सरकार आलोचनात्मक आवाज़ों को स्वीकार नहीं करती है। विपक्ष की भूमिका भी पहले की तुलना में कमजोर हो गई है। इस रिपोर्ट ने मीडिया की स्वतंत्रता (Freedom of Media) में कमी पर ख़ास ज़ोर दिया है। पत्रकारों पर मुक़दमे, सोशल मीडिया पोस्ट पर गिरफ़्तारियाँ और असहमति को दबाने की कोशिशें इस चिंता को और गहरा कर रही है।
सूर्य प्रकाश इसके जवाब में आँकड़े बताते हुए कहते हैं कि 2014 में भारत में दैनिक अख़बारों का सर्कुलेशन 14 करोड़ था, जो की अब 2018 में बढ़कर 24 करोड़ हो गया है। देश में 800 टीवी चैनल हैं, जिनमें से 200 तो न्यूज़ चैनल ही हैं। 2018 तक टीवी दर्शकों की संख्या 20 करोड़ तक पहुँच गई थी। वहीं, पाँच सालों में इंटरनेट कनेक्शन 15 करोड़ से बढ़कर 57 करोड़ हो गया था। उनका कहना है कि अगर भारत तानाशाही की तरफ़ बढ़ रहा होता, तो मीडिया और सूचना का इतना विस्तार संभव ही नहीं हो पता।
यह रिपोर्ट सिर्फ भारत तक सीमित नहीं थी। इसमें बताया गया है कि पूरी दुनिया में लोकतंत्र पर दबाव बढ़ रहा है। 25 साल से लगातार लोकतंत्र कमज़ोर हो रहा है और कई देश तानाशाही की ओर लौट रहे हैं। 2024 तक 45 देश निरंकुश शासन में पहुँच गए थे, जबकि 20 साल पहले यह संख्या सिर्फ 12 थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे पहले प्रभावित होती है। मीडिया पर सेंसरशिप, पत्रकारों का उत्पीड़न और दुष्प्रचार का इस्तेमाल आम होता जा रहा है। यह स्थिति न सिर्फ एशिया बल्कि यूरोप और अमेरिका जैसे क्षेत्रों में भी दिखाई दे रही है।
लोकतंत्र की ताक़तें
भारत में लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताक़त यह है कि यहाँ जनता को अपनी सरकार चुनने और बदलने का अधिकार दिया गया है। यह व्यवस्था विविधता और असहमति को जगह देती है। लोकतंत्र ने भारत को हमेशा एकजुट रखा है, जबकि यहाँ धर्म, जाति, भाषा और संस्कृति की विशाल विविधता मौजूद है। लोकतंत्र संवाद और चुनाव के ज़रिए विवादों को हल करने का अवसर देता है, जिससे समाज में स्थिरता बनी रहती है।
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लेकिन लोकतंत्र के सामने कई चुनौतियाँ भी हैं। भारत जैसे बड़े और बहुदलीय देश में निर्णय लेने में समय लगता है। कई बार लोकलुभावन राजनीति यानी वोट पाने के लिए किए गए वादे देश की प्रगति लम्बे समय तक को रोक देते हैं। भ्रष्टाचार, जातीय समीकरण और सत्ता संघर्ष लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करती हैं। सरकार बदलने पर नीतियों की निरंतरता टूट जाती है, जिससे की बहुत सी योजनाएँ अधूरी रह जाती हैं।
चीन जैसे देशों ने केंद्रीकृत शासन के कारण तेज़ आर्थिक विकास हासिल किया है, लेकिन वहाँ नागरिकों को स्वतंत्रता और असहमति का अधिकार नहीं है। भारत ने धीमी गति से विकास किया है, लेकिन यहाँ लोगों को बोलने की आज़ादी और समानता मिली है। यह स्थिरता और दीर्घकालिक प्रगति के लिए ज़रूरी है।
निष्कर्ष
भारत का लोकतंत्र (Democracy) खत्म नहीं हुआ है, बल्कि वह चुनौतियों से जूझ रहा है। समस्या लोकतंत्र नहीं है, बल्कि इसके भीतर मौजूद कमज़ोरियाँ हैं - जैसे भ्रष्टाचार, असमान संसाधन वितरण, लोकलुभावन राजनीति और शिक्षा-स्वास्थ्य पर अपर्याप्त ध्यान।
लोकतंत्र भारत की सबसे बड़ी ताक़त है। यह व्यवस्था कठिन और जटिल ज़रूर है, लेकिन यही भारत को स्थिर और टिकाऊ प्रगति की ओर ले जा सकती है। रिपोर्टों में चाहे जो कहा जाए, भारत का लोकतंत्र आज भी जीवित है और इसे मज़बूत बनाना जनता और संस्थाओं दोनों की ज़िम्मेदारी है। [Rh/PS]