अन्ना का टूटा भरोसा : स्वराज की राह से सत्ता की ओर, क्यों बदल गई आम आदमी पार्टी ?

स्वराज का सपना केवल आज़ादी तक सीमित नहीं था, बल्कि आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय से जुड़ा था। गांधी के ग्राम स्वराज से लेकर अन्ना हज़ारे के आंदोलन और केजरीवाल की राजनीति तक इसकी यात्रा ने बार-बार उम्मीद जगाई, लेकिन हर बार सत्ता की सियासत में स्वराज का सपना अधूरी रह गई।
2011 में अन्ना हज़ारे ने जन लोकपाल विधेयक के लिए आंदोलन किया। इस आंदोलन में लाखों लोग सड़कों पर उतरे और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई।
2011 में अन्ना हज़ारे ने जन लोकपाल विधेयक के लिए आंदोलन किया। इस आंदोलन में लाखों लोग सड़कों पर उतरे और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई।(AI)
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भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की सबसे बड़ी धुरी थी स्वराज। यह शब्द केवल राजनीतिक आज़ादी तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें आत्मनिर्भरता, आत्म-नियंत्रण और सामाजिक न्याय का व्यापक संदेश था। समय के साथ साथ इस विचार ने अनेकों रूप लिए कभी गांधीजी के सत्याग्रह और ग्राम स्वराज 'इसका अर्थ होता है गाँव का स्वशासन' इसके रूप में, तो कभी अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के राजनीतिक प्रयोगों में। लेकिन आज भी लोगों के दिलों में सवाल वही है कि क्या भारत में सच्चा स्वराज संभव है ?

1 जून 1916 को बाल गंगाधर तिलक ने घोषणा की थी कि "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।" यह नारा भारत की आज़ादी के आंदोलन की नींव बन गया। तिलक, दयानंद सरस्वती और एनी बेसेंट जैसे नेताओं ने भी स्वराज की वकालत की, लेकिन इस विचार को सबसे गहराई और लोकप्रियता इसे गांधीजी ने ही दी।

गांधी का मानना था कि स्वराज केवल अंग्रेजों को हटाने से पूरा नहीं होगा। सच्चा स्वराज तभी आएगा जब हर व्यक्ति आत्म-नियंत्रण सीखेगा, हर गाँव खुद को चलाने में सक्षम होगा और पूरा देश सामाजिक न्याय के साथ खड़ा होगा। गांधीजी के लिए स्वराज का मतलब था राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ नैतिक और सामाजिक क्रांति।

1 जून 1916 को बाल गंगाधर तिलक ने घोषणा की थी कि "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।"
1 जून 1916 को बाल गंगाधर तिलक ने घोषणा की थी कि "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।" (AI)

गांधीजी ने तीन स्तरों पर स्वराज की परिभाषा दी है, पहला है व्यक्तिगत स्वराज, यानी आत्म-अनुशासन और आत्म-शुद्धि। दूसरा है ग्राम स्वराज, यानी हर गाँव का अपना शासन और निर्णय लेने की शक्ति होना चाहिए। तीसरा है राष्ट्रीय स्वराज, यानी अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति और अपनी नीतियों पर नियंत्रण। उनका कहना यही था कि "असली स्वराज सत्ता हासिल करने से नहीं, बल्कि सत्ता का दुरुपयोग होने पर उसका प्रतिरोध करने की क्षमता से आता है। गांधी पश्चिमी संसदीय लोकतंत्र को भारतीय समाज के लिए उपयुक्त नहीं मानते थे। उनका मानना था कि केवल पंचायती राज और सामुदायिक भागीदारी से ही भारत को सच्चा स्वराज मिल सकता है।

गांधीजी की इस अवधारणा से सभी सहमत नहीं थे। लेकिन डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इसका कड़ा विरोध किया। उनका कहना था कि गाँव असमानताओं और जातिगत शोषण का केंद्र बना हुआ हैं। अगर गाँवों को पूरी आज़ादी दी जाए तो दलित और वंचित समुदाय और ज़्यादा शोषित होंगे। यही कारण था कि संविधान में पंचायतों का उल्लेख तो हुआ, लेकिन उन्हें असली शक्तियाँ नहीं दी गईं।

1947 के बाद गांधीजी का स्वराज का सपना अधूरा ही रह गया। लेकिन हाँ, उनके कुछ शिष्यों ने कई सामाजिक आंदोलनों की शुरुआत की। जैसे विनोबा भावे का भूदान आंदोलन (1951) ज़मींदारों से ज़मीन दान लेकर भूमिहीनों में बाँटने की कोशिश। इसके बाद जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति आंदोलन (1970 के दशक में) इसका उद्देश्य था भ्रष्टाचार और इंदिरा गांधी की सत्ता के विरुद्ध आवाज़ उठाना। इसके बाद 1992 में 73वें संविधान संशोधन ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया। महिलाओं और दलितों के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की गई। लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त में पंचायतें अक्सर दबंग नेताओं और भ्रष्ट अधिकारियों के हाथ का औज़ार बन गईं।

गांधी का मानना था कि स्वराज केवल अंग्रेजों को हटाने से पूरा नहीं होगा। सच्चा स्वराज तभी आएगा जब हर व्यक्ति आत्म-नियंत्रण सीखेगा, हर गाँव खुद को चलाने में सक्षम होगा और पूरा देश सामाजिक न्याय के साथ खड़ा होगा।
गांधी का मानना था कि स्वराज केवल अंग्रेजों को हटाने से पूरा नहीं होगा। सच्चा स्वराज तभी आएगा जब हर व्यक्ति आत्म-नियंत्रण सीखेगा, हर गाँव खुद को चलाने में सक्षम होगा और पूरा देश सामाजिक न्याय के साथ खड़ा होगा। (AI)

कुछ गाँवों ने गांधीजी का सपना सच करने की कोशिश की। जैसे रालेगण सिद्धि (अन्ना हज़ारे का गाँव) में जल संरक्षण और सामूहिक भागीदारी से आत्मनिर्भरता का मॉडल बनाना। हिवारे बाज़ार (महाराष्ट्र) वहां शराब, जुए और नशे से मुक्ति पाकर एक आदर्श हरित गाँव में बदला। इन उदाहरणों ने दिखाया कि पारदर्शिता, सहयोग और आत्मनिर्भरता से स्वराज संभव है।

2011 में अन्ना हज़ारे ने जन लोकपाल विधेयक के लिए आंदोलन किया। इस आंदोलन में लाखों लोग सड़कों पर उतरे और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई। इस आंदोलन ने स्वराज की चर्चा को फिर से जीवित कर दिया। भारत में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन दौरान, अन्ना हजारे अरविंद केजरीवाल और अन्य समाज सुधारकों के साथ मौजूदा सरकार से जवाबदेही की मांग की गई और जन लोकपाल विधेयक के लिए संघर्ष किया उसके बाद अन्ना हजारे के आशीर्वाद से केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी की स्थापना की। आम आदमी पार्टी का दावा था कि वह गांधीजी के स्वराज के विचार को राजनीति में लागू करेंगें, यानी इस पार्टी का उद्देश्य पारदर्शिता, सहयोग और लोगों के कल्याण को प्राथमिकता देते हुए स्वराज के मूल्यों को कायम रखना था।

आम आदमी पार्टी की उड़ान भले ही ऊँची रही हो, लेकिन सफ़र उनका जल्द ही बिखरने लगा। कुछ ही वर्षों में इसके कई संस्थापक सदस्य और पुराने समर्थक किनारा कर लिए।
आम आदमी पार्टी की उड़ान भले ही ऊँची रही हो, लेकिन सफ़र उनका जल्द ही बिखरने लगा। कुछ ही वर्षों में इसके कई संस्थापक सदस्य और पुराने समर्थक किनारा कर लिए। (AI)

आम आदमी पार्टी की उड़ान भले ही ऊँची रही हो, लेकिन सफ़र उनका जल्द ही बिखरने लगा। कुछ ही वर्षों में इसके कई संस्थापक सदस्य और पुराने समर्थक किनारा कर लिए। सबसे बड़ा झटका तो तब लगा, जब अन्ना हज़ारे ने भी पार्टी से अपना समर्थन वापस ले लिया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब डॉ मुनीश कुमार रायज़ादा को दिए एक साक्षात्कार में अन्ना ने स्पष्ट कहा कि अब उनका केजरीवाल से कोई बातचीत नहीं है, फिर यह सुनकर उन्हें गहरा अफ़सोस हुआ है और सोचने लगे कि जिस आंदोलन से इतनी उम्मीदें थीं, उसका नेतृत्व करने वाला व्यक्ति अपने ही सिद्धांतों से भटक गया।

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डॉक्यूमेंट्री फिल्म पारदर्शिता: पारदर्शिता बताती है कि कैसे आम आदमी पार्टी ने समर्थन जुटाने के लिए स्वराज की अवधारणा का इस्तेमाल किया, लेकिन अंततः वह खुद वही बन गई जिसके खिलाफ वह लड़ रही थी, और एक विकेन्द्रीकृत, स्व-शासित देश की कल्पना को उन्होंने धोखा दिया।

आम आदमी पार्टी की उड़ान भले ही ऊँची रही हो, लेकिन सफ़र उनका जल्द ही बिखरने लगा।
आम आदमी पार्टी की उड़ान भले ही ऊँची रही हो, लेकिन सफ़र उनका जल्द ही बिखरने लगा। (AI)

निष्कर्ष

गांधीजी से लेकर अन्ना हज़ारे और अरविंद केजरीवाल तक, स्वराज की अवधारणा ने भारत के राजनीतिक और सामाजिक जीवन को बार-बार दिशा दी है। लेकिन हर बार यह सवाल सामने आया है कि क्या सत्ता में आकर कोई भी समूह स्वराज की असली भावना को कायम रख सकता है ? आज भी कुछ आदर्श गाँव और सामाजिक संगठन ने इस विचार को ज़िंदा रखे हुए हैं। लेकिन बड़े पैमाने पर, स्वराज अभी भी एक अधूरा सपना है। गांधीजी ने कहा था कि "स्वराज आत्मा का शासन है।" शायद यही संदेश आज भी हमें याद दिलाता है कि असली आज़ादी केवल राजनीतिक नहीं है, बल्कि सामाजिक और नैतिक बदलाव में छिपी हुई है।

यह आर्टिकल हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि भारत का लोकतंत्र केवल चुनाव और सत्ता की राजनीति तक सीमित ही न रह जाए, क्योंकि असली चुनौती तो जनता को शासन का सक्रिय भागीदार बनाना है। तभी गांधी और अन्ना का स्वराज का अधूरा सपना सच हो पाएगा। [Rh/PS]

2011 में अन्ना हज़ारे ने जन लोकपाल विधेयक के लिए आंदोलन किया। इस आंदोलन में लाखों लोग सड़कों पर उतरे और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई।
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