
भारत की रियासतों का इतिहास हमेशा से ही लोगों को आकर्षित करता रहा है। इनमें रामपुर (Rampur) रियासत का नाम सबसे दिलचस्प और अनोखा भी माना जाता है। यह रियासत न केवल अपनी नवाबी शान-ओ-शौकत के लिए बल्कि अपने खजाने (Treasure), कला-संस्कृति और रहस्यमयी (Mystery) किस्सों के लिए भी याद की जाती है। रामपुर की सबसे खास बात यह थी कि आज़ादी के समय जब कई मुस्लिम रियासतें पाकिस्तान जाने पर विचार कर रही थीं, तब रामपुर ने बिना देर किए भारत का हिस्सा बनने का फैसला कर लिया।
रामपुर रियासत की शुरुआत
रामपुर (Rampur) रियासत की कहानी 18वीं सदी में शुरू हुआ था। मुगल सम्राट औरंगजेब की मृत्यु 1707 में हुआ था, उनकी मृत्यु के बाद साम्राज्य कमजोर होने लगा। उस समय उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके को "कटहेर" कहा जाता था, जहां कटहेरिया राजपूत रहते थे। इनसे निपटने के लिए मुगलों ने अफगान सरदार दाऊद खान को यहां बसने का न्योता दिया। दाऊद खान के साथ आए पठानों को स्थानीय लोग "रोहिल्ला" कहने लगे। धीरे-धीरे रोहिल्लों ने इस इलाके में ताकत हासिल कर ली।
लेकिन 1774 में जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और अवध के नवाब ने रोहिलखंड पर हमला किया, तब ज्यादातर रोहिल्ले हार गए। सिर्फ एक सरदार फैज़ुल्लाह खान चालाकी से बच निकले। उन्होंने अंग्रेजों से समझौता किया और बदले में रामपुर व आसपास के कुछ गांव से मिले। इसी तरह 7 अक्टूबर 1774 को रामपुर रियासत का जन्म हुआ।
रामपुर (Rampur) के नवाबों (Nawab) का अंग्रेजों से रिश्ता हमेशा अच्छा रहा है। 1857 के विद्रोह के दौरान जब आसपास के इलाकों में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत हो रही थी, तब रामपुर के नवाब यूसुफ अली खान ने अंग्रेज अधिकारियों को शरण दी थी। उनकी इस वफादारी का नतीजा यह हुआ कि अंग्रेजों ने रामपुर को 21 तोपों की सलामी देने वाली रियासत का दर्जा दिया। इससे रामपुर धीरे-धीरे उत्तर भारत का सांस्कृतिक केंद्र बनने लगा।
रामपुर के नवाब न केवल योद्धा थे बल्कि कला और साहित्य के भी बड़े प्रशंसक थे। यहां कई शायर और कलाकार आए, जिनमें मशहूर मिर्ज़ा ग़ालिब और बेगम अख्तर का नाम खास है। नवाब फैज़ुल्लाह खान ने दुर्लभ अरबी, फारसी और उर्दू पांडुलिपियां इकट्ठा करना शुरू किया था। यही संग्रह आगे चलकर "रामपुर रज़ा लाइब्रेरी" बन गया जिसमें आज 17,000 से ज्यादा पांडुलिपियां और हजारों दुर्लभ किताबें मौजूद हैं।
नवाबी शौक और किस्से
रामपुर के नवाबों (Nawab) की शान-ओ-शौकत के किस्से भी मशहूर हैं। कहा जाता है कि एक नवाब ने अपने सिंहासन में ही छेद बनवाया था ताकि दरबार से उठकर बाहर न जाना पड़े और वहीं बैठे-बैठे "फारिग" हो सकें। वहीं नवाब अहमद अली खान ने "रामपुर हाउंड" नामक विशेष कुत्ते की नस्ल तैयार करवाई, जो तेज़ दौड़ने और शिकार में माहिर माने जाते थे। एक और किस्सा नवाब हामिद अली खान और उनकी पत्नी मुनव्वर बेगम से जुड़ा हुआ है। नाराज होकर उन्होंने अपनी पत्नी को बिस्तर समेत तालाब में फेंकने का हुक्म दे दिया था। इस तरह के किस्से रामपुर की नवाबी जिंदगी की झलक दिखाते हैं।
रामपुर (Rampur) के नवाब कल्बे अली खान के बारे में कहा जाता है कि उनकी लाश दफनाने के बाद कब्र से बाहर आ जाती थी। बाद में उन्हें "खड़ी कब्र" में दफनाया गया। हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण कभी मिला ही नहीं है, लेकिन रामपुर की लोककथाओं में यह कहानी आज भी सुनाई जाती है। रामपुर के आखिरी नवाब रजा अली खान जिनका कार्य काल 1930 -1966 तक रहा है, उनको एक प्रगतिशील शासक माना जाता है। क्योकि उन्होंने अपनी सरकार में हिंदू अधिकारियों को भी शामिल किया था, जिनमें प्रधानमंत्री लेफ्टिनेंट कर्नल होरिलाल वर्मा का नाम खास है। उन्होंने रामपुर में चीनी मिल, डिस्टिलरी, रेलवे और नहरें बनवाईं।
उनके समय में "कोठी खासबाग" का निर्माण हुआ, जो एशिया का पहला एयर-कंडीशंड महल था। इसमें सिनेमा हॉल, गर्म पानी का स्विमिंग पूल और गुप्त तहखाने में रखा गया खजाना भी था। रामपुर के खजाने के किस्से सबसे रोमांचक हैं। इसमें हीरे-जवाहरात, सोने-चांदी के बर्तन और बेशकीमती मोती शामिल थे। कहा जाता है कि इसमें "एम्प्रेस ऑफ इंडिया" नामक हीरा भी था। 1947 में इस खजाने की कीमत साढ़े तीन करोड़ रुपये आंकी गई थी,जो की आज अरबों में होती।
लेकिन 1980 में यह खजाना रहस्यमयी (Mystery) तरीके से चोरी हो गया। खासबाग महल की छत में एक छोटा सा छेद पाया गया, रस्सियां लटक रही थीं लेकिन उस छेद से न तो कोई बड़ा इंसान जा सकता था और न बच्चा यहां की तिजोरियों के ताले भी सुरक्षित मिले, लेकिन खजाना (Treasure) गायब था। सीबीआई जांच भी हुई लेकिन न खजाना मिला और न ही चोर। यह रहस्य आज तक अनसुलझा है।
रामपुर का भारत में विलय
1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, तब मुस्लिम लीग ने रामपुर को पाकिस्तान जाने के लिए दबाव डाला। लेकिन नवाब (Nawab) रजा अली खान ने बिना हिचक भारत के साथ जुड़ने का फैसला कर लिया। उन्होंने कहा कि "मेरी रियासत भारत में है और मैं भारत का ही समर्थन करूंगा।" यही कारण है कि रामपुर का विलय बिना विवाद के भारत में हुआ।
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आज रामपुर (Rampur) उत्तर प्रदेश का एक जिला है और हाल ही में फिर से चर्चा में आया गया है। नवाब रजा अली खान की अरबों की संपत्ति के बंटवारे के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सर्वे शुरू हो गया है। तिजोरियां और मालखाने खोले जा रहे हैं, जिनमें सोना, चांदी, कारें और हथियार बताए जाते हैं। हालांकि अभी भी विवाद जारी है और नए दावेदार सामने आ रहे हैं।
निष्कर्ष
रामपुर रियासत भारतीय इतिहास का वह अध्याय है जिसमें शान-ओ-शौकत, कला-संस्कृति, रहस्य और राजनीति सब कुछ है। जहां एक ओर नवाबों ने साहित्य और संगीत को नई ऊंचाइयां दीं, वहीं उनका बेशकीमती खजाना (Treasure) आज भी रहस्य बना हुआ है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने 1947 में भारत का हिस्सा बनने का जो फैसला लिया, उसने उनकी पहचान को हमेशा के लिए भारतीय इतिहास में दर्ज कर दिया। [Rh/PS]