
ईरान के इतिहास में पहलवी वंश का नाम अक्सर विवाद और सत्ता संघर्षों से जुड़ा हुआ रहा है। इसी वंश की सबसे चर्चित और विवादित महिला थीं शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी (Shah Mohammad Reza Pahlavi) की जुड़वां बहन, शहज़ादी अशरफ़ पहलवी (Ashraf Pahlavi)। वह अपने साहस, विद्रोही स्वभाव, राजनीतिक दखल और आलीशान जीवनशैली के लिए दुनिया भर में जानी गईं। उनका जीवन सत्ता, महत्वाकांक्षा, भ्रष्टाचार के आरोपों और निजी त्रासदियों का एक अनोखा मिश्रण था।
शुरुआती जीवन और परिवार
26 अक्टूबर 1919 को तेहरान में जन्मीं अशरफ़ पहलवी, रज़ा शाह पहलवी और ताजुल-मुलूक की संतान थीं। दिलचस्प बात यह थी कि उनके जुड़वां भाई मोहम्मद रज़ा पहलवी (Mohammad Reza Pahlavi) सिर्फ पाँच घंटे पहले पैदा हुए थे, जो आगे चलकर ईरान के शाह बने। उनके पिता रज़ा शाह पहलवी एक सैन्य अधिकारी थे जिन्होंने 1925 में सत्ता संभाली और खुद को शाह घोषित किया। इसी के साथ पहलवी वंश की शुरुआत हुई। बचपन से ही अशरफ़ पहलवी बेहद महत्वाकांक्षी और तेज़-तर्रार थीं। वो किसी से दबने वाली नहीं थीं। उनकी माँ तक मानती थीं कि शायद अशरफ़ ही शाह बनने के लायक थीं, न कि उनके भाई मोहम्मद रज़ा।
अशरफ़ पहलवी (Ashraf Pahlavi) का राजनीतिक जीवन हमेशा सुर्खियों में रहा है। वह अपने भाई शाह मोहम्मद रज़ा (Mohammad Reza Pahlavi) की सबसे भरोसेमंद सलाहकार थीं। अक्सर उन्हें अपने भाई पर दबाव डालते हुए देखा जाता था। कहा जाता है कि उन्होंने कई बार शाह से सीधे सवाल किए और यहाँ तक उन्होंने पूछ भी दिया था की “तुम मर्द हो या चूहा ?” उनकी इसी बेबाकी के किस्से अमेरिकी राजदूतों और खुफ़िया रिपोर्टों तक में दर्ज हैं।
1930 के दशक की शुरुआत में अशरफ़ पहलवी, उनकी बहन शम्स और उनकी माँ ने पारंपरिक हिजाब को त्याग दिया। यह उस दौर में ईरान जैसे रूढ़िवादी समाज के लिए बेहद बड़ी बात थी। वह महिलाओं के अधिकारों की मुखर समर्थक थीं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी औरतों की आज़ादी की वकालत की। हालांकि आलोचकों का कहना था कि जब वह विदेशों में औरतों की स्वतंत्रता की बातें कर रही थीं, तब ईरान की हज़ारों महिलाएँ जेलों और सज़ाओं का सामना कर रही थीं।
1953 का ‘ऑपरेशन एजेक्स’ और उनकी भूमिका
1953 का तख़्तापलट ईरान के इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक था। प्रधानमंत्री मोहम्मद मुसद्दिक़ ने ब्रिटिश कंपनियों से तेल उद्योग छीनकर राष्ट्रीयकरण किया, जिससे पश्चिमी देशों में खलबली मच गई। अमेरिका और ब्रिटेन ने मिलकर ‘ऑपरेशन एजेक्स’ नामक गुप्त योजना बनाई, जिसका मकसद मुसद्दिक़ को सत्ता से हटाना था। कहा जाता है कि अशरफ़ पहलवी ने इसमें अहम भूमिका निभाई थी। वह उस समय फ्रांस में थीं और CIA के एजेंटों ने उनसे शाह को मनाने की गुज़ारिश की। शुरुआत में उन्होंने इनकार किया, लेकिन बाद में वह मान गईं और शाह को तख़्तापलट की मंज़ूरी देने के लिए तैयार कर लिया।
हालाँकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह विद्रोह अशरफ़ के बिना भी हो सकता था, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि उनकी मौजूदगी और दबाव ने बड़ी भूमिका निभाई है। इस विद्रोह के बाद शाह की सत्ता और मज़बूत हो गई, और अशरफ़ पहलवी (Ashraf Pahlavi) का राजनीतिक दखल और भी बढ़ गया। अशरफ़ पहलवी की शादियाँ भी उनकी तरह विवादों से घिरी रहीं। उन्होंने तीन बार शादी की और तीनो बार तलाक हो गया। उनके तीन बच्चे हुए, लेकिन वह स्वीकार करती थीं कि वह कभी अच्छी माँ नहीं बन पाईं। उन्होंने एक बार इंटरव्यू में भी कहा था की “मेरी जीवनशैली ऐसी थी कि मैं अपने बच्चों के साथ समय नहीं बिता सकी।”
अशरफ़ पहलवी (Ashraf Pahlavi) पर कई बार भ्रष्टाचार, कालेधन और यहाँ तक कि ड्रग्स स्मगलिंग तक के आरोप लगे हैं। अमेरिकी दस्तावेज़ों के अनुसार, वह शाही दरबार से जुड़े कई बड़े स्कैंडलों के केंद्र में थीं। कहा जाता है कि ईरान में औद्योगिक विकास के दौर में उन्होंने और उनके बेटे शहराम ने कई कंपनियों में मुफ्त हिस्सेदारी हासिल की। सरकारी लाइसेंस केवल उन्हीं कंपनियों को दिए जाते थे जिनमें उनका फायदा होता था। हालाँकि अशरफ़ हमेशा कहती थीं कि उनकी दौलत उनके पिता से विरासत में मिली ज़मीनों और कारोबार से आई थी।
अशरफ़ पहलवी ने जीवन भर महिलाओं के अधिकारों की आवाज़ उठाई। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर औरतों की स्थिति पर चिंता जताई। लेकिन आलोचक कहते हैं कि जब वह विदेशों में महिलाओं की आज़ादी की बातें कर रही थीं, तब ईरान में महिलाओं को दूसरी श्रेणी का नागरिक बना दिया गया था और हज़ारों महिलाएँ जेलों में थीं। यानी उनका जीवन विरोधाभासों से भरा हुआ था।
निर्वासन (Exile) और त्रासदी
1979 की ईरानी क्रांति के बाद शाह का शासन गिर गया और पहलवी परिवार को देश छोड़ना पड़ा। अशरफ़ भी निर्वासन (Exile) में चली गईं और अमेरिका तथा पेरिस में रहीं। उनका बाद का जीवन किसी शेक्सपियरियन ट्रेजडी से कम नहीं था। उनके बेटे की पेरिस में हत्या कर दी गई। उनके जुड़वां भाई शाह कैंसर से चल बसे। उनकी भतीजी की मौत ड्रग्स की वजह से हो गई। उनके एक और भतीजे ने भी आत्महत्या कर ली। इन घटनाओं ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया।
अशरफ़ पहलवी (Ashraf Pahlavi) ने धीरे-धीरे सार्वजनिक जीवन से दूरी बना ली। लेकिन वह अब भी पश्चिमी समाज में हाई-प्रोफाइल पार्टियों और समारोहों में दिखाई देती थीं। 7 जनवरी 2016 को मोनाको में अल्ज़ाइमर की बीमारी से 96 साल की उम्र में उनकी मौत हुई। उस समय वह पहलवी परिवार की सबसे बुज़ुर्ग सदस्य थीं। अशरफ़ पहलवी बेहद आकर्षक, आधुनिक और पश्चिमी सोच वाली महिला थीं। फ़्रेंच और अंग्रेज़ी धाराप्रवाह बोलती थीं। उनका व्यक्तित्व लोगों को खींच लेता था। लेकिन इसके साथ ही वह विवादित भी थीं जैसे - सत्ता की भूखी, भ्रष्टाचार में घिरी, और राजनीतिक चालों की खिलाड़ी। उन्होंने खुद लिखा था, की “मैं अगर दोबारा जी सकूं तो वही सब कुछ करूंगी। मेरे जीवन से मुझे कोई पछतावा नहीं है । वह 50 साल शानदार थे।”
निष्कर्ष
अशरफ़ पहलवी (Ashraf Pahlavi) का जीवन सत्ता, महत्वाकांक्षा, शानो-शौकत, भ्रष्टाचार और निजी त्रासदियों से भरी एक ऐसी कहानी है, जिसमें हर मोड़ पर नाटकीयता है।
वह महिलाओं के अधिकारों की परोपकार भी थीं और तानाशाही शासन की समर्थक भी थीं। वह शाही ठसक में जीने वाली राजकुमारी भी थीं और निर्वासन में अकेली महिला भी थीं। इसलिए कहा जा सकता है कि उनका जीवन सिर्फ ईरान के इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि एक बड़ी राजनीतिक त्रासदी भी है। [Rh/PS]