

आयुर्वेद (Ayurveda) में तिल के तेल को सर्दियों में सबसे ज्यादा गुणकारी बताया गया है, जो त्वचा को संरक्षण देने के साथ-साथ जोड़ों के दर्द में भी काम देता है।
तिल का तेल सिर्फ एक तेल नहीं, बल्कि सर्दियों का नेचुरल बॉडी कवच है। यह शरीर को सुरक्षित रखने के साथ-साथ शरीर को गर्म रखता है, स्किन को पोषित करके उसे जवां बनाए रखने में मदद करता है। साथ ही, मांसपेशियों और जोड़ों में होने वाले दर्द से भी राहत देता है। आयुर्वेद में माना गया है कि तिल का तेल सर्दियों में बढ़ने वाले वात को कम करता है, जिससे गठिया, जोड़ों में दर्द और नींद न आने की परेशानी होती है। ऐसे में अगर तिल के तेल से अभ्यंग किया जाए तो इन सभी परेशानियों से राहत मिल सकती है।
आयुर्वेद में माना गया है कि तिल का तेल इतना प्रभावशाली होता है कि जैसे ही इसे त्वचा पर लगाया जाता है, तो त्वचा की सात परतों को पार करके अंदर तक अपना असर दिखाता है। इसमें भरपूर मात्रा में सेसामोल, सेलमिन और विटामिन ई होता है, जो प्राकृतिक रूप से त्वचा को पोषण देता है। इससे त्वचा का रूखापन, झुर्रियां (Wrinkles) और सर्दियों में त्वचा पर पड़ने वाली दरारें कम होती हैं। सेसामोल और सेलमिन मिलकर त्वचा को अंदर से पोषण देते हैं।
भारतीय संस्कृति में सालों से उबटन में तिल के तेल का इस्तेमाल होता आया है, क्योंकि ये धूप में मौजूद यूवी किरणों से भी बचाता है। ये हमारे शरीर पर सनस्क्रीन की तरह काम करता है। इसके प्रयोग से त्वचा पर एक पतली लेयर बन जाती है। ये लेयर 24 घंटे तक शरीर पर बनी रहती है और त्वचा की रक्षा करती है। ऐसी क्षमता न तो नारियल के तेल में होती है और न ही जैतून के तेल में।
तिल के तेल का प्रयोग हड्डियों को मजबूती देता है। जोड़ों के दर्द और गठिया की परेशानी सर्दियों में ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसे में सुबह-शाम तिल के तेल से अभ्यंग लाभकारी होता है।
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