

स्टडी में पाया गया कि गौर वर्ण वाले मरीजों को काले या हिस्पैनिक (स्पेन या लैटिन अमेरिका में जन्मे) मरीजों की तुलना में क्लोस्ट्रीडियम डिफिसाइल (Clostridium difficile) ( एक खतरनाक बैक्टीरिया (Bacteria) जिससे गंभीर और अक्सर जानलेवा डायरिया होता है) से संक्रमित होने का खतरा ज्यादा होता है।
स्टडी के मुताबिक, क्लोस्ट्रीडियम डिफिसाइल इन्फेक्शन (Clostridium Difficile Infection) (सीडीआई) से होने वाली लगभग 84 फीसदी मौतें गोरे मरीजों में होती हैं। रिसर्चर्स ने कहा कि यह संक्रमण, जो कोलन पर हमला करता है और तेज डायरिया का कारण बनता है, दूसरे नस्लीय ग्रुप्स की तुलना में गोरे लोगों में ज्यादा जानलेवा साबित हो रहा है।
इसके उलट, श्याम वर्ण वाले मरीजों में मृत्यु दर 8 फीसदी है, जबकि हिस्पैनिक मरीजों में यह 6 फीसदी से भी कम है, जो इन्फेक्शन के जानलेवा नतीजों में एक बड़ा नस्लीय अंतर दिखाता है।
ये नतीजे संक्रमित बीमारियों को लेकर बनी प्रोफेशनल सोसाइटी की सालाना जॉइंट मीटिंग, आई़डी वीक में साझा किए गए।
इस इवेंट में एक्सपर्ट्स ने इस बात पर जोर दिया कि यह समझना बहुत जरूरी है कि यह बैक्टीरियल इन्फेक्शन (Infection) कुछ नस्लीय ग्रुप्स को दूसरों की तुलना में ज्यादा गंभीर रूप से क्यों प्रभावित करता है।
रिसर्चर्स ने यह भी बताया कि क्लोस्ट्रीडियम डिफिसाइल इन्फेक्शन शहरी और मेट्रोपॉलिटन (Metropolitan) इलाकों में रहने वाले लोगों में ज्यादा आम हैं। संक्रमण से जुड़ी कुल मौतों में से लगभग 84 फीसदी बड़े शहरों में हुईं, जिससे पता चलता है कि शहरी आबादी को संक्रमण के संपर्क में आने या गंभीर बीमारी का ज्यादा खतरा है।
क्लोस्ट्रीडियम डिफिसाइल (जिसे आमतौर पर सी.डिफ्फ के नाम से जाना जाता है) एक बैक्टीरिया है जो कोलन में जानलेवा सूजन पैदा कर सकता है। यह मुख्य रूप से दूषित सतहों के संपर्क में आने से या एंटीबायोटिक्स (Antibiotics) के लंबे समय तक इस्तेमाल से फैलता है जो आंत के प्राकृतिक बैक्टीरियल संतुलन को बिगाड़ देते हैं।
हालांकि इन्फेक्शन किसी को भी हो सकता है, लेकिन बुज़ुर्ग और कमजोर इम्यून सिस्टम (Immune System) वाले लोग खास तौर पर ज्यादा कमजोर माने जाते हैं।
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