डॉक्टरों की चेतावनी: जहां किया अपमान, वहीं चाहिए सार्वजनिक माफ़ी!

गोवा (Goa) में एक वीडियो वायरल होने के बाद स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे और गोवा मेडिकल कॉलेज के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. रुद्रेश कुट्टीकर (Dr. Rudresh Kuttikar) के बीच विवाद खड़ा हो गया है। वीडियो में मंत्री डॉक्टर को स्टाफ़ के सामने डांटते और सस्पेंड करने का आदेश देते दिख रहे हैं। डॉक्टर (Doctor) ने इसे सार्वजनिक अपमान बताया है और अब मंत्री से उसी जगह सार्वजनिक माफ़ी की मांग की है। इस विवाद (dispute) ने अब राज्यभर के डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को भी आंदोलित कर दिया है।
सोमवार को विवाद के बढ़ने के बाद मंत्री राणे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (ट्विटर) पर एक वीडियो पोस्ट कर डॉ. कुट्टीकर से ‘दिल से माफ़ी’ मांगी।
सोमवार को विवाद के बढ़ने के बाद मंत्री राणे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (ट्विटर) पर एक वीडियो पोस्ट कर डॉ. कुट्टीकर से ‘दिल से माफ़ी’ मांगी।
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कैसे शुरू हुआ विवाद ?

यह पूरा घटनाक्रम शनिवार को शुरू हुआ जब गोवा मेडिकल कॉलेज के आकस्मिक विभाग (कैज़ुअल्टी) में एक व्यक्ति अपने रिश्तेदार को विटामिन बी12 का इंजेक्शन लगवाने के लिए आया। अस्पताल स्टाफ़ ने बताया कि यह आपातकालीन दवा नहीं है और मरीज को सामान्य ओपीडी या नज़दीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज के लिए जाना चाहिए।

इस मामूली से प्रतीत होने वाले मेडिकल निर्णय ने राजनीतिक और प्रशासनिक भूचाल ला दिया, जब उस व्यक्ति ने सीधे स्वास्थ्य मंत्री राणे से संपर्क किया। मंत्री उसी दिन अस्पताल पहुँचे और मौके पर मौजूद सीएमओ डॉ. कुट्टीकर को स्टाफ़ के सामने डांटने लगे।

उसके बाद घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इसमें मंत्री राणे गुस्से में डॉक्टर को ‘जेब से हाथ निकालने’, ‘अपनी ज़ुबान पर काबू रखने’ और ‘तुरंत घर जाने’ की चेतावनी देते हुए दिखते हैं। वीडियो में वे यह भी कहते सुनाई देते हैं कि वह डॉक्टर को “तुरंत सस्पेंड” करने का आदेश दे रहे हैं।

मंत्री की आवाज़ में नाराज़गी स्पष्ट थी, और उनका कहना था कि गरीबों को सेवा से वंचित नहीं किया जा सकता। डॉक्टर की तरफ़ से कुछ कहने की कोशिश को भी मंत्री ने बीच में रोक दिया और चेतावनी दी कि अगर वह अस्पताल से नहीं गए, तो उनका ब्लड प्रेशर और बढ़ जाएगा।

सोमवार को विवाद के बढ़ने के बाद मंत्री राणे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (ट्विटर) पर एक वीडियो पोस्ट कर डॉ. कुट्टीकर से ‘दिल से माफ़ी’ मांगी। उन्होंने कहा, "उस वक्त भावनाएं हावी हो गई थीं। मैंने कठोर शब्दों का इस्तेमाल किया, जिसका मुझे अफ़सोस है। मेरा उद्देश्य किसी का अपमान करना नहीं था, बल्कि यह सुनिश्चित करना था कि हर मरीज़ को समय पर देखभाल मिले।"

मंत्री ने यह भी कहा कि इस मामले का राजनीतिकरण किया जा रहा है और एक पेशेवर विषय को राजनीतिक टकराव का रूप दे दिया गया है। सीएमओ डॉ. रुद्रेश कुट्टीकर ने मंत्री की माफ़ी को नकारते हुए कहा कि जब अपमान सार्वजनिक रूप से अस्पताल में हुआ, तो माफ़ी भी वहीं, उसी परिस्थिति में होनी चाहिए।

उसके बाद उन्होंने कहा, “मैंने मंत्री का माफ़ीनामा देखा, लेकिन वो स्टूडियो में बैठकर माफ़ी मांग रहे हैं। हम चाहते हैं कि वो उसी कैज़ुअल्टी विभाग में आकर माफ़ी माँगे जहाँ उन्होंने मेरा अपमान किया था। यह वीडियो रिकॉर्ड किया जाना चाहिए ताकि जिस तरह अपमान वायरल हुआ, उसी तरह माफ़ी भी लोगों तक पहुँचे।”

उन्होंने यह भी कहा कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो वह और उनके सहयोगी डॉक्टर हड़ताल पर जाने को मजबूर होंगे। उनके अनुसार, उन्हें गोवा (Goa) सहित देशभर के डॉक्टरों का समर्थन प्राप्त है।

सोमवार सुबह गोवा (Goa) मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। वे सभी 'सम्मान चाहिए', 'न्याय चाहिए' जैसे नारे लगा रहे थे। गोवा (Goa) एसोसिएशन ऑफ रेज़िडेंट डॉक्टर्स (GARD) ने सरकार को 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया है कि अगर इस मुद्दे का समाधान नहीं किया गया, तो वे काम बंद कर हड़ताल पर चले जाएंगे।

गोवा (Goa) एसोसिएशन ऑफ रेज़िडेंट डॉक्टर्स (GARD) के प्रतिनिधियों ने कहा कि यह मामला सिर्फ एक डॉक्टर का नहीं, बल्कि पूरे चिकित्सा समुदाय के सम्मान से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि अगर आज एक सीनियर डॉक्टर को इस तरह सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जा सकता है, तो कल किसी के भी साथ ऐसा हो सकता है।

राजनीतिक हलचल और जन प्रतिक्रिया

इस घटना ने गोवा (Goa) की राजनीति में भी हलचल मचा दी है। विपक्षी दलों ने मंत्री राणे की आलोचना करते हुए कहा कि उन्हें संयम और गरिमा के साथ व्यवहार करना चाहिए था। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटना 2027 के राज्य चुनावों को मद्देनज़र कर भी असर डाल सकती है, क्योंकि मंत्री राणे गोवा की राजनीति में एक प्रभावशाली चेहरा माने जाते हैं।

जनता की प्रतिक्रियाएं भी बंटी हुई हैं। सोशल मीडिया पर कुछ लोग मंत्री की भावुक माफ़ी को पर्याप्त मानते हैं, जबकि कई लोग डॉक्टर की बात का समर्थन करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार से उन्हें डांटा गया, वह किसी भी पेशेवर के लिए अस्वीकार्य है।

अगर डॉक्टरों की मांगें पूरी नहीं होतीं और हड़ताल होती है, तो इसका सीधा असर मरीजों की देखभाल पर पड़ेगा। गोवा मेडिकल कॉलेज राज्य का प्रमुख सरकारी अस्पताल है, जहां हज़ारों मरीज रोज़ इलाज के लिए आते हैं। स्वास्थ्य सेवाएं ठप होने से आपातकालीन मामलों में भारी परेशानी हो सकती है।

एक ओर जहां मंत्री का तर्क है कि कोई भी मरीज़ सेवा से वंचित न रह जाए, वहीं डॉक्टरों का मानना है कि अस्पताल में मेडिकल प्रोटोकॉल का पालन करना उनकी ज़िम्मेदारी है। विटामिन बी12 का इंजेक्शन एक इमरजेंसी दवा नहीं मानी जाती और उसका इलाज ओपीडी या पीएचसी में किया जाना चाहिए।

यह एक ऐसा मामला है जिसमें संवेदनशीलता, गरिमा और व्यवस्था – तीनों का संतुलन आवश्यक है।

मौजूदा हालात को देखते हुए, एक संवादात्मक समाधान की सख्त ज़रूरत है। विशेषज्ञों की राय है कि मंत्री को डॉक्टरों से सीधे संवाद करना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो सार्वजनिक माफ़ी के माध्यम से मामला समाप्त किया जा सकता है। इससे न केवल डॉक्टरों का सम्मान होगा बल्कि राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं भी प्रभावित होने से बच जाएंगी।

निष्कर्ष:

इस पूरे मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रशासनिक पदों पर बैठे लोगों को सार्वजनिक व्यवहार में संयम बरतना चाहिए। डॉक्टरों जैसे संवेदनशील पेशे से जुड़े व्यक्तियों को अगर अपमानित किया जाएगा, तो इसका असर केवल उनके आत्मसम्मान पर नहीं, बल्कि पूरे चिकित्सा तंत्र पर पड़ेगा।

जब डॉक्टर अपनी अगली रणनीति की घोषणा करेंगे,तो क्या मंत्री सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगेंगे ? या गोवा की स्वास्थ्य व्यवस्था हड़ताल की राह पर चली जाएगी ?

इसका उत्तर आने वाला समय देगा, लेकिन एक बात तय है, यह मामला अब सिर्फ एक माफ़ी तक सीमित नहीं रहा, यह पेशेवर सम्मान और प्रणालीगत संवेदनशीलता का प्रतीक बन गया है।

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