Inspiration: रोज 16 किलोमीटर साइकिल चलाकर तय करती थी स्कूल का सफर, बोर्ड परीक्षा में जिले में पाया चौथा स्थान

सोमवार को असम (Assam) कक्षा 10वीं की बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे आए तो चानू पूरे राज्य चौथे स्थान पर रही।
Inspiration: रोज 16 किलोमीटर साइकिल चलाकर तय करती थी स्कूल का सफर, बोर्ड परीक्षा में जिले में पाया चौथा स्थान(IANS)

Inspiration: रोज 16 किलोमीटर साइकिल चलाकर तय करती थी स्कूल का सफर, बोर्ड परीक्षा में जिले में पाया चौथा स्थान

(IANS)

सिनम जैफबी चानू (Sinam Jaifbi Chanu)

न्यूजग्राम हिंदी: उसके घर से स्कूल तक की आठ किलोमीटर लंबी सड़क बहुत खराब स्थिति में है और गर्मी के मौसम में पूरी तरह से कीचड़ से भरी रहती है। इस सड़क पर सार्वजनिक वाहन नहीं चलते हैं।

उस क्षेत्र में रहने वाले एक गरीब और सीमांत परिवार के एक दुकानदार की बेटी सिनम जैफबी चानू (Sinam Jaifbi Chanu) के पास इस कीचड़ भरी सड़क को पार करने के लिए केवल एक साइकिल थी।

स्कूल में अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए उसे हर दिन दो घंटे में 16 किलोमीटर साइकिल चलानी पड़ती थी।

सोमवार को असम (Assam) कक्षा 10वीं की बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे आए तो चानू पूरे राज्य चौथे स्थान पर रही।

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पंद्रह वर्षीय चानू चुराचांदपुर (Churachandpur) गांव में रहती है। यह दक्षिणी असम क्षेत्र में कछार जिले के मुख्यालय सिलचर (Silchar) से 46 किलोमीटर दक्षिण में है।

चानू ने कछार जिले के कबुगंज के होली क्रॉस स्कूल में पढ़ाई की। अपने घर में पर्याप्त सुविधाएं न होने के कारण जब स्कूल बंद होता था तो वह दिन के समय अपने गांव में एक पेड़ के नीचे पढ़ती थी। निजी ट्यूटर का कोई सवाल ही नहीं था।

उसने कहा, मुझे पेड़ के नीचे पढ़ने में मजा आया क्योंकि मैं अपनी पढ़ाई पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकती थी।

चुराचांदपुर में स्वच्छ पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। आमतौर पर ग्रामीण तालाब का पानी पीते हैं।

चानू को अक्सर अपने घर के लिए पानी भरने के लिए अपनी मां के साथ पास के तालाब पर जाना पड़ता है।

उसकी मां इबेमा देवी ने 2012 में असम सरकार की शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन नौकरी हासिल नहीं कर सकीं, क्योंकि उन्होंने सरकारी स्कूलों में शिक्षण पदों के लिए ऊपरी आयु सीमा पहले ही पार कर ली थी।

<div class="paragraphs"><p>चानू की मां इबेमा देवी</p></div>

चानू की मां इबेमा देवी

IANS

उन्होंने कहा, आज मैं बहुत खुश हूं कि मेरी बेटी इस रैंक को हासिल कर सकी।

चानू सॉफ्टवेयर इंजीनियर (Software Engineer) बनना चाहती है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) के बारे में सीखना चाहती है। हालांकि, उसके पास घर पर कंप्यूटर या लैपटॉप नहीं है। उनके पिता सिनम इबोचा सिंघा गांव में एक छोटी सी दुकान चलाते हैं।

उसने कहा, एक बार जब मैं एक कंप्यूटर खरीदने में सक्षम हो जाऊंगी, तो मैं कोडिंग सीखना शुरू कर दूंगी।

यह परिवार मणिपुर के एक जातीय समूह मेइती समुदाय से है। चानू का गांव भी असम-मणिपुर बॉर्डर से ज्यादा दूर नहीं है।

जब उनसे पड़ोसी राज्य में मौजूदा अस्थिर स्थिति के बारे में पूछा गया, तो चानू ने जवाब दिया, मैंने सुना है कि वहां कुछ हो रहा है, लेकिन मैं ज्यादा विस्तार से नहीं जानती। हालांकि, मैं चाहती हूं कि मणिपुर (Manipur) में जल्द से जल्द शांति लौट आए।

--आईएएनएस/PT

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