International Yoga Day 2022: दो मुख्य सत्ताओं का आपसी संयोग है योग

स्वयं नियमित योगाभ्यास (Yoga Practice) के लिए निकाला गया थोड़ा सा समय भी व्यक्ति के जीवन में खुशहाली तथा संतुलन लाता है।
International Yoga Day 2022: दो मुख्य सत्ताओं का आपसी संयोग है योग
International Yoga Day 2022: दो मुख्य सत्ताओं का आपसी संयोग है योगWikimedia Commons

International Yoga Day 2022: योग का विचार अथवा अभ्यास इस संसार में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में पतंजलि के योगसूत्र से प्राप्त होता है जोकि दो मुख्य सत्ताओं का आपसी संयोग बताता है- मनुष्य का इस अनंत ब्रह्माण्ड से।

योग शब्द का शाब्दिक अर्थ स्वयं में ही दो पदार्थों का जुड़ना है जैसे कि मानव का प्रकृति से, मानव का मानव से, मानव का उसकी चेतना से, इत्यादि। इसका उल्लेख अष्टांग योग के रूप में ५००० वर्ष पुरानी 'योग कारुंथ' से भी प्राप्त होता है जोकि वामन ऋषि द्वारा उद्घृत माना जाता है।

यम, नियम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि, से आलोकित यह अभ्यास मानव को उसके मन, शरीर तथा ज्ञानेन्द्रियों पर नियंत्रण प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। अतः इसी योग शब्द से योगी शब्द की व्युत्पत्ति हुई है; जो योग करे वही योगी है। अर्थात् दूसरे शब्दों में जिसने संयम की इस कसौटी को योग द्वारा प्राप्त कर लिया वह योगी है, जिसके उदाहरण युंगों युंगो से कई व्यक्तित्वों ने दिया है।

अनादि काल में कृष्ण ने, तो आधुनिकता की दौड़ के प्रारंभिक दौर में श्री रामकृष्ण परमहंस ने, उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद ने इत्यादि महापुरुषों ने योग की आधारशिला को समाज में रखने का प्रयास किया है।

स्वयं पर संयम रखकर मनुष्य न केवल शांति एवं आनंद का भागी बनता है, बल्कि दवाइयों की थैली से भी छुटकारा पा जाता है। इसके इसी बहुआयामी प्रभाव को देखते हुए 2015 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा (United Nations) ने विश्व को योग धारण करने की तरफ अग्रसर करते हुए 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (International Yoga Day) के रूप में मनाने का निर्णय लिया। जिसमें चीन समेत 177 देशों ने इस सुझाव का समर्थन किया था।

International Yoga Day 2022: दो मुख्य सत्ताओं का आपसी संयोग है योग
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नियमित रूप से किया जाने वाला योगाभ्यास न केवल हमें मानसिक, भावनात्मक और आत्मिक विचारों पर नियंत्रण करने की योग्यता देता है बल्कि हमारे बौद्धिक स्तर को सुधारते हुए उच्च स्तर की एकाग्रता तथा मेधा भी प्रदान करता है। धर्म, जाती, लिंग, उम्र आदि से परे, यह योग व्यक्ति के अंदर आत्मानुशासन और आत्म जागरूकता विकसित करता है तथा जीवन में संतुलन लाता है। ऐसा नहीं है कि यह पद्धति केवल हिन्दू ग्रंथों में ही मिलता है बल्कि हर धर्म में किसी न किसी रूप में यह मार्ग ही मुक्ति अथवा मोक्ष का साधन के रूप में माना गया है। बौद्ध धर्म में इसे मुक्तिपथ तो जैन तीर्थंकरों ने भी इसे ही मुक्ति का साधन बनाया। आप यदि इस्लाम धर्म में ध्यान दें तो पाएंगे कि वहां भी नमाज़ अदायगी जिस मुद्रा में बैठ कर करते हैं वो वज्रासन से मिलती जुलती है, ईसाईयों में भी उनके अनुयायी एक शांत माहौल में बैठ कर प्रभु येशु पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वह ध्यान योग से परस्पर मेल खाती है।

मनुष्य अपने जीवन काल में अनेक कर्म करता है, पर कर्म करना ही केवल महत्व का विषय नहीं है, महत्व का विषय यह है कि उसके कर्मों में कुशलता अथवा संतुलन कितना है, क्यूंकि यही कुशलता उस व्यक्ति को योग के शिखर पर ले जाता है। इसका समर्थन करते हुए श्रीकृष्ण ने भी भगवद्गीता (Bhagvad Geeta) के दूसरे अध्याय के पच्चास्वें श्लोक में स्वयं कहा है-

"बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते। तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्।।"

अर्थात्, बुद्धि-(समता) से युक्त मनुष्य यहाँ जीवित अवस्थामें ही पुण्य और पाप दोनोंका त्याग कर देता है। अतः तू योग-(समता-) में लग जा, क्योंकि योग ही कर्मोंमें कुशलता है।

स्वयं नियमित योगाभ्यास के लिए निकाला गया थोड़ा सा समय भी व्यक्ति के जीवन में खुशहाली तथा संतुलन लाता है।

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