न्यूजग्राम हिन्दी: महज एक लाख रुपये दहेज की खातिर एक लड़की को शादी के आठ महीने बाद उसके पति और ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। बेतरह सतायी गयी हताश लड़की मां-पिता के घर लौटी तो डिप्रेशन में चली गयी। उम्मीदें एकबारगी चकनाचूर हो गयी। जिंदगी बोझ लगने लगी। फिर उन्होंने खुद को संभाला, हौसला समेटा। पास के गांव में बढ़ई का काम करनेवालों से लकड़ी की कारीगरी सीखी। इसके बाद अपना छोटा सा काम शुरू किया और कुछ ही सालों में देखते-देखते वुडक्राफ्ट का 'पीपल ट्री' नामक इतना बड़ा ब्रांड खड़ा कर लिया कि आज उन्होंने दो सौ से भी ज्यादा महिलाओं को रोजगार दे रखा है।
क्या है झारखंड के एक छोटे से शहर घाटशिला की रहनेवाली मधुमिता साव की कहानी?
उन्होंने आईएएनएस से अपने संघर्ष और कामयाबी की कहानी साझा की। वह 2012 का वर्ष था। घाटशिला कॉलेज से ग्रैजुएशन पूरा करने के कुछ महीनों बाद उनकी शादी हो गयी। शिक्षक पिता को अहसास था कि रिटायरमेंट के पहले बिटिया की शादी कर उन्होंने एक बड़ी जिम्मेदारी पूरी कर ली है। लेकिन ससुराल की देहरी पर कदम रखने के कुछ रोज बाद ही मधुमिता के पति और ससुराल वाले हर रोज नयी डिमांड करने लगे। मायके वालों ने शुरूआत में उनकी कुछ मांगें पूरी भी कीं, लेकिन सिलसिला रुका नहीं। एक लाख रुपये की नयी मांग को लेकर उन्हें प्रताड़ित किया जाने लगा। माता-पिता बेबस थे। इधर ससुराल वालों ने एक रोज उन्हें घर बदर कर दिया।
मधुमिता बताती हैं, मैं एक सामान्य गृहिणी बनने के सपने के साथ ससुराल गयी थी। जब मायके लौटना पड़ा तो मायूसियां हावी थीं। मां-पिता-भाई सबने हिम्मत बंधायी, लेकिन मैं डिप्रेशन से घिर गयी। दूर के रिश्तेदार और जानने वाले ताना देते थे। आंखों के सामने अंधकार था। हताशा इतनी थी कि मैं यह भी भूल गयी थी कि मैंने पढ़ाई की है और उसकी बदौलत मैं खुद कुछ कर सकती हूं।
इन हालातों से उबरने में उन्हें तकरीबन ढाई-तीन साल लग गये। वह एक रोज जमशेदपुर गयी थीं तो उन्होंने सड़क के किनारे कुछ लोगों को की-रिंग बेचते देखा। जिज्ञासा हुई कि लकड़ियों के छोटे टुकड़े से इसे बनाते कैसे हैं। फिर उन्होंने घाटशिला लौटकर गांव के कारीगरों से काम सीखना शुरू किया। वर्ष 2015 में उन्होंने तीन स्थानीय आदिवासी महिलाओं के साथ मिलकर लकड़ी की की-रिंग बनाने का छोटा सा काम शुरू किया। इसके बाद लकड़ी के कई अन्य तरह के शो-पीस बनाने लगीं। साल भर में ही दर्जन भर जरूरतमंद महिलाएं जुड़ गयीं। इस काम को आगे बढ़ाने में भाई उत्पल साहू ने बहुत मदद की।
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2016 में उन्होंने 'पीपल ट्री' नामक एक संस्था शुरू की और इसके जरिए बड़ी संख्या में महिलाओं को कारीगरी का प्रशिक्षण देकर उनके बनाये उत्पादों को बेचने के लिए एक छोटा सा आउटलेट खोला। इसके लिए जगह एक फर्नीचर शोरूम के मालिक ने अपने यहां जगह दी। यह एक बड़ी मदद थी। आज पीपल ट्री झारखंड का एक जाना-माना ब्रांड बन चुका है। इनके बनाये वुडक्राफ्ट प्रोडक्ट्स राज्य के बाहर भी खूब बिकते हैं।
झारखंड में पीपल ट्री के नौ आउटलेट हैं-
रांची, पतरातू वैली, जमशेदपुर के पीएम मॉल, बुरुडीह डैम, नेतरहाट सहित अन्य स्थानों पर इन आउटलेट्स को शानदार रिस्पांस मिल रहा है। पीपल ट्री का सालाना टर्नओवर लगभग 60 लाख है। पीपल ट्री की वेबसाइट से भी देश-विदेश के लोग अच्छी संख्या में खरीदारी करते हैं।
मधुमिता बताती हैं कि फिलहाल हमारी संस्था के साथ 230 महिलाएं जुड़ी हैं। ये प्रतिमाह सात-आठ हजार से लेकर 15 हजार रुपये तक की कमाई कर लेती हैं। पीपल ट्री ने पूर्वी सिंहभूम जिले के पोटका, घाटशिला और मतलाडीह में प्रोडक्शन सेंटर स्थापित किये हैं। कई महिलाएं ऐसी हैं, जो घर से भी काम करती हैं। आगामी अगस्त-सितंबर से संस्था की ओर से नये प्रोजेक्ट्स शुरू करने की योजना है। इनसे भी काफी संख्या में लोगों के जुड़ने की उम्मीद है। वह कहती हैं, मुझे खुशी है कि हमारे उद्यम से जुड़कर ऐसी महिलाएं आत्मनिर्भर हुईं हैं, जो अपनी हर जरूरत के लिए पति या पुरुष सदस्यों पर आश्रित थीं।
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मधुमिता इन दिनों किताबें पढ़ने में जुटी हैं। वह कमजोर वर्ग के बच्चों की पढ़ाई के लिए जल्द ही एक बड़ी पहल करने वाली हैं। फिलहाल उनकी संस्था तीन जिलों में आवासीय बालिका विद्यालयों की छात्राओं को भी वुडक्राफ्ट की ट्रेनिंग देती हैं, ताकि जब वो स्कूल से निकलें तो उनके हाथ में हुनर हो। संस्था जमशेदपुर के गोलमुरी स्थित एक अनाथालय को भी सपोर्ट करती है। (आईएएनएस/JS)