मध्य प्रदेश के अनेक इलाके कला और संस्कृति से समृद्ध हैं मगर उन्हें पहचान नहीं मिल पाई। वहीं अशोकनगर जिले का 'प्राणपुर' गाँव ग्रामीण पर्यटन की मिसाल बन गया है और यहां की कला-संस्कृति देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों तक पहुंच रही है, तो वहीं यहां के लोगों की जिंदगी में बड़ा बदलाव आया है।
ललितपुर से चंदेरी की ओर जाने वाले मार्ग पर स्थित है प्राणपुर। यह गांव खूबसूरत वादियों के बीच बसा है। यहां हथकरघा और मिट्टी की कला में पारंगत लोग तो हैं ही साथ ही पत्थर की नक्काशी करने वाले भी मन मोह लेते हैं। इतना कुछ होने के बाद यह गांव वर्ष 2005 में सामने आया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस गांव को पर्यटन परियोजना का हिस्सा बनाया गया। लगभग तीन साल तक इस गांव के पास 'अमराई रूरल हेरिटेज रिसॉर्ट' का निर्माण किया गया।
ग्रामीण पर्यटन के तौर पर प्राणपुर के आकार लेने की रोचक कहानी है। बर्ड स्वयंसेवी संगठन के आनंद उपाध्याय बताते हैं कि वे वर्ष 2002 के आसपास गुना जिले में महिला सशक्तीकरण के लिए स्व सहायता समूह को मजबूत बनाने के अभियान में लगे हुए थे। इसी दौरान पर्यटन परियोजना सामने आई, इस परियोजना का मकसद ग्रामीण हस्तकला, पुरातन संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण करने के साथ ग्रामीण आजीविका में योगदान देना था और उन्होंने एक प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को भेजा जिसे मंजूरी मिल गई।
प्राणपुर ऐसा गांव है जहां पत्थर पर नक्काशी का हुनर वहां के लोगों के हाथ में है, इसके अलावा मिट्टी के बर्तन व खिलौने, धातु शिल्प व लकड़ी की कलाकारी यहां के लोगों की आजीविका का साधन है। इसके अलावा बुनकरों की भी अच्छी खासी तादाद है तो वहीं संगीत के जानकार भी यहां हैं।
केंद्र सरकार के पर्यटन विभाग की इस परियोजना का जो मकसद था उसके लिए उपयुक्त गांव था प्राणपुर। यहां लोग आएं और ठहरने के बाद यहां की कला से रूबरू हों, इसके लिए एक रिसोर्ट की योजना को अमलीजामा पहनाया गया। गांव के करीब ही पांच एकड़ जमीन खोजी गई और इस जमीन पर आम के पेड़ लगे हैं, तो वहीं राई नृत्य यहां का पारंपरिक नृत्य है, इन दोनों को मिलाकर अमराई नाम दिया गया।
यहां स्थानीय कारीगरों ने पत्थरों के कमरे बनाए हैं जिनमें दूर-दूर से आए पर्यटक रुकते हैं। इस रिसोर्ट को जब बनाया गया तो स्थानीय कारीगरों को रोजगार देने पर तो ध्यान दिया ही गया साथ ही एक भी पेड़ न कटे इस पर भी जोर रहा। कमरे ऐसे स्थान पर बने हैं जो खाली पड़े थे।
अब इस रिसॉर्ट का संचालन गांव की पर्यटन विकास समिति द्वारा किया जाता है। स्थानीय जागरूक नागरिक हेमंत जैन बताते हैं कि देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों के पर्यटक यहां आते हैं, साथ ही वे बच्चे और समूह भी आते हैं जिन्हें अध्ययन आदि करना होता है क्योंकि इतना शांत और मनोरम दृश्य कहीं और मिलना मुश्किल है।
एक तरफ जहां पर्यटकों के लिए एक सुकून वाली जगह विकसित हुई है तो वहीं दूसरी ओर स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला है, यहां बनने वाले परिधान, चंदेरी साड़ियां, सूट व अन्य हस्तनिर्मित घरेलू उपयोग व साज-सज्जा की सामग्री की बिक्री होती है। जो भी यहां आता है वह कुछ न कुछ खरीद कर जाता ही है। परिणाम स्वरूप इस परियोजना के चलते यहां के हर वर्ग को आजीविका चलाने में मदद मिल रही है।
प्राणपुर गांव की लगभग दो दशक पहले की तस्वीर और वर्तमान तस्वीर काफी बदली हुई है क्योंकि यहां के हस्तशिल्प के महारथियों को नई पहचान मिली है तो वहीं उनका कारोबार भी बढ़ा है। इसके साथ ही यहां की जड़ी बूटियां भी लोग ले जाते हैं। कुल मिलाकर एक कोशिश ने प्राणपुर को नई पहचान दिलाई है और वह भी ग्रामीण पर्यटन के क्षेत्र में।
प्राणपुर गांव की भोपाल, ग्वालियर और खजुराहो से दूरी लगभग 230 किलोमीटर है। यहां आने वाला पर्यटक कई स्थानों का आसानी से भ्रमण कर सकता है तो वहीं भागमभाग भरी जिंदगी से दूर उसे कुछ सुकून के पल भी आसानी से मिल जाते हैं।
(आईएएनएस/PS)