
"नारीत्व" सुमित्रानंदन पंत के जीवन का स्थाई हिस्सा (Wikimedia Commons)
प्रकृति के सुकुमार कवि
न्यूजग्राम हिंदी: उत्तराखंड (Uttarakhand) के बागेश्वर (Bageshwar) जिले के कौसानी (Kausani) गांव में 20 मई 1900 को जन्मे सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) को "प्रकृति के सुकुमार कवि" भी कहा जाता है।
इनकी माता का नाम सरस्वती देवी (Saraswati Devi) और पिता का नाम गंगा दत्त पंत (Ganga Dutt Pant) था। इनके जन्म के कुछ घंटों बाद ही इनकी मां की मृत्यु हो गई थी इसीलिए इनका पालन-पोषण इनकी दादी द्वारा किया गया। बचपन में इनका नाम गोसाई दत्त (Gosai Dutt) था लेकिन इन्हें यह नाम पसंद नहीं था इसीलिए इन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। इन्होंने मात्र 7 साल की उम्र से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया।
पंत के सिर से मां का साया बचपन में ही उठ गया था इसीलिए उन्होंने प्रकृति को अपनी मां माना और 25 वर्ष तक केवल स्त्रियों पर कविता लिखी।
यह उस समय की बात है जब हिंदुस्तान में नारीवाद तो नहीं हुआ करता था लेकिन नारी के स्वतंत्रता के पक्ष में आवाज उठा करती थी और इन्हीं में से एक आवाज थी सुमित्रानंदन पंत की। उनका कहना था कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता का पूर्ण उदय तब तक नहीं हो सकता जब तक नारी स्वतंत्र वातावरण में ना रह रही हो। वह महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने महात्मा गांधी की अगुवाई में चल रहे आंदोलन असहयोग आंदोलन में भी अपना योगदान दिया।
नारीत्व उनके व्यवहार का स्थाई हिस्सा
(Wikimedia Commons)
एक वक्त वह भी आया जब उन्हें अल्मोड़ा (Almora) में अपनी सारी जमीन बेचनी पड़ी और आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा। यही कारण था कि उनका विवाह न हो पाया और वह पूरी उम्र अविवाहित रहे। लेकिन इसके बावजूद भी नारी उनके हर काव्य की हर विधि में मौजूद है: मां, पत्नी, प्रेमिका और सखी के रूप में। नारीत्व उनके व्यवहार का स्थाई हिस्सा रहा है।
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