हिंदी साहित्य की एक ऐसी लेखिका जिनपर लगे अश्लीलता के आरोप!

हिंदी साहित्य में मृदुला गर्ग एक ऐसा नाम हैं, जिनकी पहचान सिर्फ एक लेखिका तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें समाज का आईना कहा जाए तो गलत नहीं होगा। उन्होंने अपने लेखन के ज़रिए उन सचाइयों को सामने रखा, जिन्हें लोग अक्सर अनकहा छोड़ देते थे। स्त्री की इच्छाएँ, उसके मन की उलझनें, समाज के दोहरे मानदंड ये ऐसे मुद्दे थे जिन्हें छूना भी उस दौर में “वर्जना” माना जाता था।
Mridula Garg  accused of obscenity!
Mridula Garg
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हिंदी साहित्य में मृदुला गर्ग एक ऐसा नाम हैं, जिनकी पहचान सिर्फ एक लेखिका तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें समाज का आईना कहा जाए तो गलत नहीं होगा। उन्होंने अपने लेखन के ज़रिए उन सचाइयों को सामने रखा, जिन्हें लोग अक्सर अनकहा छोड़ देते थे। स्त्री की इच्छाएँ, उसके मन की उलझनें, समाज के दोहरे मानदंड ये ऐसे मुद्दे थे जिन्हें छूना भी उस दौर में “वर्जना” ("Taboo") माना जाता था। लेकिन लेखिका ने न तो कभी अपने लेखन को रोका और न ही किसी को खुश करने के लिए लिखा।

उनकी रचनाएँ तलवार की तरह थीं। चुभती भी थीं और सच का आईना भी दिखाती थीं। यही कारण है कि उनके लेखन को पढ़ते वक्त पाठक कभी सहज महसूस नहीं करता, बल्कि भीतर तक झकझोर दिया जाता है। उपन्यास “चितकोबरा” (“Chitkobra”) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसने हिंदी साहित्य (Hindi Literature) की धारा ही बदल दी। मृदुला ने साबित किया कि साहित्य का काम सिर्फ मनोरंजन करना नहीं, बल्कि समाज की आँखें खोलना भी है। आज जब हम उन्हें याद करते हैं तो लगता है कि वो सिर्फ लेखिका नहीं, बल्कि एक विचार थीं, एक विद्रोही आवाज़ थीं, जिसने कभी सच बोलने से परहेज़ नहीं किया।

बचपन से ही सवाल पूछने वाली लड़की

मृदुला गर्ग (Mridula Garg) का जन्म 25 अक्टूबर 1938 को कोलकाता में हुआ था, लेकिन उनकी परवरिश दिल्ली में हुई। बचपन से ही उनके सवाल सामान्य बच्चों से बिल्कुल अलग हुआ करते थे। जब बाकी बच्चे गुड़ियों और खेलों में खोए रहते थे, तब मृदुला के मन में समाज और परंपरा को लेकर सवाल उठते रहते थे। एक बार उन्होंने अपने स्कूल के मास्टर जी से पूछ लिया “अगर राम ने सीता से अग्नि परीक्षा ली, तो क्या सीता भी राम से कोई सवाल पूछ सकती थीं?”

Mridula Garg [X]
Mridula Garg [X]

यह सवाल जितना सरल था, उतना ही गहरा भी। इसमें बचपन से ही मौजूद उनकी आलोचनात्मक सोच और स्त्रियों के प्रति संवेदनशील नज़रिया झलकता था। मृदुला ने आगे चलकर दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. किया और कुछ समय तक लेक्चरर के तौर पर पढ़ाया भी। लेकिन उनका असली झुकाव समाज के उस “झूठे अर्थशास्त्र” (Jhuthe Arthshastra) को समझने और उजागर करने में था, जिसमें स्त्रियों को हमेशा दूसरे दर्जे का माना जाता था। यही सवाल उनके भीतर गूंजते रहे और बाद में उनके उपन्यासों के किरदारों के रूप में सामने आए। उनका बचपन भले ही साधारण रहा हो, लेकिन उसमें छुपे सवालों और सोच की गहराई ने उन्हें एक असाधारण लेखिका बना दिया।

Mridula Garg at a Function
उनका बचपन भले ही साधारण रहा हो, लेकिन उसमें छुपे सवालों और सोच की गहराई ने उन्हें एक असाधारण लेखिका बना दिया। [Wikimedia Commons]

जब ‘चितकोबरा’ से मचा तूफ़ान

1979 में जब मृदुला गर्ग (Mridula Garg) का उपन्यास “चितकोबरा” (“Chitkobra”) प्रकाशित हुआ, तो हिंदी साहित्य में जैसे हलचल मच गई। यह कहानी एक विवाहित स्त्री की थी, जो एक अजनबी पुरुष के साथ संबंध बनाती है और हैरानी की बात यह कि उसे लेकर कोई अपराधबोध महसूस नहीं करती। उस समय के समाज के लिए यह विचार असहनीय था, क्योंकि स्त्रियों से उम्मीद की जाती थी कि वे हमेशा पवित्रता और त्याग की मूर्ति बनकर रहें। “चितकोबरा” ने इन परंपरागत धारणाओं को सीधे चुनौती दी।

A Book By Mridula Garg
Chitkobra [X]

आलोचकों ने इस उपन्यास को “अश्लील”, “अनैतिक” और “परिवार विरोधी” तक कह डाला। इतना ही नहीं, सरकार ने उनके खिलाफ अश्लील लेखन का मुकदमा भी दर्ज कर दिया। मृदुला को अदालत तक जाना पड़ा, जहाँ यह मामला सिर्फ एक किताब का नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा बन गया। लोग उम्मीद कर रहे थे कि वो सफाई देंगी या माफी मांग लेंगी, लेकिन उन्होंने डटकर कहा:

“अगर सच लिखना अश्लीलता है, तो हाँ, मैं अश्लील हूँ।”

उनकी यह बेबाकी उस दौर की सबसे बड़ी साहित्यिक बहस का हिस्सा बनी। “चितकोबरा” ने भले ही विवाद खड़ा किया हो, लेकिन यही उपन्यास उन्हें हिंदी साहित्य की सबसे विद्रोही और साहसी लेखिकाओं में शुमार कर गया।

निजी जीवन और रिश्तों की गहराई

मृदुला गर्ग (Mridula Garg) की कहानियों में जो गहराई दिखाई देती है, उसका स्रोत उनके निजी जीवन के अनुभव भी रहे हैं। उन्होंने शादी की, प्रेम भी जिया, लेकिन कभी अपनी सोच और स्वतंत्रता को रिश्तों की बलि नहीं चढ़ाया। उनके अनुसार,“रिश्ते अगर इंसान को छोटा बना दें, तो वो रिश्ते नहीं, समझौते होते हैं।” यह दृष्टिकोण उनके जीवन में भी दिखाई देता था और उनके उपन्यासों में भी। उन्होंने प्रेम को कभी सपनों की दुनिया तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसकी जटिलताओं और असहज सच्चाइयों को भी उतनी ही ईमानदारी से लिखा।

उनके लिए विवाह का अर्थ बंधन नहीं बल्कि एक ऐसा संबंध था [X]
उनके लिए विवाह का अर्थ बंधन नहीं बल्कि एक ऐसा संबंध था [X]

उनके लिए विवाह का अर्थ बंधन नहीं बल्कि एक ऐसा संबंध था, जहाँ “स्पेस” और समझदारी की अहमियत हो। इसी सोच के कारण उनके लेखन में प्रेम और विवाह दोनों ही नए आयामों में सामने आए। उनके पात्र अक्सर रिश्तों में उलझे होते हैं, लेकिन साथ ही उस उलझन से बाहर निकलने की हिम्मत भी दिखाते हैं। मृदुला ने खुद को कभी “किसी की पत्नी” या “किसी की माँ” कहकर परिभाषित नहीं किया, बल्कि हमेशा एक स्वतंत्र सोच रखने वाली इंसान के रूप में देखा। यही कारण है कि उनका निजी जीवन और लेखन दोनों ही स्त्री की स्वतंत्रता का प्रतीक बन गए।


‘चितकोबरा’ से आगे की यात्रा

हालाँकि “चितकोबरा” ने उन्हें चर्चाओं के केंद्र में ला दिया था, लेकिन मृदुला गर्ग की साहित्यिक यात्रा वहीं थमने वाली नहीं थी। उन्होंने इसके बाद भी कई ऐसी कृतियाँ लिखीं, जिन्होंने हिंदी साहित्य को नए विचार और नए दृष्टिकोण दिए। “अनित्य” में उन्होंने कैंसर से जूझती एक स्त्री की कहानी लिखी, जो शारीरिक पीड़ा से ज्यादा अपने भीतर के डर और मोह से लड़ती है। वहीं “कठगुलाब” स्त्री विमर्श की एक बेहद मजबूत आवाज़ साबित हुई, जिसमें नारेबाज़ी नहीं थी, बल्कि गहरी संवेदना और सच्चाई थी।

A Book By Mrdla Garg
“कठगुलाब” [X]

इसी तरह “मैं और मैं” में उन्होंने एक स्त्री के दो अस्तित्वों को सामने रखा। एक समाज द्वारा थोपे गए मुखौटे वाला और दूसरा उसका असली “स्वयं।” उनकी कहानियाँ कभी भी सीधे-सपाट ढंग से नहीं चलतीं। अक्सर वो बीच से शुरू होती हैं और पाठक को धीरे-धीरे उलझाकर सुलझाती हैं। यही अंदाज़ उनकी रचनाओं को वास्तविक और जीवंत बना देता है। उन्होंने अपने पात्रों को इंसान की तरह गढ़ा। जो गलतियाँ भी करते हैं और उनसे सीखते भी हैं। यही कारण है कि उनके लेखन में पाठक को हमेशा अपना ही अक्स दिखाई देता है।

मृदुला गर्ग के नाम है कई पुरस्कार

मृदुला गर्ग के लेखन को सिर्फ पाठकों का ही नहीं, बल्कि साहित्यिक संस्थाओं और अंतर्राष्ट्रीय मंचों का भी भरपूर सम्मान मिला। उन्हें 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (Sahitya Akademi Award) से नवाज़ा गया, जो उन्हें उनके उपन्यास “कठगुलाब” (Kathgulab) के लिए मिला। इस उपन्यास में स्त्री विमर्श का गहरा और सशक्त चित्रण था, जिसने बिना शोर मचाए समाज की सच्चाई उजागर की।

मृदुला गर्ग के नाम है कई पुरस्कार [X]
मृदुला गर्ग के नाम है कई पुरस्कार [X]

इसके अलावा उन्हें व्यास सम्मान (Vyas Samman), साहित्य भूषण (Sahitya Bhushan), और कई अन्य राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुए। जर्मनी, अमेरिका और अन्य देशों से उन्हें रेज़िडेंसी फेलोशिप्स और साहित्यिक कार्यक्रमों के लिए आमंत्रण मिला। लेकिन मृदुला के लिए पुरस्कार कभी मंज़िल नहीं रहे। उनके लिए असली इनाम तब था जब पाठक उनकी रचनाएँ पढ़कर कहते, “आपने वो लिखा, जो हम कह नहीं पाए।” यही बात उनके लेखन की सबसे बड़ी सफलता थी। उनके सम्मान और उपलब्धियाँ उनकी उस खामोश लड़ाई की पहचान थीं, जो उन्होंने वर्षों तक सच और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लड़ी।

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मृदुला गर्ग ने साबित किया कि साहित्य सिर्फ कहानियाँ सुनाने का माध्यम नहीं, बल्कि बदलाव का हथियार भी हो सकता है। उनकी रचनाएँ सजावटी नहीं थीं, बल्कि समाज की कठोर सच्चाइयों का आईना थीं। उन्होंने हर विषय को निडरता से छुआ। चाहे वो स्त्री की देह और इच्छाएँ हों या रिश्तों की उलझनें और समाज के खोखले आदर्श। उनका लेखन हमें असहज करता है, लेकिन यही असहजता सोचने पर मजबूर करती है। मृदुला गर्ग सिर्फ एक लेखिका नहीं थीं, बल्कि एक आंदोलन, एक विद्रोह और एक साहसी सोच का नाम थीं। उन्होंने दिखाया कि लेखक का असली काम सच लिखना है। चाहे लोग उसे स्वीकार करें या अस्वीकार। आज भी उनकी कहानियाँ पढ़कर लगता है कि उनकी कलम ज़िंदा है और हमें यह याद दिला रही है कि साहित्य की सबसे बड़ी ताकत है, सच बोलने की हिम्मत। [Rh/SP]

Mridula Garg  accused of obscenity!
हिंदी साहित्य की एक ऐसी लेखिका जिसने समाज को तो आईना दिखाया लेकिन खुद विवादों में घिर गई!

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