![खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) भारतीय साहित्य की दुनिया का वो नाम, जो बेबाक लेखन शैली और साहसिक विचारों के लिए जाना जाता है। [Sora Ai]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-08-25%2F46ptqvtu%2Fassetstask01k3gnpap2fwwsr4kn0t333ev61756127606img1.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) भारतीय साहित्य की दुनिया का वो नाम, जो बेबाक लेखन शैली और साहसिक विचारों के लिए जाना जाता है। उनकी आत्मकथा हो या उनके कॉलम, हर जगह एक खास तरह की स्पष्टता दिखाई देती है, जो पाठकों को चौंका भी देती है और आकर्षित भी कर देती है। एक बार उनकी पोती ने उनसे मज़ाकिया अंदाज़ में पूछ लिया था, “दादाजी, क्या आप सच में महिलाओं को आकर्षित करने की कोशिश करते थे?” यह सवाल जितना मासूम था, उतना ही गहरा भी। क्योंकि इसका सीधा संबंध खुशवंत सिंह की उस छवि से था, जिसे समाज ने उन्हें दिया था। लेकिन सवाल ये है कि की छवि में कितनी सच्चाई थी? आज हम आपको एक ऐसे लेखक के बारे में बताएंगे जो महिलाओं के बारे में खुलकर लिखते थें और अपने रिश्तों को छुपाने से कभी नहीं डरता थे।
खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) खुद मानते थे कि उनकी ज़िंदगी में औरतें सिर्फ़ प्रेम या आकर्षण का हिस्सा नहीं थीं, बल्कि दोस्ती, प्रेरणा और अनुभवों का भी अहम किरदार थीं। शायद यही वजह थी कि उनके लेखन में महिलाएं सिर्फ़ एक पात्र नहीं, बल्कि जीवन का सजीव रूप बनकर सामने आती थीं। आलोचना हुई, विवाद उठे, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि महिलाओं के प्रति उनका रवैया हमेशा साफ़, साहसी और सच्चा रहा।
खुशवंत सिंह कौन थे?
खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) भारतीय साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया का एक बड़ा नाम थे। उनका जन्म 2 फ़रवरी 1915 को पंजाब के हदाली (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई लाहौर, दिल्ली और लंदन में की और आगे चलकर वकील, लेखक, पत्रकार और राजनेता के रूप में भी काम किया। खुशवंत सिंह का निधन 20 मार्च 2014 को 99 साल की उम्र में दिल्ली में हुआ। वे अपनी बेबाक लिखावट और स्पष्ट विचारों के लिए जाने जाते थे। उनकी किताबों में इतिहास, धर्म, राजनीति और समाज पर तीखे व्यंग्य देखने को मिलते हैं।
उनकी सबसे मशहूर किताब Train to Pakistan (1956) है, जिसमें भारत के विभाजन और इंसानी त्रासदी को बड़ी गहराई से दिखाया गया है।इसके अलावा Delhi: A Novel और The Company of Women भी उनकी चर्चित रचनाएँ हैं। इनमें से The Company of Women को सबसे विवादित माना जाता है क्योंकि इसमें उन्होंने महिलाओं के साथ अपने अनुभवों और रिश्तों को बेहद स्पष्ट तरीके से लिखा। पत्रकारिता में भी खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) ने Illustrated Weekly of India जैसी पत्रिकाओं को नए मुकाम तक पहुँचाया। उनकी खासियत थी कि वे सच को बिना लाग-लपेट के कहते थे। यही कारण है कि उन्हें “बेबाक लेखक” और “महिला-प्रेमी लेखक” (“Woman-loving writer”) दोनों ही नामों से याद किया जाता है।
खुशवंत सिंह की सबसे विवादित किताब
एक लेखक का विवादों से गहरा संबंध होता है। जब भी कोई लेखक कुछ ऐसा लिखना है जो शायद हमारे समाज की सच्चाई हो या फिर समाज उसे स्वीकार नहीं कर पाए तो उसे लेखक को ही विवादित कह दिया जाता है। खुशवंत सिंह की भी कुछ किताबें हैं जिसके कारण उन्हें कई विवादों का सामना करना पड़ा जिसमें से एक है The Company of Women (1999)। खुशवंत सिंह की यह किताब उनकी सबसे विवादित किताबों में गिनी जाती है। इसमें उन्होंने पुरुष और महिला के बीच शारीरिक संबंधों, इच्छाओं और अनुभवों को बेहद खुलकर लिखा।
किताब का मुख्य किरदार मोहन कुमार है, जो अपनी शादी टूटने के बाद अलग-अलग महिलाओं से संबंध बनाता है। इस उपन्यास में महिलाओं को स्वतंत्र, बेबाक और अपनी इच्छाओं को खुलकर व्यक्त करने वाली शख्सियत के रूप में दिखाया गया है। लेकिन विवाद इसलिए हुआ क्योंकि भारतीय समाज में इस तरह की यौनिकता पर खुलकर लिखना सहज स्वीकार्य नहीं था। कई आलोचकों ने खुशवंत सिंह पर अश्लीलता फैलाने का आरोप लगाया। वहीं, उनके समर्थकों का मानना था कि उन्होंने इंसानी इच्छाओं और रिश्तों की सच्चाई को बेबाकी से पेश किया। यह उपन्यास एक तरफ पाठकों को आकर्षित करता है तो दूसरी तरफ असहज भी करता है।
खुशवंत सिंह: एक शराबी और लापरवाह व्यक्ति
खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) की 16 साल की पोती ने एक बार उनसे पूछा की दादजी क्या आप महिलाओं को आकर्षित करते हैं? इस प्रश्न ने खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) को चौंका दिया। दरअसल खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) की पोती के इस सवाल की वजह थी कि स्कूल में खुशवंत सिंह की एक कहानी पढ़ाते हुए अध्यापक ने कहा था कि खुशवंत सिंह 'एक शराबी और लापरवाह व्यक्ति' हैं।
इतना ही नहीं खुशवंत सिंह के बेटे राहुल भी एक लेखक हैं और उन्होंने भी अपनी कई कहानियों और उपन्यासों में इस बात का जिक्र किया है कि उनके पिता यानी खुशवंत सिंह काफी मूडी और बेपरवाह व्यक्ति थे। खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा लिखी जिसका नाम है 'अनफ़ॉरगेटेबल खुशवंत सिंह', इस किताब में उन्होंने अपने जीवन के कई ऐसे किस्से उजागर किए हैं इसके बारे में लोगों को कम पता है इसके साथ ही अपनी आत्मकथा में महिलाओं के साथ रिश्तों के बारे में इतनी स्पष्टता से लिखने के कारण पाठकों के एक वर्ग में ख़ुशवंत की आलोचना भी हुई।
महिलाओं का साथ और खुशवंत सिंह की बेबाकी
खुशवंत सिंह की आलोचना अक्सर इस बात को लेकर होती रही कि उन्होंने अपने लेखन में महिलाओं का चित्रण बहुत खुलकर किया और कई महिलाओं के साथ अपने रिश्तों का ज़िक्र भी किया। लेकिन उन्होंने खुद ‘फ़ैमिली मैटर्स’ नामक लेख में साफ लिखा था:
“मेरे जीवन में कई महिलाएं आईं, जैसे हर पुरुष के जीवन में आती हैं। लेकिन मैंने कभी किसी का मज़ाक नहीं उड़ाया और न ही किसी के साथ अनुचित व्यवहार किया। उन महिलाओं ने भी मुझे कभी नहीं डांटा।”
Khushwant Singh
खुशवंत सिंह का मानना था कि महिलाओं को उनका साथ इसलिए पसंद था क्योंकि वे अच्छे श्रोता और उदार दिल वाले इंसान थे। उनके बेटे राहुल सिंह भी कहते हैं कि पिता का अपनी पत्नी से रिश्ता बेहद खूबसूरत और समर्पण से भरा हुआ था। उन्होंने जो लिखा, वह ज़्यादातर उनकी काल्पनिक दुनिया का हिस्सा था। उनके विनोदी स्वभाव का एक मज़ेदार किस्सा अभिनेत्री नरगिस से जुड़ा है।
नरगिस जब सोलन के एक स्कूल कार्यक्रम में आईं तो उन्हें होटल नहीं मिला। उन्होंने खुशवंत सिंह से कसौली स्थित उनके घर में ठहरने की अनुमति मांगी। इस पर खुशवंत सिंह ने हंसते हुए पूछा “क्या आप मदर इंडिया वाली नरगिस हैं?” नरगिस ने हां कहा तो उन्होंने मजाकिया अंदाज़ में कहा “ठीक है, आप रह सकती हैं, बस शर्त यह है कि मुझे अपने दोस्तों को बताने दें कि नरगिस मेरे कमरे में सोई थी। खुशवंत सिंह की कुछ इस प्रकार की बेबाकी के कारण है उन्हें आलोचनाएं झेलना पड़ी और उन्हें महिला प्रेमी का टैग भी मिल गया।
जब परिवार ही बन गया आलोचक
खुशवंत सिंह का जीवन हमेशा विवादों से घिरा रहा और आपातकाल (Emergency) के दौर ने इन विवादों को और गहरा कर दिया। 1975 में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया, तब ज्यादातर बुद्धिजीवी और लेखक उसके खिलाफ खड़े हुए। लेकिन खुशवंत सिंह ने इंदिरा गांधी का समर्थन किया। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि देश में अनुशासन और स्थिरता लाने के लिए यह कदम ज़रूरी था। यही समर्थन उनके अपने परिवार को अच्छा नहीं लगा। उनके बेटे राहुल सिंह और परिवार के दूसरे सदस्य मानते थे कि एक लेखक को सत्ता की गलतियों के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए, न कि उनका साथ देना चाहिए।
परिवार का कहना था कि खुशवंत सिंह की कलम समाज की सच्चाई और आज़ादी की पक्षधर रही है, तो फिर वे इस फैसले को कैसे सही ठहरा सकते हैं? खुशवंत सिंह पर आरोप लगा कि उन्होंने सत्ता के दबाव में आकर अपनी आवाज़ बदल ली, लेकिन उनका कहना था कि उन्होंने वही लिखा और कहा जो उन्हें उस समय सही लगा। यह वही दौर था जब उनका परिवार भी उनके विचारों से असहमत होकर आलोचक बन गया। इस घटना ने यह साफ़ कर दिया कि खुशवंत सिंह का जीवन जितना साहित्यिक उपलब्धियों से भरा था, उतना ही राजनीतिक विवादों और निजी मतभेदों से भी भरा हुआ था।
खुशवंत सिंह की अंतिम यात्रा और सम्मान
20 मार्च 2014 को खुशवंत सिंह ने 99 वर्ष की आयु में दिल्ली स्थित अपने निवास पर अंतिम सांस ली। उनका निधन बुढ़ापे से जुड़ी प्राकृतिक कारणों से हुआ। उनकी मृत्यु से साहित्य जगत और पत्रकारिता में शोक की लहर दौड़ गई। उन्हें लोग सिर्फ एक लेखक के रूप में नहीं, बल्कि एक बेबाक विचारक और समाज की सच्चाई दिखाने वाले दर्पण के रूप में याद करते हैं।
अपने लंबे करियर में खुशवंत सिंह को कई बड़े पुरस्कार मिले। उन्हें पद्म भूषण (1974) से सम्मानित किया गया था, लेकिन आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के फैसले से असहमति जताने पर उन्होंने यह सम्मान लौटा दिया। बाद में उन्हें पद्म विभूषण (2007) (Padma Vibhushan (2007) से नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, रॉटरडैम एरास्मस पुरस्कार और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से ऑनरेरी डिग्री भी मिली। उनकी पहचान हमेशा एक ऐसे लेखक की रही जो सच कहने से कभी नहीं डरते थे।
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खुशवंत सिंह भारतीय साहित्य की दुनिया का वह नाम हैं, जिनके बिना बेबाक लेखन की कल्पना अधूरी है। उन्होंने न केवल समाज, धर्म और राजनीति पर तीखी कलम चलाई बल्कि महिलाओं और रिश्तों पर लिखते हुए भी कभी झिझक नहीं दिखाई। आलोचना हुई, विवाद उठे, लेकिन उनकी सबसे बड़ी ताक़त यही थी कि वे सच लिखने से कभी नहीं डरे। आज, उनके लेखन को पढ़ते हुए यह साफ़ समझ आता है कि खुशवंत सिंह केवल एक लेखक नहीं थे, बल्कि एक विचारधारा थे, जो हमें यह सिखाते हैं कि साहित्य तभी जीवंत है जब वह समाज की असल तस्वीर दिखाने की हिम्मत रखे। [Rh/SP]