
बदलाव की शुरुआत : एनसीईआरटी की नई किताबें
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान (Social Science) की नई किताब जारी की है जिसका नाम है, 'समाज की खोज भारत और उससे आगे’ (भाग 1)। यह किताब (2025-26) से लागू कर दी गई है और खास बात यह है कि इसमें कई पुराने अंशों को हटाया गया है, जिनमें मुगल शासकों और दिल्ली सल्तनत से जुड़े कुछ विवादित विवरण शामिल थे।
इस बार किताब को ‘संवेदनशील विषयों से हल्का’ बनाया गया है। यानी अब छात्रों को मुगलों (Mughals) की क्रूरता, धार्मिक असहिष्णुता, मंदिरों के विध्वंस और अन्य कटु ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं दी जाएगी। पुस्तक में पहले जिन ऐतिहासिक विवरणों को प्रमुखता दी गई थी, जैसे कि बाबर द्वारा आबादी का कत्लेआम और गुलामी, अकबर के शासन में क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण, औरंगज़ेब द्वारा मंदिरों और गुरुद्वारों का विनाश, दिल्ली सल्तनत (Delhi Sultanate) के सुल्तानों द्वारा हिंदू मंदिरों पर हमले, गैर-मुस्लिमों पर लगाए गए जज़िया कर की व्याख्या, इन सभी विवरणों को अब नई किताबों से निकाल दिया गया है।
एनसीईआरटी की पुरानी किताबों में बाबर की आत्मकथा को उसकी बौद्धिक और सुसंस्कृत छवि के साथ जोड़ा गया था। लेकिन साथ ही उसमें इस बात का भी ज़िक्र था कि बाबर ने कुछ युद्धों के दौरान, पूरे शहरों की आबादी का संहार किया, महिलाओं और बच्चों को गुलाम बनाया, मारे गए लोगों की खोपड़ियों से मीनारें बनाईं, और हिंदू विरोध को लेकर गर्व महसूस किया। यह सारे अंश अब किताबों से हटा दिए गए हैं। यही नहीं, "काफिर" जैसे शब्दों का ज़िक्र भी किताब से हटाया गया है, जो धार्मिक असहिष्णुता से जुड़ा माना जाता था।
मंदिरों पर हमलों के उल्लेख भी हटाए गए
दिल्ली सल्तनत (Delhi Sultanate) और मुगल काल से जुड़ी घटनाओं में मंदिरों के विनाश और धार्मिक स्थलों पर हमलों की चर्चा भी पहले की किताबों में थी। जैसे कि अलाउद्दीन खिलजी और उसके सेनापति मलिक काफूर द्वारा श्रीरंगम, मदुरै, चिदंबरम और रामेश्वरम जैसे प्रमुख हिंदू मंदिरों पर हमले, सुल्तानों द्वारा बौद्ध और जैन मंदिरों में तोड़फोड़, जज़िया कर को ‘अपमानजनक कर’ के रूप में बताया जाना, अब इन सभी अंशों को किताब से हटा दिया गया है।
एनसीईआरटी ने अपने फैसले के पीछे तर्क दिया है कि इतिहास के “अंधकारमय पक्षों” को लेकर आज के समाज में किसी व्यक्ति या समुदाय को दोष देना उचित नहीं है। नई किताब में एक विशेष चेतावनी भी दी गई है, जिसमें लिखा है, “अतीत की घटनाओं के लिए आज किसी को भी ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।” इसके पीछे उद्देश्य यह बताया गया है कि बच्चे समाज को और बेहतर समझें, न कि इतिहास के नाम पर समुदायों के बीच दूरी महसूस करें।
नई किताबें अब "धार्मिक सहिष्णुता", "प्रशासनिक संरचनाएं", "कला-संस्कृति" और "राजनीतिक उपलब्धियों" पर अधिक ज़ोर देती हैं। यानी अब छात्रों को बताया जाएगा कि अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई, सल्तनत काल में वास्तुकला, संगीत और शिक्षा को बढ़ावा मिला, मुगलों ने प्रशासनिक और सांस्कृतिक एकता की नींव रखी। दूसरे शब्दों में कहें, तो अब मुगलों और सल्तनत को "क्रूर आक्रांताओं" की बजाय "राजनीतिक शासकों" और "सांस्कृतिक योगदानकर्ताओं" के रूप में पेश किया जा रहा है।
कक्षा 7 की पुरानी किताबों में मंदिरों के विध्वंस का ज़िक्र नहीं था। कक्षा 8 की नई किताब में वह सारे विवादास्पद अंश थे जो पिछले वर्षों में जोड़े गए थे, अब हटा दिए गए हैं। आगे चलकर कक्षा 9 और 10 की किताबों में भी इस तरह के बदलाव होने की संभावना जताई जा रही है।
क्या है इन बदलावों के पीछे की सोच ?
एनसीईआरटी और शैक्षिक विशेषज्ञों का मानना है कि इतिहास को पढ़ाने का उद्देश्य "गौरव या ग्लानि" पैदा करना नहीं होना चाहिए। इस बदलाव के पीछे का मुख्य कारण है की छात्रों की मानसिकता को संतुलित रखना, समाज में मित्रता बनाए रखना, राष्ट्रीय एकता और समाज में हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के समान अवसर और सम्मान देना।
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जहां एक ओर सरकार और एनसीईआरटी इस बदलाव को "नरम और संतुलित इतिहास शिक्षा" बता रही है, वहीं कुछ इतिहासकार और आलोचक इस पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है, क्या इतिहास को साफ-सुथरा और ‘साफ छवि’ देने से हम सच्चाई से दूर नहीं जा रहे हैं ? क्या यह इतिहास का राजनीतिकरण नहीं है ? क्या छात्रों को कड़वे तथ्यों से दूर रखने का अर्थ है उन्हें अधूरी जानकारी देना ?
निष्कर्ष
एनसीईआरटी की नई किताबें अब इतिहास के विवादित पहलुओं से बचते हुए “मूल्य आधारित और सकारात्मक शिक्षा” देने की ओर बढ़ रही हैं। अब छात्रों को मुगलों (Mughals), दिल्ली सल्तनत (Delhi Sultanate) और मध्यकालीन भारत की क्रूरता या धार्मिक हिंसा की गहराई में नहीं ले जाया जाएगा, बल्कि उन्हें एक “संतुलित और सहयोगात्मक इतिहास” पढ़ाया जाएगा। हालांकि, यह बहस जारी है कि क्या यह बदलाव छात्रों को सच्चाई से दूर ले जाएगा या फिर सामाजिक एकता की ओर ?
आपकी क्या राय है ? क्या इतिहास को नरम बनाना सही है या हमें अतीत को उसकी पूरी सच्चाई के साथ पढ़ाना चाहिए ? [Rh/PS]