

एक समय हुआ करता था जब हमारे घर का आंगन चिड़ियों की चर्चाराहट से गूंज उठता था। इन चिड़ियों की आवाज से एक नई सुबह, एक नई उम्मीदें, एक नई उमंग का अनुभव होता था। एक अच्छे दिन की शुरुआत लगती थी। बदलते समय के साथ-साथ ना आंगन में चिड़ियों की गूंज सुनाई देती है और ना ही दिन की सकारात्मक शुरुआत का अनुभव ही होता है। हालांकि हम सभी एक वातावरण में रहते हैं लेकिन इस वातावरण से जुड़ाव केवल कुछ ही लोग महसूस कर पाते हैं और इन्हीं में से एक है राकेश खत्री। आज हम आपको एक ऐसे इंसान के बारे में बताएंगे जिनका संबंध प्रकृति से और वातावरण से इतना गहरा है कि उन्होंने प्रकृति की खूबसूरती को बचाए रखने के लिए वह सभी संभव प्रयास किया जो शायद हम सभी को मिलकर करने चाहिए थे। Sparrow man के नाम से विख्यात राकेश खत्री जी ने गौरैया के पूरे परिवार को एक नया जीवन दान दिया है तो चलिए इस स्पैरो-मैन के बारे में जानते हैं।
कैसे हुई चिड़ियों के लिए घोसलें बनाने की शुरुआत?
राकेश खत्री (Rakesh Khatri) एक डॉक्यूमेंट फिल्म बनाया करते थे लेकिन 2008 में उन्होंने सब कुछ छोड़कर अपनी जिंदगी गौराईयों के नाम कर दी और अपने आप को पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया। उनका विशेष ध्यान एक ऐसी समस्या पर था, जो उनके दिल के करीब थी, मानव आबादी के आसपास रहने वाली गौरैया चिड़ियों की घटती संख्या। 90 के दशक के अंत में राकेश खत्री ने चिड़ियों की घटती समस्याओं को देखते हुए लगभग यह तय कर लिया था कि उन्हें पर्यावरण के लिए और इन चिड़ियों के लिए कुछ करना है। उन्होंने सबसे पहले नारियल के अंदर के हिस्सों को निकाल कर और फिर घोसला बनाने की शुरुआत की हालांकि यह काफी कमजोर होता था लेकिन शुरुआत के लिए बिल्कुल सही था।
कैसे बनते है घोसलें?
समय के साथ-साथ राकेश खत्री के घोसले बनाने के तरीकों में भी बदलाव आया उन्होंने कुछ तकनीक की इस्तेमाल की और बांस, कपड़ा, जूट, सूती जैसे प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग करके चिड़ियों के लिए घोंसले बनाए। यह प्रयास इतना सफल हुआ कि अब उनके द्वारा बनाए गए घोंसलों का अपनाने का दर 85% से अधिक है। 2008 के करीब गौरैया की संख्या बड़ी तेजी के साथ घटने लगी थी लेकिन राकेश खत्री के इस प्रयास ने उनकी संख्या को सामान्य करने में मदद पहुंचाएं। इसके अलावा, राकेश खत्री ने कई अन्य नवाचारी परियोजनाओं को भी संचालित किया है, जो विभिन्न कॉरपोरेट्स और संस्थानों के समर्थन से चलाई जा रही हैं। इन परियोजनाओं का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक विकास गतिविधियों की सोच और कार्य को प्रेरित करना है।
आज लाखों बच्चे हैं उनके मददगार
राकेश खत्री (Rakesh Khatri) जी ने एक रूट फाउंडेशन नाम के एक संस्था की शुरुआत की जिसके जरिए हुए बच्चों को चिड़ियों के लिए घोंसला बनाने और पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी शिक्षा देते हैं। इको रूट्स फाउंडेशन पिछले 18 वर्षों से न केवल दिल्ली में बल्कि पूरे भारत में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रहा है। एक आंकड़ों के मुताबिक इस फाउंडेशन के तहत 7,538 से अधिक “घोंसला निर्माण वर्कशॉप” आयोजित की जा चुकी हैं। इन वर्कशॉप के माध्यम से अब तक 7,30,000 घोंसले बनाए जा चुके हैं और 16,71,314 से अधिक लोग इन वर्कशॉप में शामिल हो चुके हैं। अब तक, राकेश खत्री ने 17 राज्यों के 24 शहरों में एक लाख से अधिक बच्चों को घोंसले बनाना सिखाया है।
जब अंतराष्ट्रीय स्तर पर मिला राकेश खत्री को सम्मान
राकेश खत्री का यह प्रयास केवल स्थानीय नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी पहचाना गया है। उनकी संस्था इको रूट्स फाउंडेशन को 2014 में इंटरनेशनल ग्रीन ऐपल अवॉर्ड से नवाजा गया था और 2017 में उन्हें लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया। अर्थ डे नेटवर्क ने भी उनके कार्य को सकारात्मक शुरुआत के रूप में सराहा है।उन्होंने “नीर, नारी और विज्ञान” नामक एक जागरूकता अभियान भी शुरू किया है, जिसके तहत उन्होंने समाज में विज्ञान और प्रकृति के प्रति जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया है। इतना ही नहीं इनके सतत प्रयास के कारण ही दिल्ली सरकार के द्वारा गौरैया को राज्य पक्षी भी घोषित किया गया।
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राकेश खत्री जी की कहानी हमें पर्यावरण संरक्षण और अपने पर्यावरण के प्रति लगाव के लिए प्रेरणा देती है जो शायद आज हम बिल्कुल भूल चुके हैं। राकेश खत्री जी का प्रयास कई पक्षियों खासकर गौरैया के जीवन को बचाने में महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने यह साबित कर दिया कि यदि अकेला व्यक्ति सही मंतव्य के साथ आगे बढ़े तो वह समझ में काफी कुछ बदलाव ला सकता है। [Rh/SP]