![कहानी है इंदिरा गांधी और फ़िरोज़ गांधी की है [X]](http://media.assettype.com/newsgram-hindi%2F2025-07-22%2F3wju672o%2Fassetstask01k0rypa9af7raqzcstcrk5r851753184293img0.webp?w=480&auto=format%2Ccompress&fit=max)
इंदिरा गांधी (Indira Gandhi), जब हम यह नाम सुनते है तो सबसे पहले मन में इंदिरा जी की कैसी छवि बनती है? एक बोल्ड, एक स्ट्रिक्ट लीडर जिनके फैसलों ने भारत की राजनीति में भूचाल ला दिया और जिनके फैसलों से आज भी लोग हैरान हो जातें हैं। लेकिन इस स्ट्रिक्ट लीडरशिप के पीछे एक मासूम और प्यारा सा दिल छुपा है जिसने आपने प्यार के लिए सबसे लड़ाई की और लाख नाराज़गी और तानों के बाद भी अपने प्यार का हाथ नहीं छोड़ा। यह कहानी है इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) और फ़िरोज़ गांधी (Firoze Gandhi) की है, या यूं कह लें कि उस मोहब्बत की है, जिसने नेहरू (Nehru Ji) को नाराज़ भी किया और समाज की चुप्पी को भी टूटने पर मजबूर किया।
एक तरफ था संसार, और दूसरी तरफ परिवार, फिर भी इंदिरा (Indira) ने कदम बढ़ाया और फ़िरोज़ (Firoze) का हाथ थाम लिया। लेकिन सवाल हैं कि क्या यह प्यार वाकई इतना सशक्त था कि उसने हर विरोध को टाला? क्या थी फिरोज़ और इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की प्रेम कहानी क्यों इस प्यार को इतनी नफ़रत झेलनी पड़ी?
इंदिरा और फ़िरोज़ की पहली मुलाक़ात
कहते हैं, प्रेम की शुरुआत उसी वक्त होती है जब आंखों में पहली झलक हो। 1930 के दशक में जब युवा इंदिरा (Indira) ऑक्सफ़ोर्ड में पढ़ रही थीं और फ़िरोज़ (Firoze) लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनोमिक्स में तब दोनों की मुलाक़ात ज्ञान और विचारों के मंच पर हुई थी। इसके बाद 1933 में फ़िरोज़ पहली बार इंदिरा को भावनात्मक रूप से पसंद करने लगे, लेकिन इंदिरा ने 16 वर्ष की उम्र में दो बार इन्कार किया। पर प्यार के फसल का जब मौसम सहारा होता है, तो हार नहीं मानना चाहिए। फ़िरोज़ ने भी हार नहीं मानी।
पेरिस में Montmartre की एक घुमक्कड़ शाम में, हल्की हल्की बरसात और हवा के खूबसूरत एहसास के बीच जब फ़िरोज़ (Firoze) ने इंदिरा (Indira) को प्रपोज़ किया, तो इंदिरा इंकार नहीं कर पाई और उन्होंने हां बोल दी। इसी क्रांतिकारी निर्णय ने प्रेम की जीत करा दि।
इंदिरा और फिरोज के प्यार से नेहरू नहीं थे खुश!
जब इंदिरा (Indira) ने पिता को बताया कि वह फ़िरोज़(Firoze) से शादी करेगी, तो पंडित नेहरू (Nehru) स्तब्ध रह गए। कहा जाता है कि नेहरू (Nehru) नाराज़ इसलिए थे क्योंकि फ़िरोज़ गांधी (Firoze Gandhi) बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से आते थे, उनके पास न तो विश्वविद्यालय डिग्री थी और न ही कोई नौकरी और न ही नियमित आय का कोई ज़रिया। कैथरीन फ़्रैंक इंदिरा गांधी की जीवनी 'इंदिरा, द लाइफ़ ऑफ़ इंदिरा नेहरू गाँधी' में लिखती हैं, "फ़िरोज़ ज़ोर-ज़ोर से बोलने वाले, गालियाँ देने वाले मुँहफट शख़्स थे। उसके ठीक विपरीत नेहरू बहुत सभ्य सुसंस्कृत और नाप-तोलकर बोलने वाले व्यक्ति थे।”
साथ ही, इंदिरा (Indira) की बुआ विजयलक्ष्मी पंडित, कृष्णा और माताजी कामला ने भी इस रिश्ते को पारंपरिक और सांस्कृतिक दृष्टि से गलत समझा। उन्होंने सवाल उठाए कि क्या यह ‘ज़मीन से गिरना’ नहीं, जब एक नेहरू की बेटी एक ग़ैर-जिनीनी में अपना भविष्य ढूंढ रही थी? पर यह इंदिरा की जिंदगी थी। उन्होंने पिता के विरोध को छुपाकर अपने कदम बढ़ाए, संघ परिवार और घर की पुरानी सीमाओं को तोड़ा।
जब एक हेडिंग ने फैलाई शादी की ख़बर
अभी नेहरू परिवार के अंदर ये बात चल ही रही थी कि इलाहाबाद के अख़बार 'द लीडर' ने अपने पहले पन्ने पर हेडलाइन लगाई, 'मिस इंदिरा नेहरूज़ इंगेजमेंट.' जब लीडर ने ये ख़बर ब्रेक की तो नेहरू कलकत्ता में थे. वापस आकर उन्होंने एक बयान जारी किया जिसे 'बॉम्बे क्रोनिकल' और दूसरे अख़बारों ने छापा।
नेहरू ने कहा, "मैं इंदिरा (Indira) और फ़िरोज़ (Firoze) की शादी के बारे में छपी ख़बरों की पुष्टि करता हूँ, मेरा मानना रहा है कि शादी के बारे में माता-पिता सिर्फ़ सलाह भर दे सकते हैं लेकिन अंतिम फ़ैसला लड़का-लड़की को ही करना होता है|जब मुझे इंदिरा(Indira) और फ़िरोज़ (Firoze) के इस फ़ैसले के बारे में पता चला तो मैंने इसे तहेदिल से स्वीकार किया। महात्मा गांधी ने भी उन्हें अपना आशीर्वाद दे दिया है. फ़िरोज़ गांधी एक युवा पारसी हैं जो हमारे परिवार के बरसों से दोस्त और साथी रहे हैं।” गांधी जी का समाचार पत्र ‘हरिजन’ पत्रिका में भी यह ख़बर प्रकाशित हुई, जिससे यह पता चला कि इस शादी को गांधी जी का भी समर्थन है।
जब इंदिरा को झेलने पड़ा था कड़ा विरोध
इतने बड़े और प्रतिष्ठित परिवार की बेटी किसी और धर्म में शादी, कुछ लोगों को लग रहा था कि इस विवाह से भारत की सदियों पुरानी पंरपरा को चोट पहुंच रही है। एक तो ये माता-पिता का तय किया विवाह नहीं था और दूसरे ये दोनों अपने धर्म से बाहर शादी कर रहे थे। इलाहाबाद के आनंद भवन में विरोध स्वरूप भेजे जाने वाले तारों की झड़ी लगी थी।
कुछ बधाई के टेलीग्राम भी आए। प्रेस में हर जगह इस शादी पर बहस हुई। बहुत सालों बाद इंदिरा गांधी ने अर्नोल्ड मिकालिस को दिए इंटरव्यू में याद किया, "लगता था, पूरा भारत हमारी शादी के ख़िलाफ़ था।" पंडितों से सलाह मशविरे के बाद शादी के लिए 26 मार्च का दिन चुना गया। वो एक शुभ दिन था क्योंकि उस दिन रामनवमी थी।
शादी के जोड़े में काफी सुंदर लग रहीं थी इंदिरा
26 मार्च 1942 को राम नवमी के दिन, आनंद भवन, इलाहाबाद में वे दोनों विवाहबंधन में बंधे। इंदिरा ने अपने पिता के हाथ के चरखे से जेल में काते गए सूत की गुलाबी रंग की साड़ी पहन रखी थी। उसके बॉर्डर पर रुपहले रंग की कढ़ाई की गई थी। इंदिरा ने ताज़ा फूलों का हार और काँच की चूड़ियाँ पहन रखी थीं। इंदिरा इतनी सुंदर पहले कभी नहीं लगी थीं। उनका चेहरा ऐसा लग रहा था मानो ग्रीक सिक्के पर बनी सुंदर आकृति।” फ़िरोज़ ने खादी का शेरवानी पहनी, जिसमें उन्होंने पारसी रीत ‘कुस्ती’ भी पहनी थी। यह शादी धार्मिक और सामाजिक तौर पर हिंदू रिवाज़ों के अनुसार हुई, लेकिन उसमें पारसी प्रतीक भी नजर आए। यह शादी एक आज़ाद और आधुनिक भारत का प्रतीक था।
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इंदिरा-फ़िरोज़ की शादी सिर्फ प्रेम की कहानी नहीं, बल्कि एक सेक्युलर भारत और क्रांतिकारी बदलाव की मिसाल बनी। इसमें राजनीति और पारिवारिक दबावों के बीच इंदिरा ने अपनी राह बनाई यह एक ऐतिहासिक मील का पत्थर था। आज जब हम उन्हें याद करते हैं, तो यह शादी सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, वरन राष्ट्र की आत्मा की आज़ादी की भी कहानी कहती है। [Rh/SP]