काशी में बसी लंका नगरी का रहस्य: काशी (Kashi) या वाराणसी (Varanasi) को "अविनाशी" (Avinashi) भी कहा जाता है यह विश्व की प्राचीनतम नगरी के रूप में चर्चित है। ऐसा माना जाता है की काशी भगवान शंकर के त्रिशूल पर टिकी हुई है यही कारण है कि यह कभी नष्ट नहीं होती। लेकिन यह जानकर आश्चर्य तो होगा ही कि जहां भगवान शंकर ने कई लीला रची वहां आज लंका बस चुकी है। एक सच यह भी है कि इसी लंका ने बनारस की पहचान को बनाए रखा है।
लंकापति रावण (Ravan) एक बहुत बड़ा शिव भक्त था। उसी ने तांडव स्रोत की रचना की थी। लेकिन उसके कर्मों के कारण कोई व्यक्ति या शहर उससे नहीं जुड़ना चाहता था। गौरतलब है कि काशी में लंका (Lanka) बसाने में रावण का कोई योगदान नहीं रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर काशी में लंका बसाई किसने?
डॉक्टर प्रवेश भारद्वाज (Pravesh Bharadwaj) जो इतिहास के अच्छे जानकार हैं उन्होंने बताया कि संत तुलसीदास (Tulsidas) के मित्र मेघा भगत ने संवत- 1600 में चित्रकूट रामलीला (Chitrakoot Ramleela) समिति की स्थापना की थी। रामचरित मानस (Ramcharitmanas) के रचयिता तुलसीदास ने उसी वक्त भदैनी-अस्सी क्षेत्र में रामलीला के मंचन की शुरुआत की। रामलीला के मंचन के दौरान राम रावण युद्ध के दृश्य को दिखाने के लिए शहर के बाहर जंगली क्षेत्र को लंका के रूप में मान्यता दी गई।
वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ भट्टाचार्य (Amit Bhattacharya) जो काशी की पौराणिक मान्यताओं और बदलाव के बारे में जानकारी रखते हैं उन्होंने कहा कि जब तुलसीदास ने राम लीला के स्थल का चयन किया तो उन्हें कथानक के भौगोलिक पक्ष पर विशेष ध्यान दिया था।तुलसीदास ने काशी की असि नदी की परिकल्पना समुद्र के रूप में की क्योंकि रावण की लंका दक्षिण में समुद्र पार कर के थी। उस समय असि के पार के दक्षिणी भाग को लंका चिन्हित किया गया। लंका से जुड़ी घटना वहीं दर्शायी गई। यही कारण था कि यह जगह लंका के रूप में जानी जाने लगी। साहित्यकार डॉ जितेंद्रनाथ मिश्र (Dr. Jitendranath Mishr) ने बताया कि जो जगह आज लंका के नाम से जानी जाती है वह शुरुआत में लंका के मंचन के लिए इस्तेमाल की जाती थी हालांकि अब वह भव्यता और भाव नहीं रहा है।
रावण की लंका मोह का प्रतीक थी क्योंकि वहां धर्म तो था लेकिन धर्म का अभाव था।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र काशी विश्वनाथ ही एक ऐसा स्थान है जहां भगवती शिव के दाईं ओर विराजती है।
वरुणा की असि के बीच में बसे पुराने काशी में लोग मृत्यु के बंधन से मुक्त होने आते हैं। अतः काशी मुक्ति भवन भी है।
लंका काशी के 'मग्हा' क्षेत्र में है। शास्त्र और धर्मों के अनुसार काशी की लंका में मुक्ति नहीं मिलती है। इसीलिए लोग मग्हा इलाके में बने बीएचयू हॉस्पिटल (BHU Hospital) में अपने अंतिम क्षणों में जाने से मना करते हैं।
यदि काशी के विकास को देखा जाए तो काशी का पूरा वैभव लंका के क्षेत्र में बसा है। बीएचयू, सर सुंदरलाल अस्पताल, आईआईटी बीएचयू और मदनमोहन मालवीय कैंसर अस्पताल और बहुत से बड़े कमर्शियल बिल्डिंग। प्रसिद्ध मठ ,अखाड़े,मंदिर सब असि के बीच ही बसे हुए है। काशी विश्वनाथ मंदिर, मणिकर्णिका शमशान सब लंका से काफी दूर है। यहां लोगों का अंतिम संस्कार हरिश्चंद्र घाट (Harishchandra Ghat) पर होता है।
काशी तीन खंडों में बसी है। यहां तीन शिवलिंग की साधना पीठ है। तीनों के मंदिर अलग है।
(PT)