नेहरू और एडविना: सत्ता के गलियारों में पनपा एक अनकहा प्रेम

नेहरू (Nehru) और एडविना माउंटबेटन (Edwina Mountbatten) के रिश्ते ने इतिहास में एक अनकहा रोमांटिक अध्याय जोड़ा। राजनीतिक उथल-पुथल के बीच पनपे इस रिश्ते में भावनात्मक गहराई थी। चिट्ठियों, मुलाक़ातों और विदाई के लम्हों ने इसे खास बना दिया, जो अब भी इतिहास प्रेमियों के लिए रहस्य और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
पंडित नेहरू और एडविना माउंटबेटन के बीच एक गहरा भावनात्मक रिश्ता था, जो आज भी इतिहास में चर्चा का विषय है।
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पंडित नेहरू और एडविना माउंटबेटन के बीच एक गहरा भावनात्मक रिश्ता था, जो आज भी इतिहास में चर्चा का विषय है। (Sora AI)
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पहली नज़दीकी, एक गार्डन पार्टी में

साल 1947 में जब भारत की सत्ता अंग्रेज़ों से भारतीयों को सौंपने की प्रक्रिया शुरू हुई, तब लॉर्ड माउंटबेटन भारत के अंतिम वायसराय बनकर दिल्ली पहुंचे। उनके साथ उनकी पत्नी एडविना माउंटबेटन (Edwina Mountbatten) और बेटी पामेला भी थीं। गवर्नमेंट हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) में जब पहली बार एक गार्डन पार्टी आयोजित हुई, तो वहां का नज़ारा सबको चौंकाने वाला था। भारत के भावी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Prime Minister Jawaharlal Nehru) ज़मीन पर बैठे थे, वो भी एडविना माउंटबेटन के पैरों के पास। हालांकि, कारण कुर्सियों की कमी बताई गई, लेकिन लोगों को ये समझते देर नहीं लगी कि नेहरू और एडविना के बीच कुछ खास चल रहा है।

गवर्नमेंट हाउस के स्वीमिंग पूल में नेहरू अक्सर तैराकी के लिए जाते थे। लेकिन जब एडविना को भी उनके साथ तैरते देखा गया, तो चर्चाएं होने लगीं। 31 मार्च 1947 को, मशहूर लेखक सलमान रुश्दी के चाचा शाहिद हमीद ने अपनी डायरी में लिखा कि माउंटबेटन परिवार के भारत आने के दस दिन के भीतर ही नेहरू और एडविना की नज़दीकियों की बातें आम होने लगी थीं।

दिल्ली से लंदन तक, उनकी मुलाक़ातें, चिट्ठियाँ और उपहारों का लेन-देन इस रिश्ते की गहराई दर्शाते हैं।
(Sora)
दिल्ली से लंदन तक, उनकी मुलाक़ातें, चिट्ठियाँ और उपहारों का लेन-देन इस रिश्ते की गहराई दर्शाते हैं। (Sora)

कांग्रेस के बड़े नेता मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपनी आत्मकथा "इंडिया विन्स फ्रीडम" में लिखा, “नेहरू माउंटबेटन से तो प्रभावित थे ही, लेकिन लेडी माउंटबेटन से ज़्यादा प्रभावित थे।” यही नहीं, एडविना की बेटी पामेला हिक्स ने भी स्वीकार किया कि उनकी मां और नेहरू एक-दूसरे को बेहद प्यार करते थे। उन्होंने नेहरू को 'सोलमेट' तक कहा।

नेहरू (Nehru) की करिश्माई छवि का असर माउंटबेटनके परिवार पर पड़ा। पामेला ने अपनी किताब "डॉटर ऑफ एम्पायर" में लिखा कि नेहरू की आवाज़, सफेद शेरवानी, उसमें लगे लाल गुलाब और उनका आत्मीय व्यवहार उन्हें बहुत भाया था।

लेखक स्टेनली वॉलपर्ट ने नेहरू की जीवनी "नेहरू अ ट्रिस्ट विद डेस्टिनी" में बताया कि उन्होंने दिल्ली के एक सार्वजनिक कार्यक्रम में नेहरू को एडविना का हाथ पकड़ते और कान में कुछ फुसफुसाते देखा था, यह सब एक प्रधानमंत्री के लिए असामान्य माना गया।

एक बार टाटा स्टील के चेयरमैन रूसी मोदी ने एमजे अकबर को बताया कि उन्होंने नेहरू (Nehru) एडविना (Edwina) को अपनी बाहों में लेते हुए देखा था। यह दृश्य नैनीताल के एक गवर्नर हाउस में था, जब रूसी मोदी को नेहरू को डिनर के लिए बुलाने भेजा गया था।

नेहरू की करिश्माई शख्सियत से एडविना ही नहीं, उनकी बेटी पामेला भी प्रभावित थीं।

(Sora AI)
नेहरू की करिश्माई शख्सियत से एडविना ही नहीं, उनकी बेटी पामेला भी प्रभावित थीं। (Sora AI)

जब एडविना भारत छोड़कर जा रही थीं, तो उन्होंने अपनी सबसे कीमती अंगूठी इंदिरा गांधी को यह कहकर दी कि अगर पंडितजी कभी आर्थिक संकट में आएं तो यह उनके लिए बेच देना। विदाई के समय नेहरू ने उन्हें आम की पेटी, एक सिक्का और अपनी आत्मकथा की प्रति भेंट की। वहीं, एडविना ने नेहरू को एक सुनहरा डिब्बा दिया। एडविना की आंखें छलक उठी थीं, और उन्होंने अपनी पीए से कहा था कि नेहरू के लिए सेंट क्रिस्टोफ़र का एक लॉकेट दे दे।

नेहरू जब भी लंदन जाते तो एडविना से मिलने ज़रूर जाते। एक बार 'डेली हेरल्ड' अखबार ने एक तस्वीर छापी, जिसमें लेडी माउंटबेटन अपने नाइटगाउन में दरवाज़ा खोलती दिख रही थीं, और लिखा गया, "लेडी माउंटबेटन्स मिड नाइट विज़िटर"। खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा "ट्रूथ, लव एंड लिटिल मेलिस" में यह किस्सा साझा किया और बताया कि कैसे प्रधानमंत्री ने इस रिपोर्ट पर नाराज़गी ज़ाहिर की थी।

पामेला हिक्स और कई इतिहासकार मानते हैं कि यह रिश्ता ‘प्लेटॉनिक’ था, लेकिन कुछ इसे उससे आगे मानते हैं।       (Sora AI)
पामेला हिक्स और कई इतिहासकार मानते हैं कि यह रिश्ता ‘प्लेटॉनिक’ था, लेकिन कुछ इसे उससे आगे मानते हैं। (Sora AI)

नेहरू के प्रेम पत्र और एडविना की मृत्यु

जब 1960 में एडविना की मौत बोर्नियो में हुई, तो उनके कमरे में नेहरू के कई प्रेम पत्र पाए गए। बाद में ये पत्र लॉर्ड माउंटबेटन को सौंप दिए गए। एडविना की वसीयत के अनुसार, इन पत्रों को पढ़ने की ज़िम्मेदारी उनकी बेटी पामेला को दी गई। पामेला ने बताया कि ये सारे पत्र बेहद भावुक थे, सुबह दो से चार बजे के बीच लिखे गए, जिनमें नेहरू ने हमेशा अपनी माँ की याद और प्यार जताया। सभी पत्र नेहरू ने अपने हाथ से लिखे थे।

पामेला ने एक मज़ेदार किस्सा बताया कि एक बार एडविना (Edwina) ने नेहरू (Nehru) से कैनेडा की यात्रा के दौरान मैक्स फैक्टर की लिपस्टिक लाने को कहा। नेहरू ने भी ये मांग पूरी की, जो दोनों के आपसी रिश्ते की आत्मीयता को दर्शाता है। अब सवाल उठता है कि क्या नेहरू और एडविना के रिश्ते महज़ भावनात्मक थे या शारीरिक भी ?

पामेला हिक्स का कहना था कि ये रिश्ता पूरी तरह भावनात्मक और प्लेटॉनिक था, शारीरिक नहीं। वो कहती हैं कि “आज की पीढ़ी को ये समझना मुश्किल है कि बिना सेक्स के भी इतना गहरा रिश्ता हो सकता है।”

लेकिन कुछ इतिहासकारों और लेखकों का मानना है कि यह रिश्ता सिर्फ भावनाओं तक सीमित नहीं रहा। ज़रीर मसानी जैसे लोग मानते हैं कि नेहरू को सेक्स से परहेज़ नहीं था और संभवतः उनका रिश्ता शारीरिक भी रहा होगा।

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एडविना का अतीत भी दर्शाता है कि उनका वैवाहिक जीवन खुलेपन पर आधारित था। वो कई पुरुषों से प्रेम संबंध रख चुकी थीं और माउंटबेटन को भी इससे कोई आपत्ति नहीं थी, क्योंकि उनके भी पुरुष साथियों से संबंध थे।

यह प्रेम कहानी राजनीति, संवेदनाओं और व्यक्तिगत अकेलेपन के बीच पनपी एक दुर्लभ ऐतिहासिक दास्तान है।    (Sora AI)
यह प्रेम कहानी राजनीति, संवेदनाओं और व्यक्तिगत अकेलेपन के बीच पनपी एक दुर्लभ ऐतिहासिक दास्तान है। (Sora AI)

इतिहास के पन्नों में दर्ज एक अनूठा रिश्ता

नेहरू (Nehru) और एडविना (Edwina) का रिश्ता भारतीय इतिहास का एक ऐसा अध्याय है, जिसमें राजनीति और प्रेम की गहराई एक-दूसरे से जुड़ती हैं। यह रिश्ता भले ही आधिकारिक रूप से कभी स्वीकार नहीं किया गया, लेकिन नेहरू के प्रेम पत्र, एडविना की भावनाएं, और लंदन से लेकर दिल्ली तक की मुलाक़ातें, सब कुछ इस बात का प्रमाण हैं कि यह रिश्ता साधारण नहीं था। यह एक ऐसा रिश्ता था जो सीमाओं, संस्कृति, और समय की परिधियों से परे जाकर केवल भावनाओं की सच्चाई पर खड़ा था। [Rh/PS]

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